मुहम्मद गौरी के अभियान- मुहम्मद गौरी ने अपना भारतीय अभियान 1175 ई. में आरम्भ किया। उसने मुल्तान और उच्छ पर चढ़ाई की। यह क्षेत्र सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था। इस पर अधिकार के पश्चात् एक ओर पंजाब और दूसरी ओर सिन्ध पर चढ़ाई करना आसान हो जाता। इस अभियान में वह सफल रहा और उसने गुजरात पर 1178 ई. में चढ़ाई की। परन्तु गुजरात के शासक भीम द्वितीय द्वारा उसे पराजित कर दिया गया। मुहम्मद गौरी ने अब पंजाब के मार्ग से भारत में प्रवेश करने का फैसला किया। 1179 ई. में उसने पेशावर पर अधिकार किया। 1181 से 1184 ई. के बीच तीन महत्वपूर्ण अभियानों द्वारा उसने सियालकोट तक अधिकार कर लिया और 1186 ई. में उसने लाहौर को जीत कर वहाँ के शासक खुसरू मलिक को बन्दी बना लिया। लगभग इसी समय दिल्ली का शासक पृथ्वीराज चौहान भी पंजाब पर अधिकार करने का प्रयास कर रहा था। दोनों के बीच भटिंडा के क्षेत्र पर अधिकार के लिए संघर्ष हुआ। इस क्रम में 1191 ई. में तराईन की पहली लड़ाई मुहम्मद गौरी के लिए घातक सिद्ध हुई।
वह युद्ध में पराजित हो गया और बड़ी कठिनाई से गजनी सुरक्षित लौट सका। गजनी पहुंचने पर उसने युद्ध के लिए पुनः तैयारी आरम्भ की और 1192 में उसने तराईन के मैदान में पृथ्वीराज के साथ दुबारा युद्ध किया और उसे पराजित कर दिया।
तराईन की दूसरी लड़ाई भारतीय इतिहास में एक निर्णायक लड़ाई मानी जा सकती है। चौहानों का राज्य उत्तरी भारत पर प्रमुख राज्य था और इसकी हार ने उत्तरी भारत में तुर्कों की सत्ता की स्थापना को लगभग निश्चित कर दिया। गौरी ने दोआब और अजमेर के समीप पूर्वी राजपुताना के क्षेत्रों को भी अपने नियन्त्रण में ले लिया। उसने दिल्ली में तोमर वंश के एक राजकुमार को शासक बनाया और अजमेर में पृथ्वीराज के बेटे गोविन्दराज को शासक नियुक्त किया। दिल्ली के समीप उसके ऐबक को भारतीय शासकों पर नजर रखने के लिए नियुक्त किया।
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दो वर्ष पश्चात् 1194 ई. में गौरी ने चंव की लड़ाई में कन्नौज के शासक जयचन्द को पराजित किया और इस तरह पूर्वी उत्तर-प्रदेश में बनारस तक तुर्की का अधिकार हो गया। इसके बाद राजूपतों के कुछ विद्रोहों का गौरी ने दमन किया और गुजरात पर भी सैनिक अभियान किए ऐवक ने अनहिलवाड़ा के नगर को लूटा और अन्य क्षेत्रों में राजपूतों के विद्रोहों का भी दमन किया। दूसरी ओर इस अवधि में एक अन्य सेना नायक इब्ने बख्तियार खिलजी द्वारा बिहार एवं बंगाल की विजय सम्पन्न हुई। 1206 ई. में मुहम्मद गौरी की मृत्यु हुई तब उत्तरी भारत का मुख्य भाग तु के अधीन आ चुका था।