आज हमारे देश में नयी शिक्षा संरचना 10+2+3 लागू है। इस संरचना तक पहुँचने का लम्बा इतिहास है इस संरचना का एक ठोस आधार है और यह संरचना कुछ निश्चित उद्देश्यों को सामने रखकर बनाई गई है। प्राचीन और मध्यकालीन में हमारे देश में शिक्षा केवल दो स्तरों में विभाजित थी, प्राथमिक और उच्च, परन्तु उस समय इन स्तरों का कोई राष्ट्रव्यापी स्वरूप निश्चित नहीं धा होता भी कैसे तब शिक्षा पर राज्य का नियन्त्रण ही नहीं था। आधुनिक काल में अंग्रेजों के आगमन के बाद इसका राष्ट्रव्यापी स्वरूप निश्चित होना शुरू हुआ। सर्वप्रथम 1813 में ब्रिटेन की सरकार ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी को जारी अपने आज्ञा पत्र मे कम्पनी को यह आदेश दिया कि वह अपने द्वारा शासित भारतीयों की शिक्षा की समुचित व्यवस्था करे।
अतः केन्द्रीय सरकार ने भारतीय शिक्षा पर समग्र रूप से विचार करने और उसके विभिन्न स्तरों के प्रसार एवं उन्नयन के लिए सुझाव देने के उद्देश्य से 1964 में भारतीय शिक्षा आयोग (कोठारी कमीशन) की नियुक्ति की इस आयोग ने पूरे देश के लिए समान शिक्षा सरंचना 10+2+3 प्रस्तावित की। भारत सरकार ने इस आयोग के सुझावों के आधार पर 1968 में राष्ट्रीय शिक्षा की प्रथम 10 वर्षीय शिक्षा को 5+3+2 में विभाजित किया गया और इसके लिए पूरे देश में आधारभूत पाठ्यचर्या (Core Curriculum) लागू करने पर बल दिया गया। 1+2 को दो वर्गों में विभाजित किया गया है- सामान्य (General) जिसके द्वारा छात्रों को उच्च शिक्षा में प्रवेश के लिए तैयार किया जायेगा और व्यावसायिक (Vocational) जिसके द्वारा छात्रों को विभिन्न व्यवसायों-कृषि, विभिन्न कुटीर उद्योग-धन्धों और विभिन्न कला-कौशलों आदि की शिक्षा दी जायेगी. उन्हें अपनी जीविका कमाने योग्य बनाया जाएगा। 1+3 (स्नातक स्तर) पर प्रथम दो वर्षों में छात्रों को उनके द्वारा चुने गये विषयों में विशेष ज्ञान कराया जायगा और उसके तीसरे वर्ष में उन्हें सम्पूर्ण शिक्षा (Complete Education) दी जायेगी और इस प्रकार उन्हें पूर्ण व्यक्ति बनाया जाएगा क्षेत्र विशेष में कुशलतापूर्वक कार्य करने योग्य बनाया जाएगा।
मानवीय संसाधन से क्या अभिप्राय है।
अब आवश्यकता थी पूरे देश के लिए प्रथम 10 वर्षीय आधारभूत पाठ्यचर्या के निर्माण की +2 पर सामान्य और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के निर्माण की और +3 पर पूर्ण एवं उपयोगी पाठ्यक्रमों के निर्माण की प्रथम 10 वर्षीय आधारभूत पाठ्यचर्या के निर्माण का कार्य किया, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने इसे द करिकुलम फॉर दा टेन ईयर स्कूल ए फ्रेम वर्क” के नाम से 14 नवम्बर 1975 को प्रकाशित किया। 1976 में इसको कुछ प्रदेशों में लागू किया गया और बस तभी से इसके गुण एवं दोषों का विवेचन प्रारम्भ हो गया। इस पाठ्यचर्या को लागू करने में अनेक – कठिनाइयाँ सामने आई, जिनमें मुख्य कठिनाइयाँ थी. विद्यालयों में शिक्षकों, प्रशिक्षकों, प्रयोगशालाओं और कर्मशालाओं का अभाव।
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