नक्सलवाद वामपंथी रुझानवाला उग्रवाद है जिसे माओवादी विचारधारा वैचारिक आधार प्रदान करती है। आवादियों की तरह नक्सलवादियों के लिए भी आतंक और हिंसा साधन है जिसके जरिए वे अपने सामाजिक एवं आर्थिक एजेण्डों को क्रियान्वित करने की कोशिश करते हैं, ताकि समता-मूलक समाज की नींव रखी जा सके। नक्सलवाद का स्वरूप जहाँ अखिल भारतीय है वहीं यह धीरे-धीरे नेपाली माओवाद से जुड़कर अन्तराष्ट्रीय स्वरूप ग्रहण करने की कोशिश कर रहा है।
नक्सलवादी आन्दोलन का बदलता स्वरूप
नक्सलवादी आन्दोलन का उभार आरंभ में निर्दोष और गरीब लोगों की रक्षा के नाम पर हुआ था और इसके सामाजिक-आर्थिक निहितार्थों के मद्देनजर इसके वैचारिक तत्त्व कहाँ अधिक मजबूत रहे। लेकिन 1980 के दशक के अंत तक आते-आते विचारधारा का तत्त्व गौण पड़ता चला गया और इसके सामाजिक आर्थिक पहलू भी पीछे छूटते चले गए। धीरे-धीरे सामाजिक-आर्थिक न्याय की लड़ाई जातीय लड़ाई में तब्दील हो गई फिर मजबूत होते आपराधिक रूझानों के मद्देनजर यह आंदोलन अपने मूल उद्देश्यों से भटकता हुआ स्वयं एक शोषण उत्पीड़नकारी तंत्र का रूप ग्रहण कर चुका है। आज यह कानून और व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ाता हुआ, शांति को भंग करता हुआ, आम लोगों के लिए ही खतरा बन चुका है। नक्सलवाद के बदलते हुए स्वरूप को निम्न परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है
(1) अपने आरंभिक दौर में नक्सलवाद मूलतः प्रगतिशील सामाजिक आर्थिक चेतना पर आधारित एक वैचारिक आंदोलन था जिसका उद्देश्य सामाजिक आर्थिक विषमता का अंत कर समतावादी समाज की स्थापना करना था लेकिन, जैसे-जैसे यह आंदोलन आगे बढ़ा, विचारधारा का तत्त्व पीछे छूटता चला गया। साथ ही, आंदोलन के बढ़ते भौगोलिक और सामाजिक आधार के कारण इसमें संकीर्ण स्वार्थों का प्रवेश हुआ और धीरे-धीरे यह आन्दोलन अपने मूल उद्देश्यों से भटकता चला गया।
(2) परवर्ती चरण में जब नक्सलवादी समानांतर सरकार स्थापित करने की स्थिति में आए, तो धीरे-धीरे इनकी नजर आर्थिक संसाधनों पर गई। सरकार के साथ टकराहट के क्रम में इन्हें सरकार और प्रशासन की चुनौतियों से निपटने के लिए संसाधनों की जरूरत महसूस हुई ताकि सैन्य और हथियारों की दृष्टि से अपने को प्रभावी और सक्षम बनाया जा सके। फिर एक और इन्होंने स्थानीय लोगों में भय और आतंक पैदा करते हुए अपहरण फिरौती, हफ्ता वसूली आदि के साथ-साथ कर और जुर्माना वसूलना शुरू किया तो दूसरी और इनका सम्बन्ध मादक पदार्थों व हथियारों की तस्करी के साथ-साथ नकली नोटों के कारोबार से जुड़ा। इन्होंने उन क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की जो प्राकृतिक संसाधन की दृष्टि से समृद्ध थे।
(3) अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए नक्सलवादियों ने सजग रूप में बिहार से लेकर आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र के जनजातीय इलाकों और यहाँ के स्थानीय लोगों को अपना ‘सॉफ्ट टारगेट’ बनाया क्योंकि एक ओर जनजातीय क्षेत्रों के पहाड़ी इलाकों तक पुलिस और प्रशासन की पहुँच मुश्किल थी, तो दूसरी और विकास प्रक्रिया में हाशिए पर पहुंचा दिए जाने के कारण इन जनजातियों में एक प्रकार का रोष विद्यमान था। जनजातीय परम्परा में हस्तक्षेप, जनजातीय अधिकारों का अतिक्रमण, बाहरी लोगों के द्वारा जनजातियों का शोषण व उत्पीड़न, खनन उद्योगों एवं बांधों के निर्माण, जनजातियों का विस्थापन आदि के कारण जनजातियों में व्यवस्था के प्रति प्रबल आक्रोश विद्यमान था। नक्सलवादियों ने उनके लिए स्थानीय संसाधनों पर अधिकार और आत्मनिर्णय के अधिकार की माँग कर उन्हें विश्वास में लेने की कोशिश की।
