Ancient History

प्राचीन मिस्र की धार्मिक स्थिति पर प्रकाश डालिए।

प्राचीन मिस्र की धार्मिक स्थिति – आदिम आस्था और भौतिक प्रभाव सामाजिक दशाओं का मुखापेक्षी मिस्त्री धर्म तीन सहस्राब्दियों के अपने प्राचीन इतिहास में सदा गतिमान रहा और उसने कई परिवर्तनों का साक्षात्कार किया। इस धर्म में एक सर्वमान्य धार्मिक पद्धति की सार्वभौम धारा कभी नहीं रही। मिस्री धर्म की संरचना का मौलिक और अपरिहार्य आधार, स्थानीय जीवन के भौतिक स्तरों से विकसित आदिम आस्था बनी रही। आदिम समुदायों में मिस्री जीवन की धार्मिक संकल्पना में जिन कुलचिन्हों और पशुओं की महत्ता स्थापित हो चुकी थी उन्हीं में संशोधन, परिवर्द्धन करके उसे नये समाज की भौतिक आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया गया। नये ऐतिहासिक युग में ‘मिस्त्रियों ने अलौकिक शक्तियों से सम्पर्क का मार्ग तलाशते हुये द्रष्टव्य ठोस रूपाकारों को देवत्व मण्डित किया।’ देवताओं की परिकल्पना में मनुष्यों की तरह उन्हें भी ईर्ष्यालु, क्रूर, प्रेमी, कामुक, न्याय परायण और वीर बताया गया। धीरे-धीरे स्थानीय सरदारों और कुलीनों के अनुरूप देवताओं के आदर्शीकृत, गौरवशाली रूप का प्रस्तुतीकरण हुआ।

प्रकृति की गोद में सांस ले रहे मिस्री मनुष्य के लिये चारों तरफ वह प्राकृतिक परिदृश्य विद्यमान था जिस पर उसका सम्पूर्ण अस्तित्व अवलम्बित था अतः देवी संकल्पना में पृथ्वी, आकाश, वायु, सूर्य, चन्द्रमा, नील की बाढ़ आदि का महत्वोन्नयन हुआ, धार्मिक आस्था के इस विकास में मछली और पानी की तरह मिस्री लोग प्रतीकात्मकता के प्रति आसक्त रहे तथा उनके जीवन के सभी पहलू धर्म से अनुप्राणित रहे।

मिस्री धर्म के विवेचन के सन्दर्भ में उल्लेखनीय है कि प्राचीन मिस्र छोटे-छोटे राज्यों (नोम्स) के समुच्चय से विकसित हुआ जिसमें प्रत्येक राज्य का एक प्रधान सरदार और एक प्रधान देवता था। मातृसत्तात्मक समुदाय की अवशिष्टरूपा मातृदेवी के प्रभाव से प्राचीन पशुदेवताओं के साथ देवियों की अत्यधिक महत्ता थी। अपने-अपने क्षेत्रों में इन देवी- देवताओं की सर्वोच्चता बनी हुई थी। कालान्तर में राजवंशीय काल में राजनीतिक एकीकरण हुआ जिससे छोटे राज्यों का विलयन हुआ। इसका प्रत्यक्ष प्रभाव धर्म पर पड़ा। शान्तिपूर्ण तरीकों से मिलाये गये राज्यों के देवी-देवता, लिंग और आयु के आधार पर सत्ताधारी क्षेत्र के देवताओं के पति, पत्नी, पिता या पुत्र रूप में समायोजित कर लिये गये लेकिन विजेता राज्यों ने पराजितों के देवताओं का अवमूल्यन करके उन्हें विरोधी और अशुभ मान लिया। जे० एम० त्वर्ट्स की यह मान्यता प्रमाणिक लगती है कि ‘मिस्री’ धर्म ने उसके राजनीतिक रूप को अतिजीवन दिया और राजनीति ने धर्म को शरण देकर उसे कायम रक्खा।’

देवमण्डल – बहुदेववादी मिस्र में एमन, री, होरूस, सेतेख, अनुविस, टॉथ, हापी और ओसिरिस तथा अन्यअनेक देवताओं की कल्पना की गई थी। इसमें विजयदाता एमन प्रत्येक फराओं का पिता समझा जाता था उसकी पत्नी ‘मत’ तथा पुत्र ‘खोसू’ था। मिस्री देवताओं की कल्पना में पारिवारिक त्रयी का महत्व स्वीकृत था। एमन प्रायः कामविहीन माना जाता था।

एमन-देवताओं में महानतम एमन प्रारम्भ में थिविस का स्थानीय देवता था जो थिबिस के राजनीतिक उत्थान की लहरों के साथ ज्ञात विश्व का सर्वोच्च देवता बना। जब थिविस मात्र एक छोटा प्रान्तीय नगर था तो बतख या भेड़े के रूप में कल्पित एमन साधारण हैसियत का था लेकिन थिबिस के भाग्य सितारे की चमक से एमन का प्रभामण्डल भी गौरवान्वित हुआ। इधर छठे राजवंश के समय थिविस राजधानी बनी और कथाओं और नाटकों के विषय-वस्तु होकर अत्यन्त लोकप्रिय हुये। ये दोनों आकाश देवी के शिशु समझे जाते थे। नून्त नगर में पूजित सेतेख को रहस्मय जानवर के रूप में परिकल्पित किया गया था। कवीलाई संघर्षों में होरूस के भक्तों ने सेतेख के पूजकों को परास्त कर दिया जिससे देवता होरूस की प्रतिष्ठा बढ़ गई। पिरामिड पाठ में फराओं के शिरोवेष्ठन पर स्थित नाग की पहचान सेतेख से की गई है और गरुड़, होरूस का प्रतीक था जो मिस्र के दोनों क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते थे।

