नारी और फैशन पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।

प्रस्तावना-नारी ही संसार की सृष्टि का प्रमुख आधार है। नारी के बिना तो इस समाज की कल्पना मात्र भी नहीं की जा सकती। नारी के विभिन्न रूप जैसे पत्नी, माता, वहन, भाभी, सेविका, परिचायिका आदि संसार की वास्तविकता का बोध कराते हैं। नारी हर तरह से पुरुष के साथ जुड़ी है तथा पुरुष बिना नारी के विकास नहीं कर सकता। मातृ शक्ति, करुणा की मूर्ति नारी के विशेष गुण हैं, इन्हीं गुणों के कारण पृथ्वी को भी माँ की संज्ञा दी गई है। नारी का सौन्दर्य अनूठा है, अवर्णनीय है। प्रकृति तथा नारी सौन्दर्य की दृष्टि से समान है। प्रकृति की ही तरह नारी भी सज-धजकर और भी सुन्दर लगती है। तभी तो नारी प्रकृति के विभिन्न साधनों से अपना श्रृंगार करती है। परन्तु समाज के बदलते परिवेश में नारी की श्रृंगारिकता में भी परिवर्तन हुआ है।

प्राचीन कालीन नारी और फैशन

प्राचीन समय में नारी का सौन्दर्य वास्तविक तथा स्थायी होता था जो ‘लावण्य’ कहा जाता था। इसका एक कारण था-अच्छा खान-पान, शुद्ध विचार, प्राकृतिक सौन्दर्य तथा स्वच्छ वातावरण उसे कृत्रिम सौन्दर्य प्रसाधनों की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती थी। देशकाल के अनुसार नारियाँ तीज-त्योहारों, शादी-विवाह या मेलों आदि में ही शृंगार करती थी वह भी प्राकृतिक साधनों जैसे फूलों, चन्दन, तुलसी, नीम इत्यादि से। वे अपने चेहरे की रंगत निखारने के लिए कभी नीम का लेप लगा लेती थी तो कभी अपने वालों में चम्पा चमेली का फूल लगाकर निखर उठती थीं।

आधुनिक समय में नारी और फैशन-

समाज के बदलते परिवेश में नारी की शृंगारिकता में भी परिवर्तन हुआ है। आज अंग प्रदर्शन, अश्लीलता, भीडेपन को ही फैशन समझा जाने लगा है। आज युग ऐसा ही हो गया है कि जब तक नारी नग्न रूप के वस्त्र या शरीर से चिपके वस्त्र न पहने तो नारी आधुनिक नहीं लगती। इसी फैशन के बल पर भारतीय नारी फैशन जगत के क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही हैं। 1994 में सुश्री सुष्मिता सेन ‘मिस यूनिवर्स’ तथा ऐश्वर्या राय ‘मिस वर्ल्ड’ चुनी गई। फिर 1997 में कोलकता की डायना हेडन ने पुनः इस खिताब पर कब्जा कर लिया। 1999 में मुम्बई की युक्ता मुखी ‘मिस वर्ल्ड’ चुनी गई। इसके बाद तो जैसे आज की नारी में एक होड़ सी लग रही है, कौन कितने कम कपड़े पहनती है तथा आधुनिकता की दौड़ में सबसे आगे रहती है।

भारतीय संस्कृति तथा फैशन

आज का फैशन भारतीय संस्कृति के एकदम विपरीत है। हमारी भारतीय संस्कृति में तो नारी एक स्वच्छ, सादी सी साड़ी पहनकर, माथे पर बड़ी सी बिन्दी लगाकर ही सुन्दर दिखती थी। आधे-अधूरे वस्त्र तो पश्चिमी सभ्यता की देन है। हमारी संस्कृति में तो नारी जितनी टुकी दवी रहती है, उसका रूप उतना ही निखरता है। प्राकृतिक सौन्दर्य ही वास्तविक सौन्दर्य माना जाता है। नारी का वास्तविक सौन्दर्य सादेपन में ही है।

