फ्रांस के राष्ट्रपति के कार्य एवं शक्तियों की विवेचना कीजिए।

फ्रांस के राष्ट्रपति के कार्य और शक्तियाँ – राष्ट्रपति की जिन शक्तियों का उल्लेख किया गया है उनसे यही प्रकट होता है कि उसकी कुछ शक्तियाँ अपनी है और कुछ शक्तियाँ ऐसी हैं जिनका वह प्रधानमंत्री के साथ प्रयोग करता है। राष्ट्रपति को व्यापक शक्तियाँ संविधान द्वारा प्रदत्त है जो निम्नलिखित हैं-

कार्यपालिका शक्तियाँ

संविधान के अनुसार राष्ट्रपति का यह कर्तव्य है कि वह देखें कि संविधान का संरक्षण तथा अनुरक्षण है। उसे यह भी निश्चित करना होगा कि “जन शक्तियाँ उचित ढंग से अपनी कार्य करती रहें तथा राष्ट्र का कार्य विधिवत् रूप से संचालित हो। संविधान राष्ट्रपति को स्वतंत्रता, राष्ट्रीय क्षेत्र की एकता तथा समाज के समझौतों व सन्धियों के सम्मान के प्रति उत्तरदायी बनाता है।

पंचम गणतंत्र के संविधान में मंत्रिमण्डल की नियुक्ति करने का अधिकार राष्ट्रपति को दिया गया है। प्रधानमंत्री के लिए यह आवश्यक नहीं रहा है कि वह अपनी नियुक्ति के बाद राष्ट्रीय सभा का विश्वास प्राप्त करे। अब मंत्रिमण्डल के सदस्यों को पदच्युत कर सकता है। राष्ट्रपति मंत्रिमण्डल बैठकों का सभापतित्व करता है।

सन् 1946 के संविधान में राष्ट्रपति के प्रत्येक कार्य पर किसी न किसी मंत्री के प्रति हस्ताक्षर (Counter-signature) होने आवश्यक पे फलस्वरूप राष्ट्रपति की शक्ति औपचारिक थी और मंत्रियों की वास्तविक वर्तमान संविधान के अन्तर्गत कार्यपालिका शक्तियों को दो भागों में विभाजित किया गया है, एक भाग के कार्यों के लिए राष्ट्रपति को मंत्रियों के परामर्श के अनुसार कार्य करना अनिवार्य है, इस भाग के कार्यों के लिए सम्बन्धित मंत्री के प्रति हस्ताक्षार होने चाहिए। दूसरे भागों में कुछ ऐसे कार्य हैं, जिनमें राष्ट्रपति मंत्रियों के परामर्श के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य नहीं है। उसके इन कार्यों से सम्बन्धित आदेशों के लिए वह आवश्यक नहीं है कि प्रधानमंत्री या विभागीय मंत्री अपने प्रति हस्ताक्षर करें राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ, जनमत, संग्रह के ढंग, राष्ट्रीय सभा को भंग करने, सांविधानिक परिषद के संगठन, प्रधानमंत्री की नियुक्ति आदि से संबंधित महत्त्वपूर्ण अधिकार सम्मिलित हैं।

नवीन संविधान के अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यों को मंत्रिमण्डल से स्वतंत्र करके और उसके महत्त्वपूर्ण कार्यों को राष्ट्रपति के नियंत्रण में लाकर उसे अत्यन्त शक्तिशाली बना दिया है।

संविधान नियुक्तियों के क्षेत्र में तथा अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में राष्ट्रपति को महत्त्वपूर्ण अधिकार देता है। धारा 13 में यह व्यवस्था की गई कि राष्ट्रपति मंत्रिमण्डल द्वारा स्वीकृत अध्यादेशों व आज्ञप्तियों पर हस्ताक्षर करेगा, नागरिक एवं सैनिक पद के लिए नियुक्तियां करेगा तथा राज परिषद के सदस्य, लिजन ऑफ ओनर के महाधिपति राजदूत एवं विशेष प्रतिनिधि, लेखा परीक्षा कार्यालय के अधिकारी सदस्यों, जिला अधिकारियों, अकादमियों के कुलपतियों और केन्द्र शासन के निर्देशकों की नियुक्ति करेगा। अनुच्छेद 14 के अनुसार राष्ट्रपति विदेशों में राजदूतों एवं अमान्य आयुक्तों की नियुक्ति करेगा और विदेशी राजदूतों के परिचय पत्र स्वीकार करेगा। अनुच्छेद 15 के अन्तर्गत राष्ट्रपति देश की सशस्त्र सेनाओं का सेनापति होगा तथा राष्ट्रीय सुरक्षा परिषदों व समितियां का सभापतित्व करेगा।

