पंचम गणतंत्र का राष्ट्रपति – पंचम गणतंत्र के पूर्व फ्रांस के राष्ट्रपति पद का स्वरूप वैसा ही था, जैसा कि ब्रिटेन में राजा या रानी का है। राष्ट्रपति राज्य का अध्यक्ष था और शासन का अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता था। यद्यपि राष्ट्रपति राष्ट्र का प्रतीक था, शासन के सभी कार्य उसी के नाम से किये जाते थे, पर वास्तविक कार्यपालिका शक्ति मंत्रिमण्डल में निहित थी। संविधान में यह प्रावधान था कि राष्ट्रपति के प्रत्येक आदेश पर सम्बन्धित मंत्री के प्रति अवश्य हो। राष्ट्रपति को इसी स्थिति की ओर संकेत करते हुए सर हेनरी मैन ने कहा था, “इंग्लैण्ड का सांविधानिक सम्राट राज्य का करता है, शासन नहीं करता। संयुक्त राज्य अमेरिका का राष्ट्रपति राज्य नहीं करता वह शासन है, लेकिन फ्रेंच गणतंत्र का राष्ट्रपति न तो राजा ही है और न शासक ही।” इस तरह स्पष्ट है कि फ्रांस के राष्ट्रपति का पद कोई शक्तिशाली पद नहीं था। कुछ मामलों में उसे स्व-विवेकीय शक्तियां प्राप्त थीं। प्रधानमंत्री के चयन में वह इस शक्ति का प्रयोग करता था।
पंचम गणतंत्र में राष्ट्रपति की शक्ति में वृद्धि की गई और मंत्रिपरिषद एवं संसद की शक्तियों में कमी की गई। फ्रांस के ही भूतपूर्व प्रधानमंत्री मँडीज फ्रांस के अनुसार, “राष्ट्रपति एक अवंशानुगत राजा बनाया गया है और उसे ऐसी शक्तियां प्रदान की गई हैं कि वह स्वयं को एक वैधानिक अधिनायक बना सकता है।” वस्तुतः वर्तमान संविधान के अन्तर्गत राष्ट्रपति शासन का सबसे शक्तिशाली और केन्द्रीय अंग बन गया है। वह राज्य का वास्तविक अध्यक्ष, राष्ट्र का प्रतीक, शासन का प्रमुख है। संविधान के दूसरे अध्याय के पांच से लेकर 19 तक के 15 अनुच्छेद राष्ट्रपति और उसकी शक्तियों का वर्णन करते हैं।
राष्ट्रपति निर्वाचन
पंचम गणतंत्र में राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए निर्वाचक मण्डल की व्यवस्था की गयी है। संविधान की धारा 6 में उल्लिखित है कि “राष्ट्रपति का निर्वाचन 7 वर्षों के लिए होगा। निर्वाचन के लिए एक निर्वाचक मण्डल की रचना की जायेगी जिससे सदस्यों में लोकतंत्र की संसद, साधारण परिषदों के निर्वाचित प्रतिनिधि सम्मिलित होंगे।” राष्ट्रपति के चुनाव हेतु निर्वाचन मण्डल में निम्नलिखित सदस्य होंगे-
- सदस्य के दोनों सदनों- राष्ट्रीय सभा और सीनेट के कुल सदस्य ।
- समस्त मण्डलों की परिषदों के सदस्य।
- समुद्रपारीय अधिकृत प्रदेशों की सीमाओं के सदस्य
- नगरपालिका परिषदों द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि ।
राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेने वाला सबसे बड़ा समूह स्थानीय नगरपालिका परिषदों द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों का होता है।
संविधान में कहा गया- “1000 से कम जनसंख्या वाले कम्यूनों के मेयर, 1000 से 2000 तक जनसंख्या वाले कम्यूनों के मेयर और उपमेयर, 2000 से 2500 तक जनसंख्या वाले कम्यूनों के मेयर तथा उपमेयर और एक-एक निर्वाचित काउन्सिलर, 2501 से 3000 तक जनसंख्या वाले कम्यूनों के मेयर और दो प्रथम उपमेयर, 3001 से 6000 जनसंख्या तक मेयर, प्रथम दो उपमेयर या सहायक मेयर और 3 सबसे वरिष्ठ काउन्सिलर। 9000 से अधिक जनसंख्या वाली नगर परिषदों का प्रतिनिधित्व उनके समस्त सदस्य करते हैं। 30,000 से अधिक आबादी वाले कम्यून प्रथम 30,000 के बाद प्रत्येक 1000 निवासियों के पीछे एक प्रतिनिधि चुनते हैं।” नगरपालिकाओं के प्रतिनिधियों को राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेने की व्यवस्था कर फ्रांस के राष्ट्रपति को संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति की भांति राष्ट्र का प्रतिनिधि बनाया गया है। निर्वाचक मण्डल में शहर की नगरपालिकाओं की अपेक्षा देहात की नगरपालिकाओं को अधिक प्रतिनिधित्व दिया गया है।
संविधान में यह स्पष्ट किया गया है कि राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित होने वाले प्रत्याशी के लिए प्रथम मतदान में ही पूर्ण बहुमत प्राप्त करना आवश्यक है। लेकिन अगर ऐसा न हो सके तो संविधान के अनुसार राष्ट्रपति के चुनाव में “द्वितीय मतपत्र व्यवस्था” का सहारा लिया जाता है, जिसमें तुलनात्मक बहुमत में उसे निर्वाचित किया जाता है। संविधान में यह व्यवस्था है कि राष्ट्रपति का चुनाव राष्ट्रपति की अवधि पूरी होने से कम से कम 20 दिन अथवा अधिक से अधिक 35 दिनों के पूर्व हो जाना चाहिए।
राष्ट्रपति का कार्यकाल
राष्ट्रपति का कार्यकाल 7 वर्ष का होता है। उसके पुनर्निर्वाचन के संबंध में संविधान में कुछ नहीं कहा गया है। संविधान में व्यवस्था है कि यदि किसी कारण फ्रांस गणतंत्र का राष्ट्रपति न हो, तो उसकी जगह पर सीनेट का अध्यक्ष राष्ट्रपति का दायित्व निभायेगा।
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राष्ट्रपति पद की योग्यतायें
संविधान में यह व्यवस्था है कि “राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी स्वयं उम्मीदवारी की औचारिक घोषणा करेंगे, राष्ट्रपति पद के लिए कोई योग्यता अनिवार्य नहीं मानी गई है। आयु या निवास भी तत्सम्बन्धी कोई भी शर्त नहीं लगाई गई है।
राष्ट्रपति को निर्वाचन प्रक्रिया की आलोचना
राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रक्रिया की प्रमुख आलोचना यह की जाती है कि निर्वाचन मण्डल में ग्रामीण मतों को प्रधानता दी गई है। अतः ग्रामीण फ्रांस औद्योगिक फ्रांस पर अपनी पसन्द का राष्ट्रपति लाद सकेगा। इस आलोचना का प्रत्युत्तर देते हुए पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा था “फ्रांस छोटे गाँव का देश है।” डोरीची चिकित्स ने राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रक्रिया में दो दोष बताये हैं-
- “यदि निर्वाचन में भाग लेने वाले उम्मीदवार दो-तीन से अधिक हो, तो दूसरी बार मतदान होने पर भी यह सम्भव है कि निर्वाचित व्यक्ति को कुल मतों का बहुमत प्राप्त न हो।”
- “यह प्रणाली सरलता से परिवर्तनीय नहीं है, क्योंकि इस प्रणाली का समावेश में कर दिया गया है।”