नगर से अभिप्राय
नगर से अभिप्राय- नगर एक ऐसा स्थान है जहां मनुष्य एक विकसित जीवन व्यतीत करता है। नगर अंग्रेजी भाषा में City शब्द का हिन्दी रुपान्तरण है। City लॅटिन भाषा के सिविटाज शब्द से बना है जिसका अर्थ है-नागरिकता नगर के लिए लैटिन शब्द भाषा में कभी-कभी Urbs शब्द का भी प्रयोग किया जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ ‘नगर’ है। यहां व्यक्ति कृषि के अतिरिक्त अनेको अन्य व्यवसाय भी करता है।
नगरीय वर्ग की विशेषतायें-
नगरीय समुदाय की सामाजिक संरचना में निम्नलिखित विशेषतायें पायी जाती हैं. .
- जनसंख्या की विभिन्नता-नगरों में अनेक प्रकार के जातियों, भाषाओं, सम्प्रदाय तथा प्रांतों से सम्बन्धित लोग निवास करने लगते हैं। तथा इनमें वेशभूषा, रहन-सहन, परम्पराओं त्योहारों में अन्तर पाया जाता है। इसी कारण से नगरों की जनसंख्या में विभिन्नता पायी जाती है।
- सघन जन घनत्व – नगरों में रोजगार, संचार, यातायात आदि सुविधाओं के होने के कारण जनसंख्या का प्रतिशत बढ़ता जाता है। जिससे नगरों में जनसंख्या अधिक तथा घनी पायी जाती है। घनी जनसंख्या के कारण साधनों व सुविधाओं की कमी पड़ने लगती है। परिणामस्वरूप पर्यावरण प्रदूषण, अपराध व बेरोजगारी बढ़ती जाती है।
- कृतिमता – नगर के लोग अपने को उच्च व श्रेष्ठ प्रदर्शित करने के लिए बनावटी जीवन प्रदर्शित करते है। इस प्रकार उनका जीवन कृतिमता मुक्त तथा आडम्बर युक्त होता है।
- श्रम विभाजन – नगरों में श्रम विभाजन की विशेषता पायी जाती है। यहाँ के लोग अलग-अलग व्यवसायों में काम करते हैं। जिससे लोगों के कार्य का बंटवारा हो जाता है।
- गतिशीलता-नगर के लोग अपने आर्थिक लाभ के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते हैं। जिससे नगरीय जीवन में गतिशीलता बनी रहती है।
- व्यवसायों की विभिन्नता एवं बहुलता – नगरों में कार्यों की अधिकता पायी जाती है तथा अनेक प्रकार के व्यवसाय पाये जाते हैं। इस प्रकार नगरों में वस्त्र, चीनी, चमड़ा, माचिस, सिगरेट, दवाओं से सम्बन्धित अनेक प्रकार के व्यवसाय पाये जाते है।
- शिक्षा एवं संस्कृति के केन्द्र-नगरों में अनेक प्रकार की उच्च शिक्षण संस्थायें पायी जाती है। जिससे दूर-दूर से लोग शिक्षा प्राप्त करने नगरों में आते हैं। इसके अलावा विभिन्न प्रकार के ज्ञान, साहित्य तथा भाषा का नगरों में विकास होता है। जिससे ये शिक्षा तथा संस्कृति के केन्द्र बन जाते है।
- व्यक्तिवादिता-नगरों के लोग व्यक्तिगत जीवन जीना अधिक पसंद करते हैं। नगर के प्रत्येक व्यक्ति को अपने विकास की चिंता अधिक रहती है। वह सिर्फ अपने लिए ही कार्य करता है तथा अन्य लोगों की उपेक्षा करता है।
- प्रतिस्पर्धा – नगर के निवासियों में आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक क्षेत्रों में परस्पर प्रतिस्पर्धा पायी जाती है। प्रत्येक व्यक्ति अपना विकास करने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहता है।
- मानव सभ्यता के पोषक-संसार की अनेक विश्व प्रसिद्ध सभ्यताओं का विकास नगरों में ही हुआ था। नगरों के विकास की कहानी मानव सभ्यता के विकास से जुड़ी हुई है। इस कारण नगर सभ्यता के विकास के प्रतीक माने जाते हैं और नगरों को मानव सभ्यता पोषक माना जाता है।
- आर्थिक विषमता-नगरों में आर्थिक विषमता बड़े पैमाने पर पायी जाती है। यहां पर कुछ लोगों के पास तो बहुत अधिक सुविधायें होती है इसके विपरीत अधिकांश लोग अपनी आवश्यक वस्तुओं को भी नहीं प्राप्त कर सकते है। इस प्रकार नगरों में एक तरफ बहुत सम्पन्न लोग निवास करते हैं तो दूसरी तरफ गरीब एवं मजदूर वर्ग निवास करते हैं।
जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
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