पूँजीवाद के विकास में प्रोटेस्टेड धर्म – वेबर ने विश्व के प्रमुख धर्मों का व्यापक अध्ययन करके धर्म की समाजशास्त्रीय व्याख्या करने का प्रयास किया है। वेबर ने अपने ग्रन्थों में धर्म और आर्थिक व सामाजिक घटनाओं के सम्बन्ध का उल्लेख किया है।
वेबर के धार्मिक विचारों या धर्म के समाजशास्त्र की व्याख्या उसके प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘दी प्रोटेस्टेन्ट एथिक्स एण्ड दि स्प्रिंट ऑफ कैपिटलिज्म’ में देखने को मिलती है। धार्मिक कारक को एक परिवर्तनीय तत्त्व स्वीकार करते हुए वेबर आर्थिक व्यवस्था पर उसका प्रभाव प्रकट करने की दृष्टि से धर्म की आर्थिक आचार सम्बन्धी व्यवस्था को अपने अध्ययन का आधार मान लेते हैं और इसी आधार पर धर्म के आर्थिक जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों को खोजने का प्रयास करते हैं। पूँजीवाद के विकास में प्रोटेस्टेन्ट धर्म का योगदान निम्न है-
1. प्रोटेस्टेन्ट धर्म को सर्वप्रथम बेंजामिन फ्रेंकलिन ने महत्त्व दिया कहा कि यदि व्यक्ति अपने व्यवसाय में कठोर परिश्रम करता है और अधिकतम सफलता प्राप्त करता है। तो मृत्यु के बाद वह सीधे स्वर्ग को जाता है। ईश्वर, कार्य या व्यवसाय में सफलता प्राप्त करने में अपनी सच्ची सेवा मानता है। निर्वाण की प्राप्ति या मोक्ष, चर्च में जाने या तीर्थयात्रा से नहीं मिलता वरन् अपने व्यवसाय के प्रति पूर्ण योग्यता और सतर्कता से कार्य करने से मिलता है।
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2. प्रोटेस्टेन्ट धर्म की दूसरी मान्यता है कि पैसा, पैसों को पैदा करता है। “इस मान्यतानुसार वर्ष पर ब्याज प्राप्त करना दोष रहित क्रिया बतलाया गया है अर्थात् प्रोटेस्टेन्ट धर्म ने उधार रुपया देकर इस पर ब्याज वसूल करना उचित ठहराया है। पूँजीवादी व्यवस्था के विकास में इस मान्यता का विशेष हाथ है।
3. प्रोटेस्टेन्ट धर्म की यह मान्यता है कि परमात्मा को प्रसन्न करने के लिए निरन्तर कार्य करते रहना चाहिए। यह मान्यता ही पूँजीवाद के आदर्श प्रारूप की प्रमुख विशेषता व आधार है।
4. प्रोटेस्टेन्ट आचार व्यवस्था अधिक छुट्टियों के पक्ष में नहीं है जबकि कैथोलिक आचार व्यवस्था अधिक छुट्टियों में विश्वास करती है।
इस प्रकार प्रोटेस्टेन्ट धर्म के आधारभूत नियम और मान्यताएँ पूँजीवाद के विकास में शक्तिशाली कारकों के रूप में समझे जाते हैं।