पशु समाज – साधारण शब्दों में समाज व्यक्तियों के समूह को कहा जाता है, परन्तु समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से देखा जाय तो यह सामाजिक सम्बन्धों की एक अमूर्त व्यवस्था है। समाज केवल मनुष्यों तक ही सीमित नहीं है। यही कारण है कि मनुष्य के अतिरिक्त चींटियों, दीमकों, चिड़ियों, बन्दरों तथा इसी प्रकार के अन्य प्राणियों का भी अपना-अपना समाज होता है, यद्यपि इन विभिन्न प्रकार के समाजों का रूप व प्रकृति एक जैसी नहीं होती है। हम यह जानते हैं कि प्राणिशास्त्रीय दृष्टिकोण से सभी जीवधारी समान रूप से विकसित नहीं होते हैं; चींटियों की तुलना में चिड़ियाँ अधिक विकसित होती हैं और चिड़ियों की तुलना में बन्दर अधिक विकसित माने जाते हैं। अतः यह स्वाभाविक है कि चींटियों के समाज से चिड़ियों का समाज और चिड़ियों के समाज से बन्दरों का समाज अधिक विकसित और इसीलिए अधिक स्पष्ट होगा। यह अन्तर या भेद पशु-समाज और मानव-समाज के बीच कहीं अधिक सुस्पष्ट व उल्लेखनीय है। परन्तु इससे पूर्व कि पशु एवं मानव-समाज के मध्य पाए जाने वाले अन्तरों का वर्णन किया जाए, पशु-समाज या मानव-विहीन समाज के कुछ प्रकारों का अध्ययन अनुचित न होगा।
पशु-समाज/ मानव-विहीन समाज के प्रकार कीड़ों का समाज
कीड़ों के समाज के अन्तर्गत दीमक, चींटी, टिड्डी आदि के समाज आते हैं। कीड़ों की समस्त विशेषताएँ वंशानुक्रमण द्वारा प्राप्त विशेषताओं पर आधारित होती हैं। ये प्राणी अपने व्यवहारों में परिवर्तन नहीं ला पाते। कीड़ों के समाज की एक अन्य विशेषता यह होती है कि सभी (मादा) कीड़ों में जनन-शक्ति नहीं होती है। केवल कुछ रानियाँ ही होती हैं जो सम्भोग द्वारा अपने समाज को बढ़ाती हैं अर्थात् कीड़ों की संख्या बढ़ाती हैं। इन समाजों की एक अन्य विशेषता यह होती है कि कीड़ों के परिवार अत्यन्त विस्तृत होते हैं। प्रत्येक परिवार की सदस्य संख्या हजारों में होती है क्योंकि कीड़े हजारों की संख्या में अण्डे देते हैं। चूँकि कीड़ों की जीवन-अवधि काफी कम होती है अतः इस प्रकार के समाज में स्थायित्व भी कम होता है।
स्तनधारी समाज
गैर-मानव-समाज का एक दूसरा प्रमुख प्रकार स्तनधारी पशु-समाज है। वास्तव में स्तनधारी पशु-समाज का महत्व अन्य गैर-मानव समाज की तुलना में कुछ अधिक ही है। इसका कारण भी स्पष्ट है और वह यह है कि मानव की उत्पत्ति भी स्तनधारी पशुओं पर आधारित मानी जाती है। दूसरे शब्दों में, स्तनधारी पशुओं को ही मानव का आदि रूप माना गया है। इनकी कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(अ) सामान्यतः स्तनधारी पशु उनको कहा जाता है जो स्तनपान से ही बड़े होते हैं। इस प्रकार के पशुओं में शारीरिक बनावट के आधार पर नर और मादा में कोई विशेष भेद नहीं किया जा सकता।
(ब) अधिकतर स्तनधारी पशु प्रजनन शक्ति से युक्त होते हैं, स्तनधारी पशु केवल कुछ असाधारण परिस्थितियों में ही बच्चों को जन्म देने की क्षमता से वंचित रहते हैं। कीड़ों के समाज में यह बात नहीं होती। कीड़ों के समाज में सभी में प्रजनन योग्यता नहीं होती।
(स) स्तनधारी पशु-समाज की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि इस प्रकार के पशुओं का सामाजिक शिक्षण प्रत्यक्ष सीख पर निर्भर करता है।
वैयक्तिक अध्ययन के प्रकार बताइए।
नर-वानर समाज
नरवानर समाज स्तनधारी पशु-समाज की उच्चतर अवस्था है। श्री डार्विन ने तो नरवानरों में मनुष्यों को भी सम्मिलित किया है। श्री डेविस ने नर-वानरों में बन्दर और बिना पूँछ वाले लंगूर जैसे गोरिल्ला, ओरंगटान चिंपांजी आदि को सम्मिलित किया है। नरवानर समाज की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखि हैं-
नरवानरों की प्रथम विशेषता यह है कि इनकी आंखे तेज तथा मस्तिष्क अधिक विकसित होता है। चूँकि इनका शिशु-काल अन्य प्रकार के पशुओं की तुलना में अधिक लम्बा होता है अतः ये प्राकृतिक दशाओं से अपना अनुकूलन भी अधिक अच्छी प्रकार से कर लेते हैं। मस्तिष्क के अधिक विकसित होने के कारण इस समाज के सदस्यों के यौन व्यवहारों पर मौसम का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इस सम्बन्ध में एक अन्य बात यह है कि नर वानर समाज में स्तनधारी पशु-समाज की भाँति यौन व्यवहार दूसरों से प्रेरणा पाकर या दूसरों को देखकर नहीं किये जाते, बल्कि कुछ मूल प्रवृत्तियों के वशीभूत होकर ही यौन व्यवहार किये जाते हैं। वास्तव में आयु बढ़ने के साथ जो परिपक्वता आती है उससे ही इन यौन-प्रेरणाओं का जन्म होता है।
(ii) नर-वानर समाज में चूँकि शिशु-काल अधिक लम्बा होता है, अतः मादा पशु और उसके बच्चे के आपसी सम्बन्ध अधिक स्थायी होते हैं। इसके अतिरिक्त इनके परिवार का आकार भी अपेक्षाकृत छोटा होता है क्योंकि पशु एक बार में सामान्यतः एक ही बच्चे को जन्म देता है।
(iii) इस समाज में संचार प्रविधियों का अधिक विकसित अवस्था में प्रयोग होता है।
(iv) प्रो० जुकरमैन ने नरवानर समाज में ‘प्रभुत्व की भावना’ का भी वर्णन करते हुए कहा है कि नर वानर समाज में एक विशेष प्रकार की प्रभुत्व भावना पाई जाती है, जिसका कि स्तनधारी पशु-समाज में पूर्ण अभाव होता है। इस प्रभुत्व की भावना का अर्थ यह है कि प्रत्येक नरवानर अपने समूह के नेता के आदेशानुसार कार्य करता है।