प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के पुरातात्विक स्रोत क्या है?

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प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के पुरातात्विक स्रोत – इतिहास के स्रोत के रूप में पुरातात्विक सामग्री का विशेष स्थान हैं। पुरातात्विक सामग्रियों को हम निम्न रूपों में विभाजित कर सकते हैं-

(i) उत्खनन से प्राप्त सामग्री

उत्खनन सामग्री के द्वारा ही प्राचीन भारतीय संस्कृति का प्रारम्भिक रूप (प्रागैतिहासिक काल ) निर्धारित किया गया है, जो भारत के विभिन्न भागों में खुदाई करने के पश्चात् हमें प्राप्त हुई है। हड़प्पा, मोहनजोदड़ों, लोथल, रोपर, कालीबंगा, आदि ऐसी सामग्री को प्राप्त करने के मुख्य केन्द्र है। इन स्थानों की खुदाई में मूर्तियाँ, मुद्राएँ, हथियार, औजार, वर्तन, आभूषण बटखरे तथा ईंटें प्राप्त हुई है।

(ii) अभिलेख

अभिलेखों के अन्तर्गत शिलालेख, स्तम्भ लेख, गुहा लेख, ताम्रपत्र, प्रशस्तियाँ, दानपत्र आते हैं। इनसे ऐतिहासिक घटनाओं का पता लगाने में विशेष रूप से सहायता ली जाती है।

(iii) मुद्राएँ

प्राचीन भारतीय संस्कृति के कई महत्वपूर्ण पहलुओं की जानकारी मुद्राओं से मिलती है। इतिहास के विद्वान इस बात पर सहमत है कि ई.पू. 306 से लेकर 300 ई. तक के प्राचीन भारतीय संस्कृति के जानने का यही एक प्रमुख साधन है।

प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में आप क्या जानते हैं?

(iv) स्मारक

स्मारकों के द्वारा भी हमें प्राचीन भारतीय संस्कृति के कई महत्वपूर्ण अंगों का ज्ञान होता है। ये दो रूपों में देखने को मिलते हैं। प्रथम देशी तथा द्वितीय विदेशी।

देशी स्मारक हमें मोहनजोदड़ों, हड़प्पा, तक्षशिला, कोसल, कसिया, नालन्दा, साँची, लक्षमणपुर, बनवासी, मथुरा, काशी, सारनाथ, पाटलिपुत्र, राजगिरि, भरहुत, अगदी, पत्तदकल, चित्तलद्रुत तालकुड से प्राप्त हुआ है, जिनका अपने-अपने दृष्टिकोण से बड़ा महत्व है। प्राचीन भारतीय संस्कृति की काल सीमा का ज्ञान मोहनजोदड़ों तथा हड़प्पा के स्मारकों से किया जाता है। विदेशी स्मारकों से प्राचीन भारतीय संस्कृति, भारतीय स्थापत्य कला, चित्रकला की नवीन शैलियों का अच्छा ज्ञान प्राप्त होता है। चीन, तुर्किस्तान आदि विदेशी स्मारकों से तथा भित्ति चित्रों, मूर्तियों एवं शासकों के आज्ञा पत्रों से भी प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।

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