न्यायिक पुनरावलोकन का क्या अर्थ है?

न्यायिक पुनरावलोकन का अर्थ – न्यायिक पुनरावलोकन अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय को एक अद्भुत शक्ति प्राप्त है। यह शक्ति संविधान ने यद्यपि उसे दी नहीं है, तथापि सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं से | अर्जित कर लिया है। इसे न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति कहते हैं। डिमोक ने न्यायिक पुनरावलोकन की परिभाषा करते हुए कहा है न्यायिक पुनरावलोकन, व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित कानून और कार्यपालिका या प्रशासकीय अधिकारियों द्वारा किये गये कार्यों से सम्बन्धित अपने सामने आये मुकदमें, न्यायालय द्वारा उस परीक्षण को कहते हैं, जिसके अन्तर्गत ये निर्धारण करते हैं कि ये कानून या कार्य संविधान द्वारा प्रतिबन्धित है या नहीं अथवा संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का अतिक्रमण करते हैं या नहीं।

न्यायिक पुनरावलोकन की सबसे सुन्दर और सरल व्याख्या मुनरो ने की है। उनके शब्दों में- “यह वह शक्ति है जिसके अन्तर्गत कांग्रेस द्वारा पारित किसी कानून अथवा किसी राज्य के संविधान की किसी व्यवस्था के विषय में यह निर्णय किया जाता है कि वह संयुक्त राज्य के के अनुकूल है या नहीं।”

न्यायिक पुनरावलोकन का आधार

संविधान ने सर्वोच्च न्यायालय को स्पष्ट रूप से न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति प्रदान नहीं की है। इसकी स्पष्ट रूप से घोषणा सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मार्शल ने 1803 में एक विवाद ‘मारबरी बनाम मैडीसन’ के ऐतिहासिक निर्णय में की मार्शल ने विवाद का निर्णय देते हुए लिखा है- “सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बनाया गया कानून संविधान की व्याख्या के प्रतिकूल है तो वह अवैध है। तब अवैध होने पर भी न्यायालय के लिए क्या उसे लागू करना अनिवार्य है?”

संविधानवाद और संविधान में क्या अन्तर है?

न्यायमूर्ति मार्शल की घोषणा का अर्थ है-

  1. अमेरिका में संविधान ही सर्वोच्च कानून है।
  2. संविधान की व्यवस्था के प्रतिकूल बनाया गया कोई कानून वैध नहीं है।
  3. यदि व्यवस्थापिका द्वारा पारित कोई कानून संविधान के प्रतिकूल है तो न्यायपालिका का यह कर्तव्य है कि वह उस कानून को अवैध घोषित कर दे।

मुख्य न्यायाधीश मार्शल द्वारा न्यायपालिका को प्रदत्त की गई इसी शक्ति के प्रकाश में सर्वोच्च न्यायालय ने कई उल्लेखनीय निर्णय दिये और न्यायपालिका का व्यवस्थापिका पर वर्चस्व स्थापित किया। उदाहरणार्थ, 1918 में हैमर बनाम डैगनपोर्ट में सर्वोच्च न्यायालय ने कांग्रेस द्वारा एक कानून को अवैध घोषित किया जिसके द्वारा उसने बच्चों के श्रम से उत्पादित वस्तुओं को वाणिज्य से निष्कासित करने की चेष्टा की थी। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किये गये ऐसे अनेक महत्वपूर्ण निर्णयों की एक लम्बी सूची है।

न्यायपालिका पुनरावलोकन की आलोचना

अमेरीकी संविधान के कई दि ने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति का विरोध किया है। इनमें कॉरबिक हँस तथा मैक्सक प्रमुख है। इन विद्वानों के तर्क इस प्रकार हैं-

