पारिस्थितिकीय पतन तथा पर्यावरण प्रदूषण पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।

पर्यावरण शाब्दिक रूप से दो शब्दों-परि + आवरण से मिलकर बना है। परि का अभिप्राय ‘ चारों ओर’ तथा आवरण का अर्थ होता है ‘ढके हुए’। इस प्रकार पर्यावरण का अर्थ उन सभी प्राकृतिक और सामाजिक दशाओं से है जो एक प्राणी के जीवन को चारों ओर से घेरे रहती है। उदाहरणार्थ, जल, हवा, भूमि की बनावट, तापमान, ऋतुएँ, खनिज पदार्थ, आर्द्रता, विभिन्न जीव-जन्तु, उद्योग-धन्धे, ध्वनि तथा उपयोग में लायी जाने वाली विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ और – हमारा सम्पूर्ण सामाजिक जीवन आदि वे परिस्थितियाँ हैं जिनसे मानव का जीवन चारों ओर से घिरा रहता है। इस प्रकार इन सभी परिस्थितियों की संयुक्तता को हम मनुष्य का पर्यावरण कहते है। पारिस्थितिकीय पतन

ई० ए० राम ने पार्यवरण को परिभाषित करते हुए लिखा है कि “पर्यावरण कोई भी वह बाहरी शक्ति है जो मानव को प्रभावित करती है।”

जिस्बर्ट के अनुसार, “पर्यावरण का अभिप्राय उस प्रत्येक दशा से है जो किसी तथ्य (वस्तु) अथवा मानव को चारों ओर से घेरे रहती है तथा प्रत्यक्ष रूप से उसे प्रभावित करती है।”

मैकाइवर एवं पेज के अनुसार, “पर्यावरण जीवन के प्रारम्भ से ही, यहाँ तक कि उत्पादक कोष्ठों से ही मानव को प्रभावित करने लगता है।”

पारिस्थितिकीय पतन

आधुनिक समय में पर्यावरण प्रदूषण पारिस्थितिकी अपकर्ष का प्रमुख कारण है। मानव जीवन प्रारम्भिक युग में प्राकृतिक घटनाओं में पूर्ण सन्तुलन में था। मानव का पर्यावरण प्रदूषण मुक्त था। मानव ने वैज्ञानिक प्रगति के साथ-साथ नये आविष्कार करके प्रकृति पर विजय पाने और प्राकृतिक दशाओं को अपने अधीन बनाने में सफलता प्राप्त की, परिणामस्वरूप प्रकृति का सन्तुलन गड़बड़ाने लगा। आज अनियोजित विकास से हमारा पर्यावरण इतना प्रदूषित हो गया कि उसके दुष्प्रभावों ने अधिकतर देशों के सामने एक गम्भीर खतरा उत्पन्न कर दिया है।

वास्तव में पर्यावरण प्रदूषण, वायु, पानी एवं स्थल की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक विशेषताओं में होने वाला वह अवाक्षनीय परिवर्तन है जो मानव और उसके लिए लाभदायक जीव-जन्तुओं, पौधों तथा कच्चे माल आदि को किसी भी रूप में हानि पहुँचाता है। इस प्रकार वायु, जल, वनस्पति, जीवजन्तु तथा प्राकृतिक गैसें पर्यावरण के मुख्य घटक हैं। यह सभी घटक पारस्परिक व्यवहार के द्वारा प्रकृति के सन्तुलन को बनाये रखते हैं। इनमें से किसी भी घटक का अधिक उपयोग होने या उसके प्राकृतिक स्वरूप में अत्यधिक परिवर्तन हो जाने से प्राकृतिक पर्यावरण का सन्तुलन बिगड़ने लगता है इसी दशा को हम पर्यावरण प्रदूषण कहते हैं। पर्यावरण प्रदूषण के अनेक प्रकार हैं जिन्हें वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, तथा रेडियोधर्मी प्रदूषण जैसे भागों में विभाजित किया जाता है।

