परामर्श के प्रकार (Types of Counselling)
परामर्श के प्रकार – एक युग था जब परामर्श की औपचारिक प्रक्रिया के अभाव में ही परामर्श का कार्य सम्पन्न किया जाता था। मानवीय सम्बन्ध के आधार पर किसी को कुछ सुझाव दे देना ही परामर्श समझा जाता था। परन्तु सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक जटिलताओं को निरन्तर वृद्धि ने विश्व के बुद्धिजीवी समुदाय को धीरे-धीरे इस तथ्य का अनुभव करा दिया कि व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र के अस्तित्व को यदि सुरक्षित रखना है, यदि समस्त दिशाओं में सतत् एवं समन्वित प्रगति करनी है। तो व्यक्ति के प्रगति एवं विकास पथ पर आने वाली समस्याओं का समाधान प्रभावी रूप से किया जाना चाहिये और इसके लिये शिक्षा, निर्देशन एवं परामर्श की प्रक्रियाओं को अनुचित महत्त्व प्रदान किया जाना चाहिये। इस अनुभूति के फलस्वरूप ही परामर्श की प्रक्रिया का विकास किया गया। आज अनेक क्षेत्रों में, विभिन्न लक्ष्यों को दृष्टिगत रखकर, परामर्श के विभिन्न रूपों को उपयोग किया जा सकता है। उद्देश्य क्षेत्र आदि के आधार पर विकसित परामर्श के इन विविध प्रकारों पर ही इस अध्याय में विवरण दिया गया है।
- मनोवैज्ञानिक परामर्श (Psychological Counselling),
- मनोचिकित्सात्मक परामर्श (Psychotherapeutic Counselling),
- नैदानिक परामर्श (Clinical Counselling),
- वैवाहिक परामर्श (Marriage Counselling),
- व्यावसायिक परामर्श (Vocational Counselling),
- छात्र परामर्श (Students Counselling), तथा
- स्थानापन परामर्श (Placement Counselling),
(1) मनोवैज्ञानिक परामर्श (Psychological Counselling )- ‘
मनोवैज्ञानिक परामर्श’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम आर0 डब्ल्यू0 व्हाइट ने किया। इनके अनुसार- “मनोवैज्ञानिक उपबोध का सन्दर्भ अपेक्षाकृत एक समान क्रिया-कलापों की विभिन्नता से है। इनको विधेयात्मक ढंग की अपेक्षा निषेधात्मक तरीके से लिखित करना सहज है। अपनी विशिष्टीकरण क्रियाओं, मुक्त साहचर्यख व्याख्या, प्रत्यारोपण एवं स्वप्न-विश्लेषण से मुक्त मनोविश्लेषण को उन क्रिया-कलापों की संज्ञा नहीं दी जा सकती है। वे सम्मोह, स्थायी संश्लेषण, मनोनाटक इत्यादि विशिष्ट साधनों को प्रयुक्त नहीं करते। वे केवल सेवार्थी व चिकित्सक के
बीच होने वाले वार्तालाप पर ही निर्भर करते हैं। यह बातचीत प्रश्न-उत्तर के रूप में होती है, अतीत के इतिहास के पुनर्निर्माण या वर्तमान समस्याओं पर वाद विवाद का रूप ग्रहण कर सकती है। यह सेवार्थी द्वारा भाव विभोर होकर किया गया स्वतः विवरण हो सकता है या इसके विपरीत चिकित्सक सेवार्थी को सब कुछ कहलाने हेतु प्रयास करता है। चिकित्सक उत्साहित कर सकता है, जानकारी प्रदान कर सकता है तथा सलाह दे सकता है, ये अपेक्षाकृत ऐसे विधेयात्मक कार्य हैं जो चिकित्सक द्वारा किए जाते हैं तथा मनोवैज्ञानिक परामर्श के सामान्य अर्थ के अन्तर्गत किए जाते हैं।”
( 2 ) मनोचिकित्सात्मक परामर्श (Psychotherapeutic Counselling)
स्नाइडर के शब्दों में- “मनो-उपचार” का प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। जिसमें मनोवैज्ञानिक रूप से प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के सामाजिक कुसमायोजन वाले संवेगात्मक दृष्टिकोणों में सुधार हेतु शाब्दिक माध्यम से सचेत रूप से प्रयास करता रहता है तथा जिसमें विषयी (सेवार्थी) सापेक्ष रूप में स्वयं के व्यक्तित्व के पुर्नगठन से परिचित रहता है, जिसमें से वह जीवनयापन कर रहा है। “
(3 ) नैदानिक परामर्श (Clinical Counselling ) –
सर्वप्रथम नैदानिक उपबोधन शब्द का प्रयोग एच० बी० पेपिंसकी ने किया पेपिंस्की महोदय का यह कहना है कि नैदानिक उपबोधन, उपबोधन का एक प्रारूप है। पेपिंस्की के अनुसार नैदानिक उपबोधन का आशय है
