नागभट्ट द्वितीय की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।

नागभट्ट द्वितीय की उपलब्धिय

नागभट्ट द्वितीय की उपलब्धिय – वत्सराज की पत्नी सुन्दर देवी से उत्पन्न नागभट्ट द्वितीय ने 808 ई. से लेकर 833 ई. तक शासन किया। अपने 25 वर्ष के दीर्घकालीन शासन में इसने प्रतिहार साम्राज्य की सीमाओं का काफी विस्तार किया।

इसके शासन काल के प्रारम्भिक वर्षों में राष्ट्रकूट नरेश गोविन्द द्वितीय ने इसके राज्य पर आक्रमण कर दिया। सज्जन ताम्रपत्र पठारी स्तम्भ लेख राधनपुर नामपत्र से पता चलता है कि इसे राष्ट्रकूट नरेश से पराजित होना पड़ा। यह घटना 802 ई. के पूर्व ही घटित हुई होगी। गोविन्द तृतीय के वापस चले जाने के बाद नागभट्ट ने कान्यकुब्ज को चक्रायुध के हाथों से मुक्त कर उसे अपनी राजधानी बनाया।

कान्यकुब्ज पर नागभट्ट के अधिकार ने पाल नरेश धर्मपाल को एक बार फिर प्रतिहारों से युद्ध करने के लिए मजबूर कर दिया लेकिन इस युद्ध में धर्मपाल को पराजित होना पड़ा। इस बात का उल्लेख ग्वालियर अभिलेख और चाटसु अभिलेख में हुआ है ग्वालियर अभिलेख के अनुसार नागभट्ट द्वितीय ने बंगपति को जीत लिया था। जोधपुर अभिलेख के कथन के अनुसार कंक ने गौणों से युद्ध करके यश प्राप्त किया। कंक नागभट्ट द्वितीय का सामन्त था।

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ग्वालियर अभिलेख के विवरण के अनुसार नागभट्ट ने आनंत (उत्तरी काठियावाड़), मालवा मध्य प्रदेश, कीरात (हिमालय प्रदेश), तुर्मुक (पश्चिमी भारत के मुस्लिम राज्य, वत्स (कौशाम्बी राज्य), तम्स (पूर्वी राजस्थान) पर उसने बल पूर्वक अधिकार कर लिया था। नागभट्ट का मुसलमानों पर विजय का उल्लेख प्रबन्ध कोष नामक ग्रन्थ में भी हुआ है। नागभट्ट ने अपने समय में चाहमान वंश के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किया। चाहमान राजकुमारी कलावती का विवाह नागभट्ट द्वितीय के साथ हुआ था। अपने लम्बे शासन काल के बाद नागभट्ट द्वितीय ने 833 ई. में गंगा में डूबकर अपने प्राण दे दिये। उसके इस प्रकार मृत्यु प्राप्त करने का उल्लेख प्रभावक चरित नामक ग्रन्थ में हुआ है।

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