निरक्षरता उन्मूलन के निम्नलिखित कार्यक्रम संचालित किये जा सकते हैं

निरक्षरता उन्मूलन के निम्नलिखित कार्यक्रम संचालित किये जा सकते हैं –

(1) साक्षरता कक्षाओं का संगठन करना

  • (क) निरक्षर महिलाओं तथा पुरुषों की पढ़ाई-लिखाई का प्रबन्ध करने के लिए तथा उनको साधारण गणित का ज्ञान प्रदान करने के लिए रात्रि पाठशाला अथवा साक्षरता कक्षाओं का आयोजन किया जा सकता है।
  • (ख) साक्षरता कक्षा की निश्चित अवधि की समाप्ति के बाद तथा बीच-बीच में, समय समय पर कक्षा में पढ़ाई गई बातों की परीक्षा लेने की व्यवस्था करना तथा सफल शिक्षार्थियों को प्रमाण-पत्र देना।
  • (ग) निरक्षरता उन्मूलन के कार्यक्रम में शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं, योग्यताओं आदि को समझने के लिए शिक्षकों का प्रशिक्षण भी सम्मिलित है।

(2) सांस्कृतिक एवं मनोरंजनात्मक कार्यक्रमों का संगठन करना –

  • (क) जिस प्रकार शरीर के लिए भोज्य पदार्थों की आवश्यकता है उसी प्रकार स्वस्थ मस्तिष्क तथा चित्तवृत्तियों को संतुलित रखने के लिए सांस्कृतिक एवं मनोरंजनात्मक कार्यक्रमों की आवश्यकता है। इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु समाज शिक्षा भजन, कीर्तन, नाटक, प्रदर्शनी तथा कक्षा आदि कार्यक्रमों का संगठन करती है।
  • (ख) कवि दरबार एवं कवि-सम्मेलनों का आयोजन कराना जिससे जनता के नीरस जीवन में सरसता का संचार हो सके।
  • (ग) प्राचीन परम्परा से चले आ रहे त्यौहारों का राष्ट्रीय अर्थ में राष्ट्रोन्नति के लिए आयोजन करना तथा उनके द्वारा प्रहलाद, भरत, तिलक, गाँधी आदि महापुरुषों के आचरणों का स्मरण कराना।

(3) अभिप्रेरित करना

नित्य प्रति के व्यवहार में आने वाली समस्याओं पर कक्षा में न तो कोई बात होती है और न प्रौढ़ शिक्षण द्वारा उस पर कोई प्रकाश ही डाला जाता है। अतएव प्रौढ़ यह कहते हुए कि ‘सुर नर मुनि’ सब की यह रीती स्वारथ लागि करें सब प्रीति।।’ यह कक्षा में आना बन्द कर देता है। जब कभी उनके कक्षा में न आने पर विचार एवं छानवीन की जाती है तो पता चलता है कि उनको ठीक से प्रेरित नहीं किया गया है, तथा उनकी अनुभूत आवश्यकताओं की प्राप्ति हेतु कोई उपाय नहीं बताया गया है।

(4) अनुसरण कक्षाएं

साक्षरता प्रसार के मार्ग में अनुसरण कक्षाओं की नितान्त आवश्यकता है। इनका अभाव प्रायः सर्वत्र व्याप्त है। फलतः जो कुछ प्रौदों द्वारा सीखा हुआ कला-कौशल रहता है। सब लुप्त हो जाता है और सारा समय तथा इस कार्य में लगाया हुआ धन बर्बाद हो जाता है।

(5) कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण

ग्राम नेताओं, स्वेच्छा से कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं, विभिन्न संस्थाओं के कर्मचारियों, छात्रों एवं अध्यापकों की सेवाओं से लाभ उठाने के लिए जिन्हें समाज कार्य से प्रशिक्षित करना भी समाज शिक्षा के कार्यक्रम में सम्मिलित है।

(6) दृश्य-श्रव्य साधनों के द्वारा शिक्षा प्रदान करना

नागरिकता की जागृति के लिए रेडियो सुनने वाले समूहों का संगठन करना, विभिन्न विषयों पर फिल्म दिखाना और इसके लिए फिल्म स्ट्रिप, स्लाइड मैजिक लैन्टर्न, प्रोजेक्टर, पोस्टर, चार्ट आदि की व्यवस्था करना समाज-शिक्षा के कार्यक्रम के अन्तर्गत हैं।

(7) पुस्तकालयों तथा वाचनालयों का संगठन करना

जनता को बड़ी तेजी से बदलती हुई सामाजिक परिस्थितियों और वैज्ञानिक गतिविधियों से अवगत कराने के लिए समाज शिक्षा सचल एवं अचल पुस्तकालयों की स्थापना करती हैं। समाज शिक्षा शिक्षाप्रद सामग्रियों जैसे पोस्टर, चार्ट आदि के वितरण की व्यवस्था करती है। मिति-पत्रों एवं नवसाक्षरों के पढ़ने हेतु पत्रिकाओं का उन्हीं के द्वारा प्रकाशन एवं संचालन कराना भी निरक्षरता उन्मूलन का एक प्रमुख कार्य है।

परामर्श के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।

(8) सामूहिक संगठनों की स्थापना को प्रोत्साहित कराना –

ग्रामीण क्षेत्रों में खेल-कूद तथा व्यायाम के लिए क्रीड़ा, क्षेत्र, मल्लशाला तथा व्यायामशाला आदि की स्थापना करना समाज शिक्षा का एक आकर्षक कार्यक्रम है। बालकों, महिलाओं, युवकों तथा वृद्धों के लिए सामूहिक कार्यक्रम बनाना तथा युवक मंगल दल तथा महिला मंगल दल, ग्राम रक्षा दल, कृषक समाज आदि का संगठन करना एवं इन संगठनों के द्वारा नेतृत्व का विकास करना समाज शिक्षा संगठन का एक पुनीत कर्तव्य है। हमारे देश में न जाने कितने महात्मा गांधी, विनोबा, सरदार पटेल, सुभाष एवं जवाहरलाल नेहरू पड़े हुए है किन्तु उनके नेतृत्व के विकास के लिए कोई साधन नहीं है। साधनों के अभाव में उनकी योग्यता खोई रहती है। वे लोग ऐसे गहन अन्धकार के पर्दे के पीछे छिपे हैं कि उन्हें कुछ दिखाई ही नहीं देता। वे अपने प्रयास भी नहीं कर सकते। उनके लिए अनेकानेक संगठनों का निर्माण का ज्ञान का दीप जलाना शिक्षकों का कर्तव्य है।

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