मुहम्मद बिन तुगलक के चरित्र का विस्तृत वर्णन कीजिए।

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मुहम्मद बिन तुगलक के चरित्र – तुलगक वंश के शासक मुहम्मद बिन तुगलक का चरित्र विचित्र था। इतिहासकारों के मध्य उसके चरित्र को ले कर परस्पर मतभेद हैं। तत्कालीन इतिहासकारों जियाउद्दीन बनीं और इने- बता में भी सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के चरित्र के विषय में मतभेद हैं। वहीं आधुनिक अंग्रेज इतिहाकारों में भी इस सम्बन्ध में परस्पर मतभेद दिखाई देता है।

सुल्तान का चरित्र कई अंग्रेज इतिहासकारों ने बिन मुहम्मद तुगलक को पागल बताया है। “एलफिस्टन” तथा “बी.ए. स्मिथ के अनुसार “मुहम्मद तुगलक में कुछ अंशों तक पागलपन विद्यमान था।” इसके विपरीत “गार्डिन ब्राउन ने उसके चरित्र का उज्जवल चित्रण किया है और उसे पागल, रक्त पिपासु तथा कल्पना जगत में उड़ने वाला होने के आरोपों से मुक्त कर दिया है।

वास्तव में मुहम्मद तुगलक के निजी पहलू को देखते हुए हम कह सकते हैं कि उसमें सभी वांछनीय गुण विद्यमान थे। उसमें बुद्धि कुशाग्र, तीव्र स्मरण शक्ति तथा असीम ज्ञान पिपासा थी। वह हेतु विद्या, दर्शन, गणित, ज्योतिष, भौतिक विज्ञान तथा फारसी साहित्य और काव्य का गम्भीर विद्वान था। वह लिखने और बोलने की कला में दक्ष होने के साथ-साथ उच्च कोटि का न्यायिक भी था। वह विद्या और कलाओं का पोषक तथा विद्वानों के सत्संग का प्रेमी था। उसके निजी जीवन का नैतिक स्तर बहुत ऊँचा था। वह व्यसनों से मुक्त था तथा स्वभाव से नम्र था जैसा कि उस जैसे गम्भीर विराट तथा विभिन्न विषयों में रूचि रखने वाले व्यक्ति से आशा की जा सकती थी कि यह स्वभाव से भी उदार तथा निष्पक्ष था। वह इस्लाम का अनुयायी था लेकिन वह असहिष्णु नहीं था।

सुल्तान की असफलता

सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक एक शासक के रूप में सफल न हो सका और उसकी बनाई हुई लगभग सभी योजनाएं असफल सिद्ध हुई। उसे उत्तराधिकार में एक विशाल साम्राज्य प्राप्त हुआ था उसका अधिकांश भाग उसने खो दिया शासन को नये साँचे में ढालना तथा राजस्व व्यवस्था और मुद्रा को वैज्ञानिक आधार पर खड़ा करना, राजधानी साम्राज्य के केन्द्र में स्थापित करना उसकी अभिलाषा थी और ये सभी उसकी योजनाएँ असफल सिद्ध हुयीं। इसके साथ उसे जनता के अपार कोप का भाजन बनना पड़ा तथा जनता में वह अलोकप्रिय हो गया।

कुछ आधुनिक इतिहासकारों का मत है कि अपनी शासन सम्बन्धी विफलताओं के लिए मुहम्मद स्वयं बिन तुगलक जिम्मेदार नहीं था। उसे असफलता इसलिए मिली कि परिस्थितियाँ उसके विरुद्ध थी तथा उस समय के लोग पिछड़े हुए व अविवेकी थे। इसके साथ-साथ उलेमा उसके विरुद्ध हो गये थे, क्योंकि उसने उन्हें राज्य के कार्यों में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया था और आज्ञोल्लंघन के लिए दण्डित किया था। मुहम्मद तुगलक की असफलता का मुख्य उत्तरदायित्व उसके चरित्र के दोषों तथा कमियों पर था। उसमें सन्तुलन, व्यवहारिक निर्णय शक्ति तथा सामान्य बुद्धि का अभाव था।

धर्म शास्त्रों की शिक्षाओं का उस पर अत्यधिक प्रभाव था उसके ज्ञान का आधार पुस्तकें थी न कि व्यवहारिक जीवन का अनुभव मानवीय जीवन व चरित्र को परखने के गुण का उसमें सर्वथा अभाव था। इसके अलावा उसमें दूसरों में विश्वास उत्पन्ना करने तथा अपने सहयोगियों से अच्छे सम्बन्ध रखने की शक्ति का अभाव था। उच्च सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना तथा काल्पनिक योजनाएँ बनाना उसका एक व्यवसन था। वह अपनी योजनाओं के बारे में कभी सावधानी से विचार नहीं करता था। कागज पर तो उसकी योजनाएँ ठीक होती थी किन्तु जब उन्हें कार्यान्वित किया जाता था तो वे निष्फल हो जाती थीं। उसमें धीरज से काम लेने की शक्ति नहीं थी। स्वभाव से ही वह जल्दबाज था तथा योजना के पूरा होने से पहले ही उसे छोड़ बैठता था। उम्र स्वभाव होने के कारण वह शीघ्र ही उत्तेजित हो जाता था।