- पूर्णरूप से न दबे व अक्षम न बना देने वाले असाधारण कार्य-व्यापार से सम्बन्ध (इन्द्रिय या आंगिक के अलावा) कुसमायोजनों का निदान व उपचार (The diagnosis and treatment of minor (non-cmbeded, non-incapiciating), functional (non-organic) mala adjustment),
- उपबोध एवं सेवार्थी की बची मुख्य रूप से वैयक्तिक और आमने-सामने का सम्बन्ध (A relationship primarily individual and face to face between counsellor and client)
( 4 ) वैवाहिक परामर्श (Marriage Counselling )
वैवाहिक परामर्श के अन्तर्गत, उपयुक्त जीवन प्रार्थी के चयन हेतु राय एवं सुझाव दिए जाते हैं अथवा व्यक्ति की सहायता की जाती है। यदि सेवार्थी का विवाह हो चुका है तो उसे, वैवाहिक जीवन से सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं के निराकरण हेतु परामर्श दिया जाता है। औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण, विदेशों में परिवार अत्यधिक तीव्र गति से विघटित हो रहे हैं। यही कारण है कि विदेशों में वैवाहिक परामर्श की अत्यधिक आवश्यकता अनुभूत की जा रही है। हमारे देश में महानगरों की दशा बहुत सीमा तक विदेशों के समान ही हो रही है तथा यहाँ पर भी वैवाहिक परामर्श की आवश्यकता को व्यक्ति गहनता में अनुभव करने लगे हैं।
(5) व्यावसायिक परामर्श (Vocational Counselling )
व्यावसायिक परामर्श का केन्द्र-व्यक्ति अथवा सेवार्थी की वे समस्याएँ, जो किसी व्यवसाय के चयन अथवा व्यवसाय हेतु तैयारी करते समय उसके समक्ष उत्पन्न होती हैं। इंगलिश एवं इगलिश के अनुसार व्यावसायिक उपबोधन, उन प्रक्रियाओं से सम्बन्धित होता है जो सेवार्थी द्वारा किसी व्यवसाय के चयन तथा उसकी तैयारी की समस्याओं पर केन्द्रित होती है।
(6) छात्र परामर्श (Students Counselling)
छात्र परामर्श, छात्रों की समस्याओं से सम्बन्धित होता है जैसे-शिक्षण संस्थाओं को चयन करने से सम्बन्धित समस्या, अध्ययन विधियों समायोजन एवं पाठ्यक्रम के चुनाव इत्यादि से सम्बद्ध सूचनाएँ। छात्रों के समग्र शैक्षिक वातावरण की समस्याओं से यह परामर्श, सम्बन्धित होता है। नैदानिक परामर्श तथा छात्र उपबोधन में अन्तर मात्र यह है कि- “छात्र उपबोधन के अन्तर्गत, विद्यार्थियों का मूल चरित्र शैक्षिक होता है। इस प्रकार शिक्षा का उपयोग व्यक्तिगत सम्पर्क की स्थिति में प्रत्यक्ष रूप से व्यक्ति की आवश्यकताओं से होता है।” इस प्रकार छात्र परामर्श शैक्षिक जीवन को प्रभावित करने वाली समस्याओं से सम्बन्धित होता है। इसके अन्तर्गत, शिक्षा का प्रयोग वैयक्तिक सम्पर्क के द्वारा, व्यक्ति (सेवार्थी) की आवश्यकताओं के अनुसार किया जाता है।
(7) स्थानापन परामर्श (Placement Counselling )-
स्थानापन परामर्श, सेवार्थी की, उसकी अभिरुचियों, दृष्टिकोणों, तथा योग्यताओं के अनुरूप व्यवसाय चयन में सहायता करता है अर्थात् सेवार्थी जिस प्रकार के पद या कार्य के अनुरूप योग्यता रखता है तथा जिसके व्यक्तित्व को रोजगार सन्तोष प्राप्त ।सकता है, उस प्रकार के व्यवसाय या कार्य में नियुक्ति प्राप्त करने में नियोजन उपबोधन सेवार्थी की सहायता करता है।
परिवार की परिभाषा लिखिये और उसके महत्व पर प्रकाश डालिये।
परामर्श के उपरोक्त प्रकारों से मात्र समस्याओं के उन क्षेत्रों का संकेत प्रदान करते हैं, जिनके लिए परामर्श की आवश्यकता होती हैं। सेवार्थी द्वारा अनुभव की जाने वाली समस्याओं की प्रकृति पर ही परामर्श का प्रकार निर्भर करता है। रोजर्स एवं बैलेन के मतानुसार उपबोधक को प्रत्येक स्थिति में व्यक्ति में रूचि प्रदर्शित करनी चाहिए न कि आवश्यक समस्या में ही यह स्वीकार करने पर वैयक्तिक समस्याओं में परामर्श देने और शैक्षिक व व्यावसायिक कठिनाइयों में परामर्श प्रदान करने में कोई मुख्य अन्तर परिलक्षित नहीं होता है। दोनों विद्वानों के विचारों से यह स्पष्ट होता है कि व्यक्ति की समस्याओं में परामर्श देते समय, सेवार्थी को एक व्यक्ति के रूप में स्वीकार करना होता है और परामर्श का केन्द्र सेवार्थी का व्यक्तित्व ही होता है।
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