‘ओसिरिस और फराओ

सामाजिक विकास के साथ धार्मिक आस्था के परिवर्तन का विशिष्ट उदाहरण ओसिरिस के सम्बन्ध में स्पष्टतः दिखलाई पड़ता है। गर्जेन काल में इसकी उपासना पर बाह्य प्रभाव पड़ा। फराओ को ओसिरिस का सजीव रूप माना गया। प्रजनन और पैदावार से सम्बन्धित आख्यानों का ताना-बाना ओसिरिस के व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द बना गया और फराओ की पूजा, जीवित तथा मृत दोनों रूपों में सक्रिय रही। फराओ को दैवी प्रतिनिधि और देवात्मा का अंशभागी माना गया था और जनता उसे पृथ्वी पर देवता सतझती थी। इस प्रकार ओसिरिस के समरूप फराओ अर्थात् सजीव ओसिरिस से जुड़े देवता आकाश देवी के बच्चे समझे जाते थे। ये थे-मत्, आइसिस, नेपथीस, होरूस और सेतेख। पहले, आख्यान की भावना बनाये रखने के लिये आदित स्तर पर राजा का बलिदान किया जाता था लेकिन बाद में उसके स्थानापन्न व्यक्ति की बलि चढ़ाई जाती थी। वन्य जीवन की इस उपासना पद्धति में ओसिरिस को वराह की बलि दी जाती थी जिसके प्रमुख केन्द्र एवाइडेंस और बुसिरिस थे।

परलोक (अधोलोक, मृतकों की भूमि या यारूभूमि) की अवधारणा में महत्वपूर्ण ओसिरिस, प्राकृतिक सत्ता का प्रतीक था जो नीलघाटी की उर्वरता के लिये पूज्यमान था। उसे प्रकृति की रहस्मय प्रक्रिया का व्याख्याता और मिस्री सभ्यता का जन्मदाता स्वीकार किया था।

इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रत्येक मिथकीय परिकल्पना का एक सुनिश्चित भौतिक आधार जिसे मिस्र में शायद सर्वाधिक स्पष्ट तरीके से अभिव्यक्त किया गया था। मिस्री धर्म का यह पहलू स्वाभाविक रूप से समाजार्थिक विकास की आदिम अवस्था से जुड़ा हुआ था क्योंकि ‘मानव मस्तिष्क में बनने वाले छायाभास भी अनिवार्यतः उस भौतिक जीवन प्रक्रिया के पदार्थ हैं, जो अनुभव द्वारा परखी जा सकती है और जो भौतिक पूर्वाधारों से सम्बद्ध है।’

प्रसिद्ध देवियाँ

मानव समाज के विकास में प्रागैतिहासिक काल से ही मातृ देवी की पूजा का महत्व रहा है, प्राचीन मिस्र भी इसका अपवाद नहीं था। आइसिस नामक देवी उपजाऊ नील घाटी की काली मिट्टी के रूप में रहस्यमय सृजनशक्ति का प्रतीक समझी मानते जाती थी। उसे ओसिरिस की पत्नी माना गया था। मिस्र में श्रद्धा और भक्ति के साथ झांकियां निकालकर आइसिस की पूजा की जाती थी। होरूस को उसका अलौकिक पुत्र थे। यह विश्वास था कि वही ‘री’ का रहस्यमय नाम जानती थी। चिकित्सा में भी इस महादेवी का आवाहन किया जाता था। वह सर्वोच्च मां समझी जाती थी। आइसिस को स्वर्ग की देवी. देवमाता, देवियों में महानतम, महा-मायाविनी, जादू की रानी और मंत्रज्ञा समझा था।

असीरियन सभ्यता की कला एवं स्थापत्य का वर्णन कीजिए।

मृतकों की संरक्षिका नेपथीस घर की स्वामिनी और बहन आइसिस के साथ ओसिरिस के किये शोक मनाने वाली मानी जाती थी गिद्ध देवी नेखेन्त को राजा की रक्षिका माना जाता था और यही कल्पना आक्रांता नागदेवी वज्त के लिये भी की गई थी। मंदिरों की स्थापना में सेशत नामक देवी का महत्व था। आदिम समुदाय की पशुचारक अवस्था से मान्यता प्राप्त हेवर देवी का महत्व ऐतिहासिक काल में भी बना रहा। उन्हें परलोक में मृतकों का स्वागत करने वाली देवी माना जाता था जिनका पवित्र रूप गाय का था। महारानी से लेकर महागरीब औरत एक सर्वपूज्य तउर्त देवी का महत्व प्रजनन के सम्बन्ध में था। चित्रों में उन्हें दो पैरों पर खड़ी दरियाई घोड़ी के रूप में दिखाया गया है जो गर्भिणी का आभासी सब लगता है। बस्त नामक बबेस्तिस की देवी बिल्ली के सिर से युक्त कल्पित की गई थी। यह स्थानीय उपेक्षिता देवी भी अपने स्थान के राजनीतिक महत्व के साथ अधिक लोकप्रय हुई। बस्त देवी के मंदिर में कई व्यभिचारपूर्ण समारोह होते थे निका प्रभाव यूरोप पर पड़ा था।

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