पालों की धार्मिक नीति
पालों की धार्मिक सहिष्णुता भी प्रशंसनीय है। पाल शासकों का झुकाव बौद्धधर्म के प्रति अधिक था परन्तु इन्होंने हिन्दू धर्म की न तो उपेक्षा की और न ही बौद्ध धर्म को जबर्दस्ती दूसरे पर थोपने का प्रयास किया। पालों के प्रयास से बौद्ध धर्म इस समय अपने उत्कर्ष के शिखर पर पहुँच गया। बज्रयान शाखा का विशेष विकास हुआ। इसके अतिरिक्त सहजयान और कालचक्रयान बौद्ध शाखा का विकास भी पालों के समय में हुआ।
बौद्ध धर्म के अतिरिक्त वैष्णव धर्म, भागवत, शैव सम्प्रदाय की भी प्रगति हुई शक्तिपूजा एवं नाग पूजा की प्रथा भी प्रचलित हुई भौद्धों एवं अन्य सम्पदाय वालों को दान दिये गये तथा मन्दिरों एवं मूर्तियों का निर्माण हुआ। जैन धर्म का कोई प्रभाव पालों के समय में दिखायी नहीं देता। इस प्रकार पाल वंश के काल में धार्मिक एकता का जो उदाहरण देखने को मिलता है वह सराहनीय है।
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