परिवार के सम्बन्ध में अरस्तू के विचार – अरस्तू के अनुसार इस समाज रूपी भव्य भवन का आधार परिवार है, परिवार पर ही समाज का अस्तित्त्व निर्भर है। सहनशीलता, त्याग, ममता, सहयोग, सहिष्णुता व स्नेह आदि गुण व्यक्ति में सामूहिक जीवन व्यतीत करने पर ही आते हैं। अरस्तू ने परिवार को निम्न रूप में परिभाषित किया है, “पति और पत्नी, स्वामी और दास तथा माता और पिता एवं संतान- इन तीनों सम्बन्धों के परस्पर नियमानुसार व्यवहार का नाम ही परिवार है।”
अरस्तू ने परिवार का जोरदार शब्दों में समर्थन करते हुए आगे कहा है कि परिवार का मुखिया परिवार का सबसे वयोवृद्धि पुरुष होना चाहिये। उसके द्वारा परिवार को उसी प्रकार नियंत्रित किया जाना चाहिये जिस प्रकार राजा राज्य को नियंत्रित करता है।