प्राथमिक शिक्षा का पाठ्यक्रम बताइए।

प्राथमिक शिक्षा का पाठ्यक्रम साधारण भाषा में पाठ्यक्रम से आशय विद्यालय के सम्पूर्ण वातावरण से है, जिसमें पाठ्य-वस्तु, अध्ययन, सम्पर्क एवं क्रियाएँ शामिल हैं, परन्तु वर्तमान प्रणाली में इसका अर्थ बड़ा ही व्यापक है। आज शिक्षा का उद्देश्य केवल एक निति पाठक- पुस्तक कंठस्थ करा देना नहीं है। हमें बालकों की रुचि, इच्छाओं, प्रवृत्तियों, क्षमताओं एवं मनोवृत्तियों आदि को ध्यान में रखकर शिक्षा देना है।

वर्तमान प्राथमिक स्तर के पाठ्यक्रम में अनेक दोष पाये जाते हैं। यह बहुपुस्तकीय, सैद्धांतिक, संकुचित एवं कृत्रिम है और रटने पर जोर देता है। विषयों की भरमार के कारण यह बहुत घना, बोझिल एवं भार स्वरूप जाना पड़ता है। इसमें निबंधात्मक शिक्षाओं का बाहुल्य है। यह बालकों के व्यक्तिगत अन्तरों के प्रतिकृत है। अतः इसमें परिवर्तन करने की जरूरत है। इसलिए कोठारी आयोग 1966 ने अवर प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्तर के पाठयक्रम का पुनर्गठन किया जो इस प्रकार है

अवर प्राथमिक स्तर

यह स्तर कक्षा 1 से 4 अथवा 5 तक है। इस पाठ्यक्रम में एक भाषा (मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा), गणित, वातावरण का अध्ययन, (कक्षा 3, 4 व 5 में विज्ञान तथा सामाजिक विषय) सृजनात्मक क्रियाएँ, कार्य अनुभव एवं समाज सेवा तथा स्वास्थ्य शामिल है।

प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण की विवेचना कीजिए।

उच्च प्राथमिक शिक्षा

इस स्तर में कक्षा 5 या 6 से 8 शामिल है। इसके पाठ्यक्रम के विषय में दो भाषाएँ (मातृ भाषा अथवा क्षेत्रीय एवं हिन्दी या अंग्रेजी), कला, कार्य अनुभाव व समाज-सेवा, शारीरिक शिक्षा तथा नैतिक व आत्मिक मान्यताओं की शिक्षा शामिल हैं। इसके अलावा इस स्तर पर एक तीसरी भाषा (अंग्रेजी, हिन्दी अथवा क्षेत्रीय भाषा) का ज्ञान छात्रों को वैकल्पिक विषय के रूप में दिया जा सकता है। यहाँ यह भी जानना आवश्यक है कि वर्तमान भारत सरकार प्राथमिक शिक्षा स्तर को कक्षा सातवीं तक रखने के पक्ष में है।

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