फ्रेंच समुदाय के सम्बन्ध में राष्ट्रपति को विशेष स्थिति प्रदान की गई है वह समाज का रक्षक है और उसका प्रतिनिधित्व तथा सभापतित्व करता है। फ्रांस के राष्ट्रपति की कार्यपालिका सम्बन्धी शक्तियों को अत्यन्त व्यापक बनाया गया है, राजनीतिक व्यवस्था में अत्यन्त शक्तिशाली स्थान प्रदान करती है।

व्यवस्थापिका शक्तियाँ

व्यवस्थापिका के क्षेत्र में राष्ट्रपति की महत्वपूर्ण शक्तियाँ हैं। संविधान के अनुसार राष्ट्रपति मंत्रिमण्डल की सभाओं की अध्यक्षता करता है, किसी नियम के अन्तिम रूप से पारित होने की सूचना सरकार को देने के 15 दिन के अन्दर उस नियम को लागू कर सकता है। संसद को किसी नियम पर पुनर्विचार के लिए कह सकता है। संसद के जब अधिवेशन हो रहे हों, तो सरकार के प्रस्ताव पर अथवा दोनों सदनों के संयुक्त पारित प्रस्ताव के “सरकारी पत्रिका” में प्रकाशित होने पर राष्ट्रपति जन शक्ति व्यवस्था से संबंधित अथवा राष्ट्रीय संस्थाओं पर प्रभाव डालने वाली किसी संधि की पुष्टि करने का अधिकार प्रदान करने के लिए विधेयक को जनमत संग्रह हेतु प्रेषित कर सकता है एवं जनमत द्वारा स्वीकृत हो जाने पर 15 दिन की अवधि के भीतर उस विधेयक को क्रियान्वित करता है।

राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों को संदेश भेज सकता है। उसके संदेश को दोनों सदनों में पढ़ा जाता है, उन पर वाद-विवाद नहीं किया जा सकता। राष्ट्रपति अपने संदेशों को पढ़े जाने के लिए संसद का विशेष सत्र भी बुला सकता है। राष्ट्रपति को राष्ट्रीय सभा के विघटन की शक्तियां प्रदान की गई हैं। उसकी इस शक्ति पर दो प्रतिबन्ध लगाये गये हैं- (1) एक बार विघटन किये जाने पर एक वर्ष के भीतर राष्ट्रीय सभा का दूसरी बार विघटन नहीं किया जा सकता, (2) संकटकाल में विघटन नहीं किया जा सकता। विघटन के अधिकार प्रयोग आजकल के उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है- राष्ट्रीय सभा एवं मंत्रिमण्डल के मध्य उत्पन्न हुए विवाद की समाप्ति के लिए और स्वयं के तथा राष्ट्रीय सभा को समर्थन प्राप्त प्रधानमंत्री मध्य उत्पन्न हुए विवाद के अन्त के लिए।

संविधान के अनुसार राष्ट्रपति न्यायिक स्वतंत्रता की गारन्टी देता है, राष्ट्रपति को क्षमादान, प्रतिलम्बन, उच्च न्यायालय परिषद् की सभाओं का सभापतित्व करना। इसके 9 सदस्यों को नियुक्त करने का अधिकार भी दिया गया है।

राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ

संविधान में कहा गया है कि जब गणतंत्र की स्वाधीनता, प्रादेशिक प्रभुत्व और अन्तर्राष्ट्रीय समझौते खतरे में हों एवं वैधानिक ढंग से सरकार का काम चलाना कठिन हो जाये, तो ऐसी परिस्थितियों में प्रधानमंत्री, असेम्बलियों के अध्यक्षों और वैधानिक परिषद् के सदस्यों की सलाह से वह उनका समुचित उपाय कर सकता है। संदेश के द्वारा वह राष्ट्र को इन उपायों की सूचना देगा। इन पदों के सम्बन्ध में संवैधानिक परिषद् में मंत्रणा की जायेगी। संसद को एकत्रित होने का अधिकार रहेगा। आपातकालीन शक्तियों के प्रयोगकाल में नेशनल असेम्बली का विघटन नहीं किया जायेगा। विशेष परिस्थितियों में राष्ट्रपति को जो आपातकालीन अधिकार प्रदान किये गये हैं, वे उसे फ्रांस की राज्य व्यवस्था में अत्यन्त शक्तिशाली स्थान प्रदान करते हैं।

