प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण की विवेचना कीजिए।

प्राथमिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण

प्राथमिक शिक्षा के सम्बन्ध में संविधान के संकल्प को पूरा करने तथा प्राथमिक शिक्षा का लाभ भारत के कोने-कोने तक पहुंचाने के लिए यह आवश्यक है कि प्राथमिक शिक्षा को यथाशीघ्र सर्वसुलभ सार्वभौमिक तथा सर्वव्यापी बनाया जाये। कहने का अभिप्राय यह है कि प्राथमिक शिक्षा का विकास इस ढंग से किया जाये कि प्रत्येक बालक को प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा सुलभ हो तथा यह इसका वास्तव में लाभ उठा सके। प्राथमिक शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने के लिए तीन पग उठाने होंगे प्रथम प्राथमिक शिक्षा सुविधाओं को सर्वसुलभ बनाना होगा, द्वितीय, प्राथमिक स्कूलों में नामांकन को सर्वसुलभ बनाना होगा, तथा तृतीय, प्राथमिक स्कूलों में बालकों के टिके रहने को सर्वसुलभ बनाना होगा।

सुविधाओं का सर्वव्यापीकरण प्राथमिक शिक्षा सुविधाओं को सर्वव्यापी बनाने से अभिप्राय सभी बालकों के लिए उनके घर के नजदीक प्राथमिक स्कूल के होने से है जिससे सभी बालक पढ़ने के लिए सुगमतापूर्वक स्कूल जा सके। प्राथमिक शिक्षा सुविधाओं को सर्वव्यापी बनाने के लिए प्रत्येक गाँव तथा आबादी, चाहे वह कितनी ही छोटी क्यों न हो, में प्राथमिक स्कूल खोलने होंगे।

इसके साथ-साथ प्राथमिक स्कूल ऐसे स्थानों पर स्थापित किये जाने होंगे जहाँ पहुँचने में छात्रों को कोई परेशानी न हो। दूसरे शब्दों में प्राथमिक विद्यालय यथासम्भव बालकों के घर के निकट होने चाहिए। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अनेक प्राथमिक स्कूल खोले जा चुके हैं तथा प्राथमिक शिक्षा सुविधाओं को सर्वव्यापी बनाने का कार्य काफी सीमा तक पूरा हो गया है।

नामांकन का सर्वव्यापीकरण-

प्राथमिक स्कूलों में नामांकन को सर्वव्यापी बनाने से अभिप्राय वांछनीय आयु वर्ग 6 से 14 वर्ष तक के सभी बालकों को प्राथमिक स्कूलों में प्रवेश दिलाने से हैं। साधारणतः देखा जाता है कि अनेक बालक स्कूल में प्रवेश ही नहीं लेते हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार लगभग 9% बालक (लड़कों में 1% व लड़कियों में 15% ) स्कूल की कक्षा एक में प्रवेश ही नहीं लेते हैं। अतः प्राथमिक शिक्षा सुविधा उपलब्ध कराने के उपरान्त यह भी परम आवश्यक है कि सम्बन्धित आयु वर्ग के सभी बालक पढ़ने के लिए प्राथमिक स्कूलों में प्रवेश ले लें। विभिन्न राज्यों द्वारा इस विषय में बनाये अधिनियमों के बावजूद भी इस उद्देश्य की पूर्ण प्राप्ति अभी तक सम्भव नहीं हो सकी है। ग्रामीण व पिछड़े क्षेत्रों में तो यह समस्या और भी अत्यधिक व्यापक है।

टिके रहने का सर्वव्यापीकरण

प्राथमिक स्कूलों में बालकों के टिके रहने को सर्वव्यापीकरण बनाने से अभिप्राय स्कूल में प्रवेश लेने के उपरान्त प्राथमिक शिक्षा की समाप्ति तक बालक का स्कूल में बने रहने से है। साधारणतः यह देखा जाता है कि अनेक छात्र प्राथमिक शिक्षा को पूर्ण किये बिना ही स्कूल जाना छोड़ देते हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार लगभग 40% छात्र (लड़कों में 35% व लड़कियों में 50%) कक्षा पाँच से पूर्व तथा 65% (लड़कों में 57% व लड़कियों में 7896) कक्षा आठ से पूर्व ही अपनी पढ़ाई छोड़ देते हैं। जिसके कारण कक्षा एक में प्रवेश लेने वाले प्रत्येक 100 छात्रों में से केवल 60 छात्र (लड़कों में 65% व लड़कियों में 45%) ही कक्षा पाँच में तथा केवल 35 छात्र (लड़कों में 43% व लड़कियों में 32%) ही कक्षा आठ में पहुँच पाते हैं। शेष बालक बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं। जब तक प्राथमिक शिक्षा के दौरान ही स्कूल छोड़ जाने वाले छात्रों की इस विशाल संख्या में कमी नहीं लाई जाती है तब तक प्राथमिक शिक्षा को सर्वसुलभ, सार्वभौमिक तथा सर्वव्यापी बनाने का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकेगा।

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स्पष्ट है कि अनिवार्य व निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा के संवैधानिक दायित्व को पूरा करने के लिए यह आवश्यक है कि प्राथमिक शिक्षा को सर्वव्यापी बनाया जाये। इसके लिए 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बालकों के लिए उनके घर से यथासम्भव नजदीक प्राथमिक विद्यालय उपलब्ध कराने होंगे। 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बालकों को प्राथमिक स्कूलों में प्रवेश लेने के लिए बाध्य करना होगा, तथा प्राथमिक स्कूलों में प्रवेश पाये सभी छात्रों को प्राथमिक शिक्षा पूर्ण कर लेने पर ही स्कूल छोड़ने की अनुमति देनी होगी। इन तीनों कार्यों को पूरा करने के लिए सभी अर्थात् अभिभावक, समुदाय व सरकार के सक्रिय सहयोग से सतत् प्रयत्न करने होंगे।

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