जल प्रदूषण

जल एक जीवनदायी तत्व है जिसके बिना किसी भी जीव के अस्तित्व की कल्पना ही नहीं की जा सकती। सम्पूर्ण दुनिया के लगभग दो-तिहाई हिस्से पर पानी है। अनेक भौतिक, प्रौद्योगिक तथा मानवीय कारणों से जब पानी का स्वरूप प्राकृतिक नहीं रह जाता एवं उसमें गन्दे पदार्थों और विषाणुओं की मात्रा बढ़ने लगती है तब इसी दशा को हम जल प्रदूषण कहते हैं। जल प्रदूषण के प्रमुख स्रोत निम्नांकित है-

  1. नदियों, झीलों और तालाबों में सीवर के गन्दे पानी, गन्दे कूड़े और मरे हुए जानवरों को छोड़ने से जल प्रदूषित हो जाता है।
  2. कारखानों के गन्दे अवशिष्ट को नदियों में मिलाने से जल प्रदूषित होता है।
  3. विभिन्न प्रकार के डिटर्जेन्ट और साबुनों के प्रयोग से जल प्रदूषण में वृद्धि हुई है।
  4. आण्विक और नाभिकीय ऊर्जा बढ़ने से सक्रिय पदार्थ जल को प्रदूषित कर देते है।
  5. वर्षा के साथ खेतों में उर्वरकों और कीटनाशक दवाओं का एक बड़ा भाग जमीन के अन्दर तथा ऊपर पानी में मिल जाता है जिससे जल प्रदूषित हो जाता है।
  6. जल प्रदूषण का भारत में एक प्रमुख कारण धार्मिक रूढ़िवादिता है।

जल प्रदूषण के प्रभाव-

  1. जल प्रदूषण से पीलिया, अपच, तपेदिक, हैजा, डायरिया आदि रोग फैलते हैं।
  2. फैक्ट्रियों से निकलने वाले प्रदूषित पानी से सिंचाई करने से भूमि की उर्वरा शक्ति कमजोर हो जाती है।
  3. पानी में रहने वाले अनेक जीव-जन्तुओं के जीवन पर जल प्रदूषण का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  4. जल प्रदूषित होने से पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है जिससे सभी जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

जल प्रदूषण की रोकथाम के उपाय-

  1. फैक्ट्रियों से निकलने वाले गन्दे पदार्थों को नदियों में प्रवाहित होने से रोका जाय साथ ही समय-समय पर नदियों की सफाई की जाय।
  2. सार्वजनिक तालाबों और झीलों की समय-समय पर सफाई करायी जाये।
  3. गन्दे पानी को शुद्ध करने के लिए कारखानों में संयन्त्र लगाया जाय।
  4. मृत जीवों को नदियों में फेकने पर कठोर कानून बनाया जाय।
  5. सरकार जल प्रदूषण से सम्बन्धित कठोर कानून बनाये।
  6. शैवाल घास को गाँव के तालाबों में पैदा करने को प्रेरित किया जाय।

ध्वनि प्रदूषण

वातावरण में बहुत तीव्र और असहनीय आवाज से जो शोर उत्पन्न होता है उसी को वनि प्रदूषण कहा जाता है। आज सभी बड़े नगरों में मशीनों, मोटर गाड़ियों, रोलों तथा लाउडस्पीकरो क कारण वातावरण में शोर का स्तर 80 से 100 डेसिबल तक पहुँच चुका है। शोर से उत्पन्न होने ला वह प्रदूषण है जिसने मानव जीवन के सामने एक मुसीबत उत्पन्न कर दी है।

ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) के स्रोत-

कारखानों की मशीनों द्वारा उत्पन्न शोर, टैम्पो और खटारा गाड़ियों की बढ़ती संख्या के कारण शोर तथा हवाई अड्डों पर उतरने वाले हवाई जहाज का शोर, विवाह और त्यौहारों के समय लाउडस्पीकरों और बैण्ड की तेज आवाज, घरों में टी.वी. टेपरिकार्डर की तेज आवाज भी ध्वनि प्रदूषण का मुख्य स्रोत है।

ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव

अधिक समय तक शोर के बीच रहने से शरीर की शिराएँ सिकुड़ जाती हैं तथा उनमें रक्त का बहाव कम हो जाता है इससे व्यक्ति में मानसिक तनाव बढ़ते हैं। ध्वनि प्रदूषण से मनुष्य में बहरापन, अनिद्रा, नाड़ी सम्बन्धी रोग, एलर्जी तथा दमा को प्रोत्साहन मिलता है।

ध्वनि प्रदूषण के निराकरण के उपाय

ध्वनि प्रदूषण के निराकरण के लिए आवश्यक है कि तीव्र आवाज करने वाली पुरानी मोटरों पर नगरों के बीच निकलने पर प्रतिबन्ध लगाया जाय। उद्योगों तथा कल कारखानों को मुख्य आबादी वाले क्षेत्रों से दूर स्थापित किया जाय। मोटर गाड़ियों में तेज आवाज करने वाले हार्न न लगाये जाएँ।

सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ व परिभाषा बताइए।

मृदा प्रदूषण

मृदा या मिट्टी अथवा भूमि की संरचना विभिन्न प्रकार के खनिज पदार्थों, लवण, गैस, जल, चट्टानों के चूर्ण तथा जीवाश्म आदि के मिश्रण से होती है। इन पदार्थों के अनुपात में जब अवांछित परिवर्तन होने लगता है तब इसी दशा को मृदा प्रदूषण कहा जाता है। मृदा प्रदूषण के कारणों में कीटनाशक दवाइयों और रासायनिक उर्वरकों का बढ़ता हुआ प्रयोग प्रमुख है। यह दवाइयाँ और उर्वरक जमीन के अन्दर जाकर मिट्टी के उन सूक्ष्म जीवों को नष्ट कर देते हैं जो मिट्टी के प्राकृतिक स्वरूप को बनाये रखने में योगदान करते हैं। मृदा प्रदूषण (Soil Pollution) से भूमि का उपजाऊपन कम हो जाता है। परिणामस्वरूप उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मृदा प्रदूषण को रोकने के लिए आवश्यक है कि कीटनाशक दवाओं का प्रयोग अत्यन्त सावधानीपूर्वक किया जाय।

रेडियोधर्मी प्रदूषण

रेडियोधर्मी प्रदूषण (Redioactive Pollution) सम्पूर्ण मानव जाति के लिए आज एक बहुत बड़ा खतरा बनता जा रहा है। इसका प्रमुख करण यह है कि जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण तथा मृदा प्रदूषण को संगठित प्रयत्नों से रोका जा सकता है किन्तु रेडियोधर्मी प्रदूषण को रोक सकना अत्यन्त कठिन कार्य है। परमाणु रियेक्टरों अथवा भट्टियों में आण्विक प्रक्रियाओं से बचे हुए कंचरे को नष्ट करना एक गम्भीर समस्या है। एक बार वातावरण में रेडियोएक्टिव किरणें उत्पन्न हो जाने के बाद उन्हें नियंत्रित नहीं किया जा सकता। यह रेडियोधर्मी प्रदूषण तरह-तरह के शारीरिक दोषों को जन्म देने का एक प्रमुख कारण है। परमाणु परीक्षण जल और स्थल दोनों ही जीव-जन्तुओं के जीवन पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं। रेडियोधर्मी प्रदूषण को तभी रोका जा सकता है जब अन्तर्राष्ट्रीय कानून बनाकर नाभिकीय विस्फोटों पर पूर्णतया प्रतिबन्ध लगाया जाय।

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