प्राथमिक शिक्षा का महत्त्व और आवश्यकता सभी लोग इस बात को भली-भाँति जानते हैं कि शिक्षा मानवीय विकास का मूल साधन है। शिक्षा के अभाव में इस आधुनिक युग में मानव किसी भी क्षेत्र में प्रगति नहीं कर सकता। उसका जीवनयापन करना भी दूभर हो जाता है। अतः मानव-जीवन में शिक्षा का महत्त्व क्या है? इसकी आवश्यकता क्यों है? इसके विवरण का अप्रलिखित आधारों पर उल्लेख किया जा रहा है।
1. प्राथमिक शिक्षा एक लोक शिक्षा
इस वर्तमान युग में आज सम्पूर्ण राष्ट्रों में प्राथमिक शिक्षा के महत्व को स्वीकार किया जा रहा है। इसलिए अन्य राष्ट्रों की तरह भारत में प्राथमिक शिक्षा को निःशुल्क एवं अनिवार्य बना दिया गया है। यहाँ अनिवार्य से तात्पर्य है कि कम-से-कम इतनी शिक्षा तो सभी लोगों को प्राप्त करनी ही है, जो शिक्षा सभी के लिए अनिवार्य होती है, उसे सामान्य रूप से लोक शिक्षा कहा जाता है। जो लोग किसी कारण शिक्षा से वंचित रह गये सरकार उन्हें शिक्षा प्रौढ़ शिक्षा के रूप में प्रदान कर रही है। अगर अनिवार्यता के नियम का कठोरता के साथ पालन किया जाये तो प्रौढ़ शिक्षा का रूप ही बदल जाएगा। यानि जिस-जिस | व्यक्ति ने प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर ली होगी उसे प्रौढ़ावस्था में प्राथमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम के अध्ययन की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। सभी भारतीय शिक्षित होंगे और अपने सामान्य जीवन की बातों से अवगत होंगे। अतः प्राथमिक शिक्षा एक लोक शिक्षा है।
प्राथमिक शिक्षा भावी शिक्षा का आधार
प्रत्येक राष्ट्र के सभ्य समाज में प्राथमिक शिक्षा के अन्तर्गत बालकों को सम्प्रेषण के माध्यम से भाषा का ज्ञान कराया जाता है। उन्हें जीवन के आधारभूत सामान्य मानव-व्यवहारों में प्रशिक्षित किया जाता है। उनमें देखने, समझने की क्षमता उत्पन्न की जाती है। साथ ही उन्हें अध्ययन कौशल में भी प्रशिक्षित किया जाता है। यह सब बालक को प्राथमिक शिक्षा के अन्तर्गत बताया जाता है जो भविष्य की शिक्षा के साधन होते हैं। इन्हीं साधनों पर भविष्य की शिक्षा निर्भर करती है। अतः स्पष्ट है कि प्राथमिक शिक्षा भावी शिक्षा का आधार है।
प्राथमिक शिक्षा सामान्य जीवन की शिक्षा
आज सभी लोगों के द्वारा स्वीकार किया जाता है कि प्राथमिक शिक्षा लोक शिक्षा है, जनशिक्षा है एवं सभी के लिए शिक्षा है, क्योंकि इसके पीछे यह भाव निहित है कि प्राथमिक शिक्षा के ही तहत् प्रत्येक व्यक्ति को सामान्य जीवन की शिक्षा प्रदान की जाती है और उन्हें सामान्य जीवनयापन के योग्य बनाया जाता। है। अतः कह सकत है कि प्राथमिक शिक्षा सामान्य जीवन की शिक्षा है।
प्राथमिक शिक्षा देश के अधिकांश लोगों की शिक्षा-
देश के अतीत एवं वर्तमान को देखने से ज्ञात होता है कि सरकार देश के लोगों को शिक्षित करने के लिए भरसक प्रयास कर रही है। लेकिन अभी तक प्राथमिक शिक्षा को पूर्णरूप से निःशुल्क एवं अनिवार्य नहीं बनाया जा सका है और जो लक्ष्य हमारे सामने मौजूद है, वह भी प्रथम कक्षा से आठवीं कक्षा तक की शिक्षा को निःशुल्क एवं अनिवार्य करने का है। आँकड़ों के अनुसार आठवीं कक्षा के उपरान्त बहुत कम बच्चे शिक्षा आगे जारी रख पाते हैं। अतः स्पष्ट है कि अधिकांश लोगों की पूर्ण शिक्षा प्राथमिक शिक्षा ही है।
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प्राथमिक शिक्षा व्यक्तित्व सृजन का आधार
इस वैज्ञानिक युग में मनोवैज्ञानिकों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि व्यक्ति के व्यक्तित्व का सृजन उसकी प्रारम्भिक अवस्था अर्थात् शिशुकाल में सर्वाधिक होता है। उसे जो भी बनना होता है, उसका 3/4 भाग शिशु अवस्था में बन जाता है। तभी कहा जाता है कि ‘पूत के पाँव पालने में ही दृष्टिगोचर होने लगते हैं यानि शिशु अवस्था में बालक की शिक्षा का आधार जैसा होता है, बालक आगे चलकर वैसा ही मुकाम निश्चित करता है। प्राथमिक विद्यालयों में बालक अपने-अपने संस्कार लेकर आते हैं। इस अवस्था में वे इतने परिपक्व नहीं हो जाते कि उन्हें सही दिशा दी जा सके। प्राथमिक विद्यालयों में बालकों का सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक एवं चारित्रिक विकास किया जाता है और मानव व्यवहार में प्रशिक्षित किया जाता है। अतः स्पष्ट है कि व्यक्ति के व्यक्तित्व का सृजन प्राथमिक शिक्षा के तहत ही किया जाता है।
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