परवर्ती गुप्तों के इतिहास पर टिप्पणी लिखिए।

परवर्ती गुप्तों के इतिहास – उत्तर गुप्त शासक गुप्तों के अधीनस्थ सामन्त शासक थे। रायचौधरी उन्हें जहाँ मालवा का मूल निवासी मानते हैं वहीं अन्य विद्वान उन्हें मगध से सम्बन्धित मानते हैं। इस वंश का संस्थापक कृष्णगुप्त था। उसने सम्भवतः 510 या 530 ई. में अपना राज्य स्थापित किया। प्रारम्भिक उत्तर गुप्त शासकों के कार्यों के विषय में स्पष्ट जानकारी नहीं प्राप्त होती है। अफसढ़ अभिलेख के अनुसार कृष्णगुप्त ने सम्भवतः हूणों को परास्त किया तथा गौड़ों के साथ युद्ध किया । हर्षगुपा को भी एक वीर योद्धा बताया गया है। जीवितगुप्त प्रथम भी एक वीर योद्धा था। उसने मौखरियों की सहायता से गौड़ के गोपचन्द्र के वंशजों से युद्ध किया। परन्तु कुमारगुप्त के समय से मौखरियों और उत्तर गुप्तों की राजनैतिक प्रतिद्वन्द्विता आरम्भ हुई।

कुमारगुप्त ने सम्भवतः मौखरि शासक ईशानवर्मन को पराजित किया। कुमारगुप्त के पुत्र और उत्तराधिकारी दामोदर गुप्त को भी मौखरियों से संघर्ष में अपनी जान गंवानी पड़ी, परिणामस्वरूप मगध पर मौखरियों का आधिपत्य स्थापित हुआ। परन्तु महासेन गुप्त ने पुनः मगध पर अधिकार कर लिया। इसके बावजूद महासेनगुप्त की स्थिति दयनीय बन गई क्योंकि चालुक्यों ने महासेनगुप्त के समय में मगध पर आक्रमण किया। बंगाल के जयनाग का भी मगध पर दबाव बढ़ा। ऐसी स्थिति में महासेनगुप्त मगध छोड़कर मालवा। चला गया। उसी के साथ पूर्वी मालवा के उत्तर-गुप्तों की शाखा आरम्भ हुई।

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महासेन गुप्त के पश्चात् पूर्वी मालवा की शाखा का शासक देवगुप्त हुआ। वर्द्धनों से बदला लेने के लिए उसने शशांक की सहायता से प्रभाकरवर्द्धन के दामाद, मौखरिराजा ग्रहवर्मन की हत्या कर दी और कन्नौज पर अधिकार कर लिया लेकिन राज्यवर्द्धन ने उसे आसानी से पराजित कर डाला बाद में हर्षवर्द्धन ने मालवा पर अधिकार कर लिया।

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