फिरोज तुगलक की विदेश नीति – फिरोजशाह तुगलक शान्ति प्रिय शासक था वह आक्रमण कारी नीति के विरुद्ध था। मुहम्मद तुगलक के समय में बंगाल और सम्पूर्ण दक्षिण भारत दिल्ली की अधीनता से मुक्त हो गया था। फिरोज ने दक्षिण भारत को जीतने का प्रयत्न नहीं किया और सरदारों के आग्रह को यह कहकर टाल दिया कि वह मुसलमानों का रक्त बहाने को तैयार नहीं है। उसने बंगाल को। जीतने का प्रत्यन किया परन्तु असफल हुआ। उसने राजस्थान को जीतने अथवा उसे अपने प्रभाव में लेने का प्रयत्न नही किया। इस प्रकार फिरोज की नीति साम्राज्य विस्तार की न होकर राज्य के संगठन की थी। इस दृष्टि से वह दिल्ली के सुल्तान की प्रतिष्ठा के प्रति भी उदासीन रहा। फिरोज में सैनिक प्रतिभा नहीं थी और न कभी वह एक योग्य सेनापति सिद्ध हुआ। मुहम्मद तुगलक के समय में दिल्ली की सेना की शक्ति दुर्बल हो गयी थी। फिरोज ने उसे पुनः शक्तिशाली बनाने का प्रयत्न नही किया यद्यपि उसके पास धन का अभाव न था। इस कारण फिरोज की बाह्य नीति दुर्बल रही। उसके समय में कोई महत्वपूर्ण विजय नही की गयी।
1.बंगाल
बंगाल में हाजी इलियास ने शम्सुद्दीन इलियास शाह के नाम से अपनी स्वतन्त्र सत्ता स्थापित कर ली थी। उसने दिल्ली राज्य के अधीन तिरहुत राज्य पर आक्रमण किया। इस कारण 1335 ई. में फिरोज ने बंगाल पर आक्रमण किया। इलियास ने अपनी राजधानी पांडुआ को छोड़कर इकदाला के किले में शरण ली। फिरोज किले को जीतने में विफल हुआ परन्तु परास्त हुआ तथा किले में पुनः शरण ली। अन्त में फिरोज ने युद्ध बन्द कर दिया और एक सन्धि करके 1335 ई. में दिल्ली वापस आ गया।
2. उड़ीसा और जाजनगर
1360 ई. में अन्तिम समय में फिरोज ने जाजनगर पर आक्रमण किया। सुल्तान बंगाल से वापस आकर जौनपुर में ठहरा हुआ था। वहाँ से उसने अचानक जाज नगर पर आक्रमण करने की योजना बनायी। उसका मुख्य उद्देश्य पुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मन्दिर को ध्वस्त करना था। मार्ग में जनता के विरोध को समाप्त करता हुआ फिरोज कटक तक पहुँच गया। उड़ीसा का शासक भानुदेव तृतीय भाग गया परन्तु उसके सैनिकों ने सुल्तान का मुकाबला किया। उन्हें परास्त करके फिरोज ने पुरी के जगन्नाथ मन्दिर पर आक्रमण किया। सुल्तान ने मन्दिर और मूर्तियों को नष्ट कर दिया। तत्पश्चात राजा के आत्म समर्पण करने और प्रतिवर्ष भेट स्वरूप कुछ हाथी देने के आश्वासन पर फिरोज वापस आ गया।
3. नगरकोट
फिरोज ने 1361 ई. में स्थित नगरकोट पर आक्रमण किया। नगर कोट के राजा ने मुहम्मद तुगलक के आधिपत्य को स्वीकार कर लिया था, परन्तु उसके अन्तिम दिनों में वह पुनः स्वतन्त्र हो गया था। छः माह के घेरे के पश्चात राजा ने आत्मसमर्पण कर दिया।
4. सिन्ध
1362 ई. में फिरोज ने सिन्ध पर आक्रमण किया। सिन्ध ने मुहम्मद तुगलक को परेशान किया था और वहाँ पर विद्रोही उस समय भी सक्रिय थे। 20,000 घुड़सवार और 480 हाथियों की एक विशाल सेना लेकर फिरोज ने उस पर आक्रमण किया। सिन्ध में जाम बाबनियों ने दृढ़ता पूर्वक उसका मुकाबला किया। यहाँ तक कि सुल्तान को गुजरात की ओर जाना पड़ा। मार्ग में वह रन के रेगिस्तान में फँस गया और छः माह के कष्ट के पश्चात वहाँ से निकल पाया। 1363 ई. में सुल्तान गुजरात में रहा और वहाँ शान्ति स्थापित की। वहीं पर उसे बहमनी वंश के विरोधी सरदार का दक्षिण भारत पर आक्रमण करने का निमन्त्रण मिला परन्तु फिरोज ने उसे अस्वीकार कर दिया और सिन्ध पर पुनः आक्रमण किया। इस बार जाम बाबनियाँ ने फिरोज के आधिपत्य को स्वीकार करके और उसे वार्षिक कर देना स्वीकार कर लिया।
5. विद्रोह और उनका दमन
फिरोज तुगलक ने प्रारम्भिक काल में उसकी बहन खुदा बन्दजादा ने उसका वध करने के लिए एक षड्यन्त्र रचा परन्तु वह प्रयत्न विफल रहा। पहला विद्रोह गुजरात के सूबेदार दायगानी ने किया क्योंकि वह सुल्तान को उतना राजस्व नहीं दे सका जितने का उसने वादा किया था। वह विद्रोह असफल हुआ और दायगानी का सिर काटकर दिल्ली भेज दिया गया। दूसरा विद्रोह इटावा के जमीदारों ने किया परन्तु उसे दबा दिया गया। तीसरा विद्रोह कटेहर शासन ने किया। इस प्रकार सिन्ध के अतिरिक्त फिरोज ने किन्ही अन्य महत्वपूर्ण सूबो अथवा जिलों को जीतने में सफलता प्राप्त नहीं की। उसका बंगाल अभियान असफल हुआ तथा जाजनगर और नगरकोट की उसकी विजयें साधारण थी।