नन्दवंश के महत्व – नन्द राजाओं का शासन काल भारतीय इतिहास में कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। सामाजिक दृष्टि से यह निम्न वर्ग के उत्थान का काल माना जाता था। उनका राजनैतिक महत्व इस तथ्य में निहित था कि इस वंश के राजाओं ने उत्तर भारत में सर्वप्रथम एकछत्र शासन की स्थापना की। उन्होंने एक ऐसी सेना तैयार की थी जिसका उपयोग परवर्ती मगध राजाओं ने विदेशी आक्रमणकारियों को रोकने तथा भारतीय सीमा में अपने राज्य का विस्तार करने में किया।
बिन्दुसार का शासनकाल का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
कर्टियस के अनुसार धनानंद के पास 20 हजार अश्वारोही, 2 लाख पैदल, 2 हजार रथ तथा तीन हजार हावी थे। उसका साम्राज्य बहुत विशाल था जो उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी तक तथा पश्चिम में सिन्धु नदी से लेकर पूर्व में मगध तक फैला हुआ था। पूर्वी दक्षिणापथ में कलिंग भी इसके अन्तर्गत था। नन्दों के समय में मगध राजनैतिक दृष्टि से अत्यन्त शक्तिशाली तथा आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त समृ(शाली बन गया।
नन्दों की अतुल सम्पत्ति को देखते हुए यह अनुमान करना स्वाभाविक है कि हिमालय पार के देशों के साथ उनका व्यापारिक सम्बन्ध था। व्याकरणाचार्य पाणिनी, वर्ष, उपवर्ष, काव्यायन आदि विद्वान नन्द काल में ही हुए थे। नन्दों ने नाप तौल की एक नयी प्रणाली चलायी। भारत की एकता की नीव इसी काल में पड़ी। कलिंग में सिंचाई योजना चलाने का श्रेय नन्दों को ही है। इस प्रकार नन्दकाल में मगध साम्राज्य राजनैतिक एवं सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टि से प्रगति के पथ पर अग्रसर हुआ।