पांचवें गणतंत्र का राष्ट्रपति वास्तव में बड़ा शक्तिशाली है। भारतीय राष्ट्रपति की भांति वह नाममात्र का राष्ट्रपति नहीं है। मंत्रिपरिषद की अध्यक्षता करने का अधिकार असली अधिशासी बना देता है। राष्ट्रपति की नियुक्ति सम्बन्धी अधिकार बड़े व्यापक हैं। वह प्रधानमंत्री और मंत्रिमण्डल के सदस्यों के कार्यों पर भी रोक लगा सकता है। मंत्रिपरिषद् के द्वारा तय किये गये अध्यादेश व आदेशों पर हस्ताक्षर करने का उसका अधिकार महत्त्वपूर्ण स्थान है। विधान मण्डल में विधि पास हो जाने के 15 दिनों के अन्दर उन्हें सरकार द्वारा लागू कराता है। उसे अधिकार है कि विधान मण्डल द्वारा पारित कानून से संतुष्ट न होने पर उसे पुनर्विचार के लिए विधान मण्डल भेज सकता है। विधान मण्डल पुनर्विचार करने से इन्कार नहीं कर सकता। वह किसी भी ऐसे कानून को जनमत संग्रह के लिए प्रस्तावित कर सकता है जिसका सम्बन्ध सामुदायिक समझौते की पुष्टि करने से हो। न्याय के क्षेत्र में भी अपराधी को क्षमा करने का उसे अधिकार प्राप्त है, साथ ही इस बात की गारन्टी देता है कि न्यायाधिकारी निर्णय में निष्पक्ष रहेंगे। राष्ट्रपति न्यायपालिका की उच्च परिषद का प्रधान होता है और उसके 9 सदस्यों को नामजद कर सकता है। राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है जो अत्यन्त कठिन कार्य है।

राष्ट्रपति की आचतकालीन शक्तियाँ उसे बहुत शक्तिशाली बना देती है। राष्ट्रपति को, जब चाहे, आपातकाल की घोषण करने का अधिकार है। आपातकालीन घोषणा के पूर्व प्रधानमंत्री, संसद के दोनों सभापतियों व संवैधानिक परिषद् से परामर्श करने की व्यवस्था है। राष्ट्रपति इसके लिए बाध्य नहीं है कि वह उनके परामर्श को स्वीकार करे। आपातकाल में राष्ट्रपति परिस्थितियों द्वारा दी गई चुनौती का मुकाबला करने लिए सभी प्रकार की आवश्यक कार्यपालिका, विधायी तथा संवैधानिक शक्तियाँ उपभोग कर सकता है।

संविधान के अनुसार फ्रांस के राष्ट्रपति को संसद के दोनों सदनों के साथ अपने संदेश द्वारा सम्पर्क स्थापित करने का अधिकार है। यह अनुच्छेद उसे यह शक्ति भी देता है कि इन संदेशों के पढ़े जाने के लिए संसद के विशेष सत्र को आहूत कर सकता है। इन संदेशों पर मंत्रियों के हस्ताक्षरों का होना अनिवार्य नहीं है।

आलोचकों द्वारा उठाई गई सबसे बड़ी आपत्ति यह है कि इसके अधीन दिये गये अधिकारों को राष्ट्रपति स्वेच्छापूर्वक अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए और एक सैनिक विप्लव की भी रक्षा करने के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है। मात्र राष्ट्रपति को ही यह अधिकार है कि यह निर्णय करे कि किसी विशेष समय संविधान द्वारा परिभाषित संकट उपस्थित है या नहीं। उसके लिए क्या उपाय किये जायें। उसका कर्तव्य केवल यह है कि वह परिषदों के सभापतियों तथा विधान परिषद से परामर्श करे और राष्ट्र की जनता को सूचना दे संसद अपने अधिकार से ही सम्मिलित होती है और संकटकालीन समय में भंग नहीं की जा सकती और न ही यह धारा, जो इस बात की मांग करती है कि विधान परिषद राष्ट्रीय संकट के विषय में अपने विचार परिषद राष्ट्रीय संकट के विषय में अपने विचार कारणों सहित प्रकाशित करे, राष्ट्रपति की अवैधानिकता के विरुद्ध कोई रक्षा साधन है। क्योंकि राष्ट्रपति को यह अधिकार कि वह पूरे अधिकार ग्रहण कर ले संविधान के पक्षपाती इन आपत्तियों को इस कारण से अस्वीकार कर देते हैं कि यह उपाय केवल अदृश्य तथा असम्भावित संकट के लिए ही किए गये हैं, जिनके लिए विस्तृत व्यवस्था करना सम्भव नहीं है।

राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों का उल्लेख करने वाली अनुच्छेद बड़ा अस्पष्ट व अनिश्चित है। इसमें निम्नांकित प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया गया है-

  1. यह नहीं बताया गया है कि यदि विधान परिषद् या संसद सम्मिलित हो सके तो भी क्या राष्ट्रपति वैधानिक रूप से अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा?
  2. अनुच्छेद इस प्रश्न पर भी मौन है कि राष्ट्रपति द्वारा आपातकालीन शक्तियों के प्रयोग की कोई सीमा है ?
  3. इसका भी उत्तर नहीं मिलता कि राष्ट्रपति संविधान के किसी भाग को कुछ समय के लिए निलम्बित कर सकता है और क्या उसे ही यह निर्णय करने का अधिकार है कि किसी समय राष्ट्रीय संकट उपस्थिति है या नहीं ?
  4. अनुच्छेद 16 यह भी नहीं बताता कि यदि संसद सम्मिलित हो जाये तो क्या राष्ट्रपति इसके अधिकारों को सीमित कर सकता है?

राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां विपुल हैं, किन्तु वैधानिक दृष्टि से वह निरंकुश नहीं हो सकता। आपातकाल के दौरान राष्ट्रपति पर कानूनी रोक है कि सांविधानिक परिषद उसे पद के कार्य करने के लिए अक्षम अथवा अयोग्य घोषित कर दे, अथवा सीनेट व राष्ट्रीय सभा द्वारा उस पर गम्भीर राजद्रोह या विश्वासघात का अभियोग लगा कर उसकी अधिनायकवादी प्रवृत्तियों को नियंत्रित कर दे। राष्ट्रपति की निरंकुश प्रवृत्ति पर इससे भी बढ़कर जनमत का प्रभावशाली नियंत्रण होता है।

पंचायती राज व्यवस्था का महत्व।

राष्ट्रपति का आपातकालीन शक्तियों के विषय में एक राष्ट्रपति का विचार था कि इन शक्तियों का प्रयोग अपवाद स्वरूप ही किया जाना चाहिए, अर्थात् युद्ध या देश पर आणविक आक्रमण की परिस्थिति में। राष्ट्रपति की विस्तृत शक्तियाँ उसके आलोचकों को अतिश्योक्तिपूर्ण विवेचन करने का अवसर प्रदान करती हैं। फ्रांस साम्यवादी नेता मारिस थोरेज ने तो यहाँ तक कह दिया कि “राष्ट्रपति को नये संविधान में 19वीं शताब्दी के सम्राटों से भी अधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं।” प्रो. एरोन ने फ्रेंच राष्ट्रपति की तुलना अमेरिकन राष्ट्रपति से करते हुए लिखा है कि “कागज पर फ्रेंच का राष्ट्रपति अमेरिका के राष्ट्रपति से कम शक्तिशाली है। सभी बातों के बावजूद पंचम गणतंत्र एक संसदीय सरकार की स्थापना करता है। इसका प्रमाण यह है कि सरकार राष्ट्रीय सभा के प्रति उत्तरदायी है।

राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी नहीं।” प्रो. एरोन के शब्दों में ही, “भविष्य में राष्ट्रपति पद का विकास दो प्रकार से हो सकता है। यदि साधारण व्यक्ति राष्ट्रपति हो तो वह मात्र सरकार का सर्वश्रेष्ठ परामर्शदाता अथवा सर्वोच्च मध्यस्थ बन कर रह सकता है और तब संविधान संसदीय सरकार की ओर विकसित होगा। लेकिन यदि वह वस्तुतः अपने अधिकार का प्रयोग करना चाहेगा तो वह संघर्ष मोल लेगा सर्वप्रथम अपने प्रधानमंत्री के साथ और बाद में राष्ट्रीय सभा के साथ।” लेकिन व्यवहार में, राष्ट्रपति की कार्य प्रणाली से यह आशंका निराधार सिद्ध हुई।

फ्रांस का राष्ट्रपति एक शक्तिशाली कार्यपालिका है। वह ब्रिटेन के सम्राट और भारत के राष्ट्रपति की तुलना में कहीं अधिक शक्तिशाली है। उसकी स्थिति अमेरिकी राष्ट्रपति से भी अधिक शक्तिशाली है। फ्रांस का राष्ट्रपति, संवैधानिक तथा वास्तविक दोनों ही दृष्टि से शासन व्यवस्था का प्रधान होता है। सैद्धान्तिक दृष्टि से अनुच्छेद 16 में अस्थायी, संवैधानिक अधिनायकत्व (Temporary Constitional Directorship) की व्यवस्था है।

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