मुस्लिम विवाह का प्रमुख स्वरूप क्या है?

मुस्लिम विवाह के स्वरूप

मुस्लिम विवाह का प्रमुख स्वरूप निम्नलिखित है

(1) निकाह-

मुस्लिमों में सबसे अधिक प्रचलित और स्थायी रूप से जो विवाह होता है उसे निकाह कहा जाता है। यह काजी, मुल्ला या मौलवी द्वारा पढ़ाया जाता है। दुल्हन के घर पर यह निकाह होता है। निकाह पढ़ने से पहले मौलवी दो-दो गवाहों को दूल्हा और दुल्हन के पास भेजता है। दोनों को एक दूसरे के बारे में सूचना देने के लिए और दोनों से निकाह पढ़ने की स्वीकृति लेकर रजिस्टर पर दस्तखत लेता है। इसके बाद दोनों के बीच एक पर्दा की दीवार बनाकर काजी साहब निकाह की रस्म अदा करते हैं।

(2) मुताह विवाह

मुताह विवाह एक प्रकार से अस्थायी विवाह था जिसका समय निर्धारित होता था। यह विवाह पहले से ही तय कर लिया जाता था। यह विवाह एक दिन, एक महीना या वर्ष तथा इससे अधिक भी चलता है। इस अवधि में वे दोनों पति-पत्नी की तरह जीवन व्यतीत करते थे। इसमें मेहर भी सम्मिलित होता था। यौन सम्बन्ध होने पर स्त्री को निश्चित रूप से मेहर पाने का अधिकार था। ऐसे विवाह से उत्पन्न बच्चे माता-पिता की सम्पत्ति के अधिकारी होते हैं किन्तु भरण-पोषण की जिम्मेदारी नहीं होती। इसे मुताह विवाह कहते थे। यह विवाह वर्तमान समय में प्रचलन में नहीं है।

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(3) फासिद विवाह-

फासिद विवाह उसे कहते हैं, जो विवाह सम्बन्धी नियमों के पालन के बिना भी सम्पन्न हो गए हों। ऐसे विवाह को अनियमित विवाह कह सकते हैं। एक मुस्लिम व्यक्ति चार विवाह करने के बाद एक और विवाह कर लेता है तो ऐसी स्थिति में वह किसी एक पत्नी को तलाक देकर पाँचवें विवाह को नियमित या वैध कर सकता है।

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