नातेदारी की रीतियों एवं महत्व का वर्णन कीजिए।

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नातेदारी की रीतियां – नातेदारी की रीतियों का सर्वप्रथम प्रारम्भ मोरगन से हुआ है। मारगन से लेकर लेवी स्ट्राऊस तक नातेदारी की अध्ययन विधियों और उसके सैद्धांतिक कोष में पिछली एक सदी में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। मोरगन ने नातेदारों के वर्गीकरण के लिए सर्वप्रथम वर्गात्मक नातेदारी व्यवस्था को रखा। इस सिद्धांत पर लेजली व्हाइट के अनुसार रिश्तेदारों को मानने के रीति-रिवाज इस बात को बताते हैं कि नातेदारों का वैज्ञानिक महत्व है।

नातेदारी के अध्ययन की कई विधियाँ हैं। फ्रायड और उनके सम्प्रदाय के लेखकों ने इस विधि का अध्ययन मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और उद्गम द्वारा किया है। इसके अतिरिक्त नातेदारी अध्ययन की जो संरचनात्मक विधियों हैं उन्हें दो भागों में रखा जा सकता है। पहली विधि में यह अध्ययन ऐतिहासिक या विश्लेषणात्मक विधि द्वारा किया जाता है। दूसरी विधि, प्रकार्यात्मक संरचनात्मक है। इन दोनों विधियों का प्रयोग मोरगन से लेकर आज तक बराबर हुआ है।

परिवार के प्रकार बताइये।

नातेदारी के महत्व – नातेदारी की प्रकर्यात्मक भूमिका एवं महत्व को निम्नानुसार स्पष्ट किया जा सकता है

  1. नातेदारी विवाह और परिवार के निर्धारण में योगदान करती है।
  2. नातेदारी व्यक्ति के आर्थिक हितों की सुरक्षा एवं संतुलन में सहायक है।
  3. नातेदारी व्यक्ति के वंश, उत्तराधिकारी और पदाधिकारी का निर्धारण करती है।
  4. नातेदारी सामाजिक जिम्मेदारियों के निर्वाह में सहायक है।
  5. नातेदारी से व्यक्ति को मानसिक सुख-संतोष की प्राप्ति होती है।
  6. नातेदारी मानवशास्त्रीय ज्ञान में सहायक है।
  7. नातेदारी सामाजिक व्यवस्था की सुरक्षा एवं उसके संतुलन में सहायक है।
  8. नातेदारी व्यक्ति के लिए मर्यादाओं का निर्धारण करती है।
  9. यह विभिन्न नातेदारी में बन्धुत्व भावना का विकास करती है।
  10. नातेदारी सामूहिक एकता तथा समरूपता उत्पन्न करने में सहायता देती है।

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