  1. कांग्रेस देश की प्रतिनिधि संस्था है। कांग्रेस देश तथा लोकमत का सच्चा प्रतिनिधित्व करती है। अतः कांग्रेस द्वारा बनाये गये कानूनों को अवैध घोषित करके सर्वोच्च न्यायालय, त लोकमत और प्रजातन्त्र की उपेक्षा करता है। .
  2. न्यायाधीश तथा न्यायविद् शब्दों का अर्थ निकालने में बाल की खाल निकालते हैं और प्रायः विषय की आत्मा से वे भटक जाते हैं। इस प्रकार कई कानूनों के साथ अन्याय होता है।
  3. सर्वोच्च न्यायालय निर्णय देते समय किसी कानून के पक्ष में अथवा विपक्ष में केवल उन्हीं तर्कों पर विचार करता है, जो न्यायालय में उसके सम्मुख प्रस्तुत किये जाते हैं। यह आवश्यक तो नहीं कि सभी सम्भावित तर्क उसके सम्मुख प्रस्तुत किये जायें। यह नितान्त गलत होगा कि कानून इसलिए अवैध घोषित कर दिया जाये, क्योंकि सरकारी वकील उसके पक्ष में उचित तर्क नहीं दे पाये।
  4. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय भी बहुमत से दिये जाते हैं। इस प्रकार बहुमत यदि केवल एक व्यक्ति का भी हो, तो वह एक मत ही सम्पूर्ण कांग्रेस के निर्णय पर पानी फेर सकता है।
  5. न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति के कारण सर्वोच्च न्यायालय अपने न्यायिक क्षेत्र से हटकर राजनीति के क्षेत्र में हस्तक्षेप करने लगा है।
  6. न्यायाधीश प्रायः पुराने विचारों के होते हैं। उनको जीवन की सभी सुविधाएँ उपलब्ध रहती है। अत: वे प्रगतिशील कानून के प्रति उत्साहजनक दृष्टिकोण नहीं रखते।
  7. न्यायाधीशों के निर्णय बदलते रहते हैं। कितनी ही बार सर्वोच्च न्यायालय ने पुराने निर्णय बदले।

न्यायिक पुनरावलोकन के समर्थन में तर्क

न्यायिक पुनरावलोकन के पक्ष में भी विभिन्न तर्क दिये गये हैं। उनमें से कुछ महत्वपूर्ण तर्क इस प्रकार है- ]

  1. अमेरिका में कोरा शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त नहीं है, उसके साथ नियन्त्रण और सन्तुलन का सिद्धान्त भी है। इस सिद्धान्त के कारण यह आवश्यक है कि व्यवस्थापिका कार्यपालिका की निरंकुशता पर अंकुश रखा जाये। न्यायिक पुनरावलोकन यही कार्य और करता है।
  2. अमेरिका में संसद की नहीं, संविधान की सर्वोच्चता है। अतः संविधान की आत्मा की रक्षा के लिए न्यायिक पुनरावलोकन आवश्यक है।
  3. न्यायिक पुनरावलोकन के विरुद्ध एक व्यक्ति की तानाशाही का तर्क उपयुक्त नहीं हैं, क्योंकि अब तक जितने कानून अवैध घोषित किये गये हैं उनमें से अधिकांश निर्णय बहुमत द्वारा ही दिये गये हैं।
  4. कांग्रेस कोई कानून पारित करने पर उसके साथ एक उपबन्ध भी जोड़ देती है।\ ताकि कानून यदि अवैध हुआ तो केवल कानून का वही अंश लागू नहीं होगा जो वास्तव में अवैध है, शेष कानून लागू रहेगा। सर्वोच्च न्यायालय भी किसी कानून का अपेक्षित भाग ही अवैध घोषित करती है।

उपर्युक्त तकों के कारण पिछले कुछ वर्षों से अमेरिका में न्यायिक पुनरावलोकन के विरोध का जोश ठण्डा पड़ गया है। इसका मुख्य कारण यह भी है कि अब न्यायधीश भी प्रतिक्रियावादी नहीं रह गये हैं।

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