प्रस्तावना – आज हम विज्ञान के युग में जी रहे हैं। विज्ञान के चमत्कार हमारे लिए वरदान साबित हो रहे हैं, लेकिन कुछ आविष्कार ऐसे भी हैं जो वरदान के साथ-साथ सबसे बड़ा अभिशाप भी बन चुके हैं। हम यह भी कह सकते हैं कि विज्ञान का वरदान या अभिशाप होना हमारे उपयोग पर भी निर्भर करता है। इसी सन्दर्भ में हम प्लास्टिक की थैलियों तथा अन्य प्लास्टिक वस्तुओं को वरदान तथा अभिशाप दोनों रूपों में देख सकते हैं।
प्लास्टिक थैलियों की उपयोगिता
यह तो सर्वविदित है कि ‘प्लास्टिक’ आज हमारे जीवन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। आज प्लास्टिक थैलियों, खिलौनों, वर्तनों, डिब्बों तथा और भी अनगिनत रूपों में हमारी दैनिक आवश्यकता का अभिन्न अंग बन चुका है। इसका मुख्य कारण यह है कि यह सुविधाजनक तथा सस्ता होता है। पीतल तथा ताँबे जैसी महँगी तथा कठिनता से प्राप्त होने वाली वस्तुओं की अपेक्षा प्लास्टिक के डिब्बे तथा थैलियाँ इत्यादि बहुत सस्ते दामों पर आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं साथ ही बरसात आदि के मीसम में प्लास्टिक के डिब्बों में रखा सामान खराब भी नहीं होता है। इसीलिए प्लास्टिक का उत्पादन विश्व के सभी देशों में बड़े स्तर पर होने लगा है। यह कहना अनुचित न होगा कि आज हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्लास्टिक ने अपनी उपयोगिता सिद्ध कर दी है तथा इन सभी में प्लास्टिक की थैलियाँ सबसे अधिक लोकप्रिय साबित हुई हैं।
प्लास्टिक की वैलियाँ बनाने की विधि
प्लास्टिक की थैलियाँ बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के रंगों का उपयोग किया जाता है। प्लास्टिक में विभिन्न रंगों के पिगमेन्ट मिश्रित करके रंग-बिरंगे लिफाफे बनाए जाते हैं। जीवन के अन्य क्षेत्रों की भाँति कृषि के क्षेत्र में भी प्लास्टिक अपनी उपयोगिता सिद्ध कर चुकी हैं। आज अमेरिका, जापान व इसराइल सहित यूरोप के अनेक देशों में किसानों ने प्लास्टिक थैलियों का हर सम्भव उपयोग किया है। अन्य विकासशील देश भी इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। हमारा देश भी पीछे नहीं हैं तभी तो यहाँ के किसानों एवं व्यापारियों आदि ने भी इसकी उपयोगिता को बड़े स्तर पर समझना आरम्भ कर दिया है।
प्लास्टिक थैलियों की हानियाँ
निःसन्देह प्लास्टिक थैलियाँ हमारे लिए सुविधाजनक साबित हुई है परन्तु इसके अधिकाधिक उपयोग ने इसे हानिकारक बना दिया है। सर्वप्रथम तो इन थैलियों में प्राकृतिक रूप में विघटित होने की क्षमता नहीं होती। इससे प्रदूषण फैल रहा है। थैलियों के उत्पादन की प्रक्रियाओं से लेकर उपयोग के विभिन्न तरीकों तक यह प्रदूषण का मुख्य कारण साबित हो रही है। थैलियाँ विशुद्ध कार्बनयुक्त रासायनिक पदार्थों से ही तैयार की जाती है इसलिए जब इनकी उत्पादन प्रक्रिया प्रारम्भ होती है, तभी से इससे गैसों का रिसना प्रारम्भ हो जाता है इससे श्रामिकों के स्वास्थ्य पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि इन थैलियों से निकलने वाली गैस का धुआँ उनके फेफड़ों, आँखों आदि के लिए बहुत हानिकारक होता है। इसके साथ ही पर्यावरण भी दूषित होता है। इसके निर्माता यह बात भली-भाँति जानते हैं कि इन थैलियों के उत्पादन के समय फोसजीन, फार्मोल्डहाइड जैसे विषैले कारकों का उपयोग होता है, जिनसे कैंसर, त्वचा तथा श्वाँस से सम्बन्धित रोग तो फैलते ही हैं, साथ ही वातावरण भी विषैला हुए बिना नहीं रहता।
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इसकी हानियों का अन्त यही पर नहीं होता। थैलियाँ उपयोग करने के पश्चात् इधर-उधर गढ्ढों और नालियों आदि में फेंक दी जाती है जिनसे जल प्रदूषित होता है। इसके अतिरिक्त कूड़े के ढेर के रूप में भी ये इधर-उधर फेंक दी जाती है जिन्हें जानवर मुँह में डालते हैं और यदि गलती से ये थैलियाँ किसी जानवर के गले में चली जाए तो उस जानवर की मृत्यु भी हो सकती है। इसके अतिरिक्त इन थैलियों का कूड़ा करकट प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को भी दुष्प्रभावित करता है। इस प्रकार अधिकतर प्रदूषण के कारण में प्लास्टिक की थैलियाँ ही हैं।
उपसंहार – आज की थैलियों पर्यावरणविदो के लिए चिन्ता का विषय बन चुकी है। अभी कुछ दिनों से दिल्ली सरकार ने इन प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबन्ध लगा दिया है तथा सभी ग्राहकों से यह अपील की जा रही है कि ये बाजार में कपड़े या कागज का थैला लेकर जाए। वास्तव में सरकार की ओर से उठाया जाने वाला यह एक बेहद सराहनीय कदम है।