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पर्यावरण हेतु अभिवृत्तियों का विकास उल्लेख कीजिये।

पर्यावरण हेतु अभिवृत्तियों का विकास

पर्यावरण हेतु अभिवृत्तियों का विकास – पर्यावरण को शुद्ध एवं संतुलित बनाये रखने हेतु विद्यालयों का यह उत्तरदायित्व है कि ये छात्रों में निम्नलिखित अभिवृनियों का विकास इस प्रकार से करें कि उद्देश्यों की पूर्ति हो सके। इसके लिए निम्नांकित बिन्दुओं को क्रियान्वित किया जाना चाहिए।

  1. पृथ्वी अन्य जीवों के मुकाबले मानव में विशिष्ट योग्यता है। पर्यावरण को शुद्ध बनाये रखने हेतु प्रभावशाली कदम उठाने की इस क्षमता को विकसित करना।
  2. पर्यावरण को शुद्ध बनाये रखने के उद्देश्य से प्रदूषण एवं उसके निवारण हेतु सूचनाओं को प्राप्त कर उनकी समालोचना करने की अभिवृत्ति का विकास करना।
  3. भूत, वर्तमान एवं भविष्य यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, अतः उसके निरंतर प्रवाह को मानसिक धरातल पर प्रतिष्ठित करते हुए निरंतरता की अभिवृत्ति का विकास करना।
  4. पर्यावरण के बारे में ज्ञान प्राप्त करना, उससे आनन्दित होना तथा उसका हृदय से सम्मान करना है।
  5. ऐसे छात्र जो प्रखर बुद्धि के हैं और जो पर्यावरण संरक्षण में सहायक सिद्ध हो सकते हैं. उन्हें सहयोग देना।

भारतीय समाज में परिवर्तन के कारकों को स्पष्ट कीजिए।

हमें समय-समय पर इस तथ्य पर गहन दृष्टि रखनी चाहिए कि निर्धारित संतुलन की सुरक्षा हो पायी है या नहीं और पर्यावरण संतुलन करने हेतु निवेश किये गये धन की पुनः प्राप्ति का अनुपात क्या रहा है? यदि इसमें कुछ असुविधा हो रही है तो समझना चाहिए कि संरक्षण हेतु किये गये प्रयास की पूर्ति नहीं हो पायी, अतः निर्धारित प्रक्रिया की गंभीरता से छानबीन करने की आवश्यकता है।

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