पर्यावरण शिक्षा में विश्वविद्यालय की भूमिका वर्तमान समय में पर्यावरण के प्रति जन समुदाय में चेतना जागृत करने, पर्यावरण को संरक्षित करने तथा दीर्घकालीन विकास को गति देने में विश्वविद्यालयों को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए जिनसे उच्च स्तरीय जनसमुदाय इस दिशा में समुचित ज्ञान प्राप्त करके आगामी पीढ़ी को सचेष्ट रहने के लिए खबर कर सकें।
जॉन बेरी की संक्षिप्त उक्ति के अनुसार “आवश्यक अनुसंधान तथा राष्ट्रीय नीति निर्धारण की दिशा प्रदान करने के लिए विश्वविद्यालय विशेषज्ञता प्रदान करने वाले प्रमुख स्रोत हैं। विश्वविद्यालय समाज के नेताओं की आने वाली पीढ़ी को प्रशिक्षित करने वाले महत्वपूर्ण स्थल हैं, जिन्हें विभिन्न मुद्दों से संबंधित व्यापक और संवेदनशील ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता है।” अतः स्पष्ट है कि पर्यावरण के प्रति जन जागरण कराना एक महत्वपूर्ण कार्य है। जॉन बेरी का उपरोक्त कथन विशेष रूप से भारत के लिए अधिक उपयुक्त है। क्योंकि आज भारतीय विश्वविद्यालयों की जिम्मेदारी केवल शिक्षण ही नहीं रही है।
पंचवर्षीय योजनाओं में स्त्री-शिक्षा प्रयासों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
भारतीय संविधान की आर्टिकल 51 में यह उल्लिखित है कि भारत के नागरिक का कर्तव्य है कि “वह प्राकृतिक वातावरण की सुरक्षा करें तथा उसका विकास करें जिसमें वन, झील, नदियां, वन, पशु आते हैं। उनके हृदय में प्रत्येक जीव के लिए दयाभाव होना चाहिए। पर्यावरण ‘ आगे धारा में यह भी उल्लिखित है कि “प्राकृतिक वातावरण की सुरक्षा के लिए प्रत्येक नागरिक से वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानवता तथा खोज व सुधार की प्रवृत्ति का विकास आवश्यक है।”