परमार वंश की उत्पत्ति
परमार वंश की उत्पत्ति के सम्बन्ध में परस्पर भिन्न और विरोधी मत प्रचलित है। नवशाहशांक चरित के अनुसार ऋषि वशिष्ठ के पास एक कामधेनु गाय थी जो विश्वामित्र द्वारा छीन ली गयी। वशिष्ठ ने अपनी गाय को प्राप्त करने हेतु आबू पर्वत पर यज्ञ किया और यकुण्ड से निकले योद्धा ने वशिष्ठ की गाय विश्वामित्र से छीनकर दिला है। उसके इस बीर कृत्य से प्रसन्न होकर वशिष्ठ
ने उसे परमार कहा और इसके द्वारा चलने वाला वंश परमार वंश कहलाया। टाड महोदय के अनुसार भगवान शंकर ने असुरों की रक्षा हेतु अग्निकुण्ड से चार योद्धा उत्पन्न किये। देवताओं को मिले इन योद्धाओं में एक परमार भी था जिसके द्वारा स्थापित वंश परमार वंश बहलाया। अबुल फजल की आईने-अकबरी भी अग्निकुण्ड के मत का समर्थन करती है।
डॉ. सी. गांगुली, आदि विद्वान परमारों को राष्ट्रकूटों से उत्पन्न मानते हैं अपने मत के समर्थन में गांगुली महोदय ने राष्ट्रकूटों परमारों की उपाधियों में समानता, हर्सोल अभिलेख और आइने अकबरी का उदाहरण दिया है, जिसमें कहा गया है कि परमार वंश का संस्थापक दक्षिण भारत का निवासी था। परमारों का स्वयं को वशिष्ठ गोत्री मानना यह सिद्ध करता है कि परमार ब्राह्मण गोत्र से सम्बन्धित रहे होंगे।
वत्सराज कौन था? उसकी उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
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