नातेदारी की प्रमुख श्रेणियों का उल्लेख कीजिए।

नातेदारी की श्रेणियों नातेदारी की प्रमुख श्रेणियों का वर्णन इस प्रकार है

(1 ) प्राथमिक नातेदारी

समूह में अनेक लोग ऐसे होते हैं जिनसे हमारा सम्बन्ध प्रत्यक्ष और इतने निकट का होता है कि इन सम्बन्धों के बीच कोई भी दूसरा व्यक्ति नहीं आता। विवाह अथवा रक्त के कारण ऐसे सम्बन्ध स्वयं ही स्थापित हो जाते हैं। डॉ. दुबे ने प्राथमिक नातेदारी के रूप में आठ सम्बन्धों का उल्लेख किया है जैसे पति-पत्नी, पिता-पुत्र, पिता-पुत्री, माता-पुत्र, माता-पुत्री, भाई-भाई-बहन तथा बहिन-बहिन यह सभी उदाहरण स्पष्ट करते हैं कि प्राथमिक नातेदारों के बीच न केवल अत्यधिक निकट का और प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है बल्कि इन सम्बन्धों की स्थापना के लिए कोई अन्य सम्बन्धी बीच में नहीं आती।

(2) द्वितीयक नातेदारी

वे सभी व्यक्ति जो प्राथमिक नातेदारों के प्राथमिक सम्बन्धी है, उन्हें द्वितीयक नातेदार कहा जाता है। इसका तात्पर्य है कि पिता हमारे प्राथमिक नातेदार हैं जबकि दादा को “पिता” का प्राथमिक नातेदार होने के कारण हमारा द्वितीयक नातेदार कहा जायेगा। इसी प्रकार चाचा, ताऊ, बुआ, माता, नाना नानी बहनाई, भाई की पत्नी आदि भी हमारे द्वितीयक नातेदार हैं क्योंकि उनसे हमारे सम्बन्ध अपने पिता, माँ, भाई अथवा बहिन के कारण है। इसी प्रकार पत्नी हमारे लिए प्राथमिक सम्बन्धी है, जबकि पत्नी के सभी प्राथमिक सम्बन्धी हमारे द्वितीय नातेदार माने जायेंगे। विभिन्न आधारों पर स्थापित द्वितीयक नातेदारों की संख्या मरडॉक ने 33 बतायी है। यह संख्या विभिन्न समाजों में इससे कम या अधिक हो सकती है लेकिन इसके निर्धारण का आधार सभी समाजों में समान है।

(3) तृतीयक नातेदारी-

जो हमारे द्वितीयक नातेदारों के प्राथमिक सम्बन्धी होते हैं उन्हें हम अपना तृतीयक नातेदार कहते हैं। उदाहरण के लिए हम अपने बहिन के पति (जीजा) को अपना द्वितीयक नातेदार कहेंगे जबकी जीजा के भाई, बहिन माता तथा पिता का उनसे प्राथमिक सम्बन्ध होने के कारण यह सभी हमारे तृतीयक नातेदार हो जायेंगे। इसी प्रकार अपने पिता तथा माता की सभी बहिनें हमारे द्वितीयक नातेदार होंगे जबकि उन बहिनों (बुआ तथा मौसी) के सभी बच्चों से हमारे सम्बन्ध तृतीयक नातेदारी के अंतर्गत आयेंगे। दूसरे शब्दों में, सभी फुफेरे तथा ममेरे भाई-बहिन एक-दूसरे के तृतीयक नातेदार होते हैं।

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तृतीयक नातेदारों के प्राथमिक सम्बन्धी हमारे लिए चतुर्थ श्रेणी के नातेदार होंगे जबकि चौथी श्रेणी के नातेदार के प्राथमिक सम्बन्धी हमारे लिए पाँचवीं श्रेणी के नातेदार कहे जायेंगे। इस प्रकार नातेदारी श्रेणियों का कितना ही विस्तार किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय तथ्य यह है कि प्राथमिक नातेदारों की संख्या सबसे कम होती है, द्वितीयक नातेदारों की उनसे अधिक तथा जैसे-जैसे नातेदारी श्रेणियों की दूरी बढ़ती जाती है, इनसे सम्बन्धित नातेदारों की संख्या में भी वृद्धि होती जाती है।

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