(4) नक्सलवादी आंदोलन के उभार में यद्यपि चीनी प्रेरणा मौजूद थी, फिर भी यह भारतीय सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक परिस्थितियों की उपज थी। एक और स्थानीय राजनीति ने भू-स्वामी वर्ग की प्रभावशीलता के कारण भूमि सुधार आन्दोलन विफल रहे, तो दूसरी ओर अधिकारी वर्ग की सामंती ‘मानसिकता प्रशासनिक शिथिलता एवं भ्रष्टाचार और सामाजिक जागरूकता के अभाव के कारण सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं और कार्यक्रमों का प्रभावी क्रियान्वयन संभव नहीं हो पाया और संसाधनों में रिसाव के कारण विकास के लाभ कुछ हाथों में संकेन्द्रित होते चले गए।
(5) 1990 के दशक के उत्तरार्द्ध में जैसे-जैसे माओवादी आंदोलन जोर पकड़ता गया, नेपाल से सटे सीमावर्ती इलाकों में नक्सलवादी आंदोलन का तीव्र प्रसार हुआ। इस प्रसार में अहम भूमिका निभाई 1990 के दशक में सामाजिक जागरूकता और अधिकार के अंतर्विरोध ने इस अंतर्विरोध के कारण ही निचली जातियों का एक हिस्सा, विशेषकर युवा वर्ग अपनी आशाओं और आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए, नक्सल आंदोलन की ओर उन्मुख होता है।
(6) पिछले दो दशक के दौरान नक्सली हिंसा के प्रति सरकार का रुख कठोर होता गया, तो दूसरी ओर दक्षिण एशियाई स्तर पर नक्सलियों का अंतर्राष्ट्रीय संगठन उभर कर सामने आया। इस क्रम में भारतीय नक्सली आधुनिकतम तकनीक और नवीनतम विस्फोटकों के लिए अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क की तलाश करते हैं। इस क्रम में उनका सम्पर्क नेपाली माओवादी, लिट्टे, उल्फा उग्रवादी और पूर्वोत्तर भारत के नागा विद्रोहियों से होता है और न केवल उन्हें आधुनिकतम हथियारों, विस्फोटक उपकरणों की प्राप्ति होती है वरन् लिट्टे से प्रशिक्षण सहयोग तथा आई. एस. आई. जैसे भारत विरोधी संगठन से वित्तीय सहायता भी प्राप्त होती है।
(7) आरम्भ में नक्सलवादी आन्दोलन का स्वरूप क्षेत्रीय व स्थानीय था। 1990 के दशक में संक्रमण के संकेत मिलने लगते हैं और 21वीं सदी के पहले दशक तक आते-आते इसका अखिल भारतीय स्वरूप उभरकर सामने आया।
(8) नक्सलवादी आन्दोलन के उभार में भूमि के असमान वितरण के अतिरिक्त न्यूनतम मजदूरी के प्रश्न और जातीय शोषण उत्पीड़न की भी अहम् भूमिका रही।
(9) हाल में स्वयं माओवादियों ने भी स्वीकार किया कि नक्सलवाद आंदोलन का जनाधार सिमट रहा है। कारण यह कि आज नक्सलवादी आंदोलन की पूरी की पूरी ऊर्जा सरकार के खिलाफ संघर्ष में खर्च हो रही है। मूल उद्देश्यों से भटकने के कारण जनता को देने के लिए उसके पास कोई विकल्प नहीं है। सकारात्मक प्रयोगों का दौर समाप्त हो चुका है और आज नक्सलवादी आन्दोलन स्वयं जनता के शोषण व उत्पीड़न का उपकरण बन गया है।
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(10) नक्सलियों ने अब सुरक्षा बलों के अतिरिक्त राष्ट्रीय पार्टी के नेताओं को भी हत्यायें करना प्रारम्भ कर दिया है। पिछले दिनों छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी नेताओं पर हुए हमले इसका ज्वलंत उदाहरण है जिसमें कई बड़े कांग्रेसी नेता मारे गये।
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