पर्यावरण के क्षेत्र में मनुष्य की नैतिक भूमिका का उल्लेख कीजिये।।

पर्यावरण के क्षेत्र में मनुष्य की नैतिक भूमिका

मनुष्य के अनैतिक आचरण से जहां पर्यावरण सहित लगभग सभी क्षेत्रों में पतन हुआ है वहीं अच्छे आचरण और सामाजिक स्वीकृति (Social acceptance) से किये -जाने वाले व्यवहारिक क्रियाकलापों से आशातीत उत्थान की आशा भी बनी है। मनुष्य ने इस परिवर्तन से अपनी व्यक्तिगत छवि ही नहीं बनायी है बल्कि समाज को प्रेरित कर पूरे देश को ऊपर उठने का अवसर भी दिया है।

पर्यावरण के क्षेत्र में इस नैतिक उत्थान से प्रभाविक होने वाले कार्यकलापों में मनुष्य की भूमिका को निम्न प्रकार समेकित करने का प्रयास किया गया है

  1. जीवाश्म ईंधन के अधिक प्रयोग से कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि हुई है तथा उसके फलस्वरूप वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड गैस की मात्रा बढ़ी है। मीन हाउस प्रभाव का मुख्य कारण इसी गैस की वृद्धि है। इसे मनुष्य रोकने हे वैकल्पिक ईंधन का उपयोग कर सकता है।
  2. मनुष्य ने अपने शौक तथा धनप्राप्ति के लालच से धन्य जीवों का शिकार इस सीमा तककिया है कि अनेक प्रजातियां ही सुप्त प्रायः हो चली हैं। इस कुकृत्य पर मनुष्य को स्वप्रेरणा से रोक लगानी होगी।
  3. मनुष्य अपने दैनिक जीवन में लकड़ी के उपयोग को कम करें प्लास्टिक अथवा अन्य इसी प्रकार के पदार्थ को काम में लें। इससे वन क्षेत्रों की रक्षा होगी, जल चक्र, वायु चक्र में गतिरोध नहीं होगा तथा प्रकृति का संतुलन बना रहेगा।
  4. यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक विकास किसी विनाश से ही संबंधित हो। देश के पर्यावरण को संतुलित बनाये रखने के लिए मनुष्य को उन तकनीकों का उपयोग करना चाहिए जो विनाश रहित विकास (development without destruction) पर आधारित है। ऐसी स्थिति में यदि उत्पादन (production) कम भी होता तो उसे स्वीकार करना चाहिए।
  5. अधिक आबादी की अत्र और आवास की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु देश के घने जंगलों को भारी मात्रा में काट दिया गया है। इससे पर्यावरण हारा हुआ है। वन्य जीवों की संख्या में कभी, जलवायु में परिवर्तन, वर्षा की भाग में कमी और रेगिस्तानी क्षेत्र में वृद्धि इसके दुखद परिणाम है। मनुष्य को जनसंख्या वृद्धि को रोकने में सहयोग करना चाहिए।
  6. पेट्रोल चालित वाहनों के उत्सर्जन से निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसे वायुमण्डल की आर्द्रता से क्रमशः सत्ययूरिक एसिड और नाइट्रिक एसिड बनाते हैं। यह जानी वर्षा के रूप में वायुमंडल से पृथ्वी पर गिरते हैं और मानव जीवन, वनस्पति व सुंदर भवन तथा प्रतिमाओं को हानि पहुंचाते हैं। इन वाहनों के उपयोग में कमी की नितांत आवश्यकता है, जिसके लिए मनुष्य को मानस में परिवर्तन करना होगा।
  7. गांवों में बिना रोशनदान वो कमरों में खाना बनाने वाली गृहणियां ईंधन से निकलने वाले धुएं से अनेक रोगों का शिकार होती हैं। उन्हें निर्धूम चूल्हे उपलब्ध कराने चाहिए तथा रसोईघर में खिड़की और रोशनदानों की व्यवस्था होनी चाहिए।
  8. फ्रिज तथा अन्य अवशीतन करने वाले यंत्र / उपकरणों के उपयोग के कारण क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स वायुमण्डल में ओजोन पर्त को हानि पहुंचा रहें हैं। अब नयी टेकोलॉजी पर आधारित ऐसे उपकरणों का उपयोग ही वांछनीय है जिनसे इस समस्या से न्यूनतम हानि हो। इससे त्वचा कैंसर के भय से छुटकारा मिलेगा।चाहिए।
  9. परमाणु बम विस्फोट से रेडियोएक्टिव प्रदूषण हुआ है। विवाहित में इस पर रोक होनी
  10. ध्वनि प्रदूषण से बचने के लिए मनुष्य को अपने घरों में मनोरंजन के साधनों का नीची आवाज में प्रयोग करना चाहिए। इससे बहरापन तथा अनेक मानसिक रोगों से बचाव संभव है।
  11. वायु, जल भोजन और आवास की शुद्धता और स्वच्छता जीवन की गुणवत्ता(Quality of Life) के लिए आवश्यक है। मनुष्य को इसे हर संभव तरीके से प्रदूषण से बचाना चाहिए। याद रखों प्रदूषण से बचाव पर होने वाला व्यय प्रदूषित को ठीक करने के लिए व्यय से कम होता है।
  12. मनुष्य की शहरीकरण की प्रवृत्ति ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया है जिनमें आवास समस्या, भोजन और पानी की कमी, अस्त-व्यस्त जीवन, बढ़ता प्रदूषण आदि प्रमुख है, इससे सरकारी व्यवस्थायें भी चरमरा गयी हैं। इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया जाना आवश्यक है। इस हेतु गांवों में ही वहां के लोगों को जीवनयापन हेतु सुविधाएं उपलब्ध करानी होगी।
  13. प्राकृतिक संसाधन बहुत सीमित है। मनुष्य को उनका उपयोग बहुत बुद्धिमत्तापूर्ण करना चाहिए। सांसधनों का संरक्षण उनके कम उपयोग में ही नीहित है।
  14. जनसंख्या में निरंतर वृद्धि और प्रति व्यक्ति के अधिक उपयोग से से ऊर्जा की मांग बढ़ रही है। कोयला, पेट्रोल आदि जैसे संसाधन समाप्त हो चले हैं। ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों में सौर ऊर्जा (Solar Energy) को सम्मिलित करना चाहिए। जल ऊर्जा (Hydro Power), अणु ऊर्जा (Atomic Energy), वायु ऊर्जा (Wind energy), तथा तापीय ऊर्जा (Thermal Energy) द्वारा उत्पादित ऊर्जा में और वृद्धि आवश्कय है। ऊर्जा का दुरुपयोग रोके।
  15. भारत में पानी की कमी है और इस कारण देश के अनेक भाग इस कमी से अत्यधिक प्रभावित हैं। इसके बावजूद भूगर्भ जल के अधिक दोहन से भी जल भंडार और कम होने लगे हैं तथा जल स्तर (water level) काफी नीचे हो गयी है। इस विषम परिस्थिति से बचने के लिए भूगर्भीय जल के स्वतंत्र उपयोग पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।
  16. भोज्य पदार्थ उत्पादन हेतु मिट्टी संरक्षण (Soil Conservation) अति आवश्यक है लेकिन वनों की कटाई तथा मनुष्य द्वारा किये गये अनेक असंगत कार्यों से भूमिकरण द्वारा मिट्टी बह रही है, इसे तत्काल रोकने हेतु मनुष्य को सघन वृक्षारोपण तथा सिंचाई के उपयुक्त तरीकों का उपयोग करना चाहिए।

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