परिवार का अर्थ- परिवार शब्द ऑग्ल भाषा के ‘फैमिली’ शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। ‘फैमिली’ शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘फैम्लस’ से हुई जिसका अभिप्राय है ‘नोकर’। परन्तु जिस अर्थ में परिवार शब्द की उत्पत्ति हुई है उस अर्थ में परिवार का अर्थ नहीं लगाया जाता है। वास्तव में “फैम्लस” शब्द का विस्तृत अर्थ लगाया जाता है। इसके अन्तर्गत माता-पिता, चाचा-चाची, पुत्र-पुत्री, भतीजे-भतीजी, बहू-नतबहू आदि सम्मिलित रहते हैं और जो पारस्परिक उत्तरदायित्व तथा स्नेह की भावना से बंधे हुए हैं। इसके विपरीत पश्चिमी विद्वान परिवार को बहुत ही लघु रूप में परिभाषित करते हैं। उनके अनुसार परिवार समाज की ऐसी इकाई है जिसमें माता-पिता तथा उनके अविवाहित बच्चे सम्मिलित हैं और जो उत्तरदायित्व तथा स्नेह की भावना से बंधे हुए हैं। इस प्रकार “भौतिक” दृष्टि से भारतवर्ष में परिवार को “संयुक्त परिवार” या पाश्चात्य देशों में “वैयक्तिक परिवार” के रूप में परिभाषित करते हैं। इस प्रकार हम उपरोक्त शब्दों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि परिवार समाज की एक ऐसी इकाई है जिसमें माता-पिता तथा उनके अविवाहित बच्चे अथवा इनके साथ-साथ अन्य सदस्य सम्मिलित रहते हैं और जो उत्तरदायित्व तथा स्नेह की भावना से परस्पर बँधे रहते हैं।
परिवार के प्रकार
सामान्यतः परिवार को पाँच वर्गों में विभाजित किया जाता है-
(1) सदस्यों की संख्या का आधार
सदस्यों की संख्या के आधार पर दो प्रकार के परिवार आते हैं-
(अ) एकाकी परिवार
एकाकी परिवार में माता-पिता और उनके अविवाहित बच्चे एक साथ रहते हैं। इस प्रकार के परिवार प्रायः शहरी एवं औद्योगिक क्षेत्रों में निवास करते हैं।
(ब) संयुक्त परिवार
संयुक्त परिवार में एक साथ तीन पीढ़ियों के सदस्य रहते हैं। यथा- दादा-दादी, माता-पिता और बच्चे। इस प्रकार का परिवार ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है। अपवाद स्वरूप इस प्रकार का परिवार कभी कभी शहरों में भी दिखाई पड़ जाता है।
(2) विवाह का आधार
विवाह के आधार पर भी दो प्रकार के परिवार मिलते हैं-
(अ) एक विवाही परिवार
एक पुरुष जब एक स्त्री से विवाह कर घर बसाता उसे एक विवाह परिवार कहते हैं। है, तो
(ब) बहु विवाही परिवार
जब कोई पुरुष या स्त्री एक से अधिक विवाह करते हैं, तब उन्हें बहु विवाहो परिवार कहा जाता है। ऐसे परिवार के दो उपभेद होते हैं-
(क) बहुपत्नी परिवार
कुछ ऐसे भी परिवार होते हैं जिनमें एक पुरुष एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करता है। भारत में नागा, बैगा और गोंड जनजातियों में भी इस प्रकार के परिवार पाए जाते हैं।
(ख) बहुपति परिवार
जब किसी स्त्री का विवाह एक से अधिक पुरूषों से होता है, वहाँ बहुपति परिवार का निर्माण होता है। महाभारतयुग में द्रौपदी का विवाह इसी प्रथा के अनुरूप हुआ था। दक्षिण भारत के टोडा और मालवार के नायर परिवारों में इस प्रथा के उदाहरण मिलते है।
(3) सत्ता का आधार
सत्ता के आधार पर भी दो प्रकारों के परिवार मिलते हैं-
(क) पितृ सन्तात्मक परिवार
जिन परिवारों में परिवार का मुखिया पुरुष होता तथा परिवारों में पुरूषों के हाथों में प्रभुत्व रहता है उन्हें पितृसत्तात्मक परिवार कहा जाता है। है।
(ख) मातृसत्तात्मक परिवार
मातृसतात्मक परिवार पितृसतात्मक परिवार के विपरीत होते हैं। ऐसे परिवार में माता ही परिवार का केन्द्र होती है और स्त्री को ही ऐसे परिवारों का मूल पूर्वज माना जाता है। स्त्री और उसके रक्त सम्बन्धियों (स्त्री का भाई या बहन आदि) के हाथों मैं ही परिवार की सत्ता होती है। मालवार में वेल्लार तथा नायर और असम में खासी तथा गारो जनजातियों में ऐसे परिवार देखे जा सकते हैं।
(4) वंशनाम का आधार
वंशनाम के आधार पर निम्नलिखित परिवार मिलते हैं-
(क) पितृवंशीय परिवार-
परिवारों में वंश पिता के नाम पर चलता है। पुत्रों को पिता के वंश का नाम मिलता है। यह प्रथा भी आम तौर पर सभी समुदायों में मिलती है।
(ख) मातृवंशीय परिवार
ऐसे परिवारों में स्त्री के नाम से वंश चलता है और पुत्रों -पुत्रियों को माता के वंश का नाम मिलता है।
(ग) द्विनामी परिवार
ऐसे परिवारों में माता और पिता दोनों के ही वंशनाम से परिवार चलता है।
(5) निवास स्थान का आधार
निवास स्थान के आधार पर निम्नलिखित परिवार मिलते हैं-
(क) नव-स्थानीय परिवार
इस प्रकार का परिवार आधुनिक सामाजिक संस्कृति की देन है। ऐसे परिवारों में पति-पत्नी स्वतंत्र रूप से अपने-अपने माता-पिता से अलग निवास स्थापित करते हैं।
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(ख) पितृ स्थानीय परिवार
ऐसे परिवारों में विवाह के पश्चात् पत्नी अपने पति के घरवालों के साथ रहने चली जाती है, अर्थात् स्त्री अपने ससुरालवालों के साथ रहने चली जाती है। यह परिवार भारत में आम तौर पर सभी समाजों में पाया जाता है।
(ग) मातृ स्थानीय परिवार
ऐसे परिवारों में विवाह के बाद स्त्री अपने माता-पिता के साथ ही रह जाती है और पति अपनी पत्नी के घर रहने के लिए आ जाता है। नायर, खासी और गारो जनजाति में यह परिवार देखा जा सकता है।
यहाँ हमें एक बात पर ध्यान देना होगा जो परिवार पितृसतात्मक (Patriarchal) होते हैं वे हो आम तौर पर पितृवंशीय एवं स्थानीय भी होते हैं। ठीक उसी प्रकार, जो परिवार मातृसत्तात्मक होते हैं वे ही सामान्य तौर पर मातृवंशीय एवं मातृ स्थानीय होते हैं।
उपरोक्त के विपरीत डेविस किंग्सले ने परिवार के दो प्रकार इस तरह बताये हैं-
- जनित परिवार जिस परिवार में व्यक्ति जन्म लेता है, और पलता है उसे जनित परिवार कहते हैं।
- जनन परिवार विवाह के पश्चात् व्यक्ति जिस परिवार की स्थापना करता है, उसे जनन परिवार कहा जाता है।