फैशन: एक परिवर्तनशील प्रक्रिया

फैशन लगातार परिवर्तनशील है। आधुनिक समय में नारी और फैशन-समाज के बदलते परिवेश में नारी की शृंगारिकता में भी परिवर्तन हुआ है। आज अंग प्रदर्शन, अश्लीलता, भीडेपन को ही फैशन समझा जाने लगा है। आज युग ऐसा ही हो गया है कि जब तक नारी नग्न रूप के वस्त्र या शरीर से चिपके वस्त्र न पहने तो नारी आधुनिक नहीं लगती। इसी फैशन के बल पर भारतीय नारी फैशन जगत के क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही हैं। 1994 में सुश्री सुष्मिता सेन ‘मिस यूनिवर्स’ तथा ऐश्वर्या राय ‘मिस वर्ल्ड’ चुनी गई। फिर 1997 में कोलकता की डायना हेडन ने पुनः इस खिताब पर कब्जा कर लिया। 1999 में मुम्बई की युक्ता मुखी ‘मिस वर्ल्ड’ चुनी गई। इसके बाद तो जैसे आज की नारी में एक होड़ सी लग रही है, कौन कितने कम कपड़े पहनती है तथा आधुनिकता की दौड़ में सबसे आगे रहती है।

भारतीय संस्कृति तथा फैशन

आज का फैशन भारतीय संस्कृति के एकदम विपरीत है। हमारी भारतीय संस्कृति में तो नारी एक स्वच्छ, सादी सी साड़ी पहनकर, माथे पर बड़ी सी बिन्दी लगाकर ही सुन्दर दिखती थी। आधे-अधूरे वस्त्र तो पश्चिमी सभ्यता की देन है। हमारी संस्कृति में तो नारी जितनी टुकी दवी रहती है, उसका रूप उतना ही निखरता है। प्राकृतिक सौन्दर्य ही वास्तविक सौन्दर्य माना जाता है। नारी का वास्तविक सौन्दर्य सादेपन में ही है।

फैशन: एक परिवर्तनशील प्रक्रिया

फैशन लगातार परिवर्तनशील है। फैशन कहीं से नहीं आता, न ही पैदा होता है। कभी ग्रामीण फैशन नगर में, तो कभी नगर का फैशन ग्रामीण क्षेत्र में दिखता है। फैशन पुरुषों के वस्त्रों, रहन-सहन जेवरात आदि में भी बदलता है, परन्तु नारी स्वभाविक रूप से फैशन के प्रति अधिक संवेदनशील होती है। प्रत्येक नारी सबसे सुन्दर दिखना चाहती है इसीलिए नारी के लिए फैशन शीघ्र बदलता है। यदि ग्रामीण तथा नगरीय फैशन की तुलना की जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों में नगरीय फैशन जल्दी फैलता है। वैसे आधुनिक फैशन चलचित्र, सिनेमा आदि की देन है। जैसा हम फिल्मी सितारों या फिर टेलीविजन सितारों को देखते हैं, वैसा ही नकल करते हैं और इसके लिए अपनी मेहनत की कमाई कभी-कभी फालतू चीजों पर भी खर्च कर देते हैं।

आरक्षण नीति पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।

फैशन का सही अर्थ

फैशन का वास्तविक अर्थ, विशेषकर नारी के लिए सुन्दर दिखना होता है। फैशन सही अर्थों में अपने तन, वातावरण तथा परिवेश के आधार पर करना चाहिए। हर कपड़ा या आभूषण हर किसी पर अच्छा नहीं लगता। फैशन ऐसा होना चाहिए कि सामने वाले को राहत महसूस, न कि बुरे विचार पैदा हो। ये विचार ही कभी-कभी हिंसा, बलात्कार, अपहरण आदि का कारण बन जाते हैं।

उपसंहार-नारी का सुन्दर होना अच्छी बात है और यदि वह अधिक सुन्दर नहीं है तो अपने आप को निखारना भी अच्छी बात है। फैशन करना हर नारी का अधिकार है, परन्तु ऐसा फैशन व्यर्थ है जो स्वयं नारी के लिए ही कष्टदायक हो जाए, उसी के लिए मुसीबतों के पहाड़ खड़ा कर दे। साफ सुन्दर वस्त्र, जेवरात पहनना फैशन के प्रमुख अंग हैं परन्तु जो फैशन नारी को अधिक आकर्षक बनाकर कष्ट देता है, वह व्यर्थ है। आज की नारी जागरूक है, चेतनाशील है, उसे स्वयं सोच-समझकर ऐसा फैशन करना चाहिए जो भड़काऊ न हो। फिर वास्तविक सुन्दरता तो व्यक्ति के विचारों तथा हृदय की होती है, जिसकी सभी प्रशंसा करते हैं। ऐसी सुंदरता चिरस्थायी ही होती है।

    Leave a Comment

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    Scroll to Top