क्रुद्ध हो जाने पर वह अपने मस्तिष्क का संतुलन खो बैठता था, और समस्या के दूसरे पहलू को देखने का प्रयत्न नहीं करता था। दण्ड देते समय वह विवेक से काम नहीं लेता था तथा साधारण अपराधों के लिए भी वह मृत्यु दण्ड दे देता था। उसकी विफलता के यही मुख्य कारण थे।

क्या मुहम्मद बिन तुगलक पागल था?

मुहम्मद बिन तुगलक पर यूरोप के कुछ इतिहासकारों ने पागल होने का आरोप लगाया है। अंग्रेज इतिहासकार एलिफिस्टन का कथन है कि सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक में पागलपन का कुछ अंश विद्यमान था। कुछ यूरोपीय इतिहासकारों ने भी इस मत का समधन किया है किन्तु बरनी तथा इब्नबतूता आदि तत्कालीन लेखकों के ग्रन्थों के निरीक्षण से- ऐसा कोई प्रमाण नहीं प्राप्त होता है। जिससे यह कहा जा सके कि सुल्तान में किसी प्रकार का पागलपन था। सम्भवतः एलफिस्टन तथा अन्य यूरोपीय लेखकों को बरनी ओर इब्ने बतूता के इस कथन से भ्रम हो गया कि “सुल्तान के महल के सामने सदैव कुछ लाशें पढ़ी दिखाई देती थी।” मुहम्मद साधारण अपराधों के लिए मृत्यु दण्ड इसलिए नहीं देता था कि वह पागल था। बल्कि इसलिए कि उसमें साधारण तथा भीषण अपराधों में अन्तर समझने की विवेक बुद्धि नहीं थी।

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उसकी गल्तियों का कारण उसका पागलपन नहीं बल्कि सन्तुलन का अभाव था। उस पर लगाया गया आरोप कि “मुहम्मद को रक्त पात करने में आनन्द आता था।” निराधार है। क्योंकि यह आरोप “बरनी” ने लगाया था, जो उलेमा के दत) का सदस्य था और वे सुल्तान के प्रति विशेष द्वेष भाव रखते थे। सुल्तान पर लगाया गया नास्तिकता का आरोप भी गलत था। क्योंकि इसे भी बरनी द्वारा लगाया गया था किन्तु इब्नेवता के कचन के अनुसार कि “सुल्तान दैनिक नमाज तथा इस्लाम द्वारा निर्धारित अन्य कृत्यों के सम्बन्ध में अत्यधिक सावधान था।” वह अपने धर्म के सिद्धान्तों, शिक्षाओं और व्यवहारिक नियमों का कठोरता के साथ पालन करता था। इसके साथ-साथ इस्लाम के सिद्धान्तों से विचलित होने वालो तथा दैनिक नमाज न पढ़ने वालों को दण्डित करता था।

परन्तु उसके विषय में यह निर्विवाद सत्य है कि वह कल्पना जगत में उड़ा करता था और उसे हवाई किले बनाने का शौक था और वह ऐसी योजनाएँ तैयार करता था जो व्यवहार में असफल सिद्ध होती थी, किन्तु इसके साथ यह भी नहीं भूलना चाहिए कि उसके मुद्रा, राजस्व आदि के सम्बन्ध रखने वाले अनेक सुधार ठोस रचनात्मक और व्यवहारिक थे। कुछ सुधारों में तो उसकी राजनीतिक सूक्ष्मदर्शिता भी देखने को मिलती है। इस प्रकार सुल्तान पर पागल होने का आरोप सही प्रतीत नहीं होता है।

सुल्तान में विरोधी तत्वों का मिश्रण था डॉ. ईश्वरी प्रसाद के अनुसार मुहम्मद तुगलक विरोधी तत्वों का मिश्रण था। जहाँ उसमें एक ओर दूरदर्शिता प्रतीत होती है वहीं वह अत्यन्त अदूरदर्शिता वाला कार्य भी कर देता था। साधारणतः वह अत्यधिक उदार था, किन्तु कभी-कभी वह पूर्ण रूप से संकीर्ण हृदय हो जाता था। इब्नेवतूता ने अपने ग्रन्थ में वर्णन किया है कि सुल्तान कभी-कभी न्यायालय में अपराधी की भाँति उपस्थित होता तथा एक साधारण नागरिक जैसा व्यवहार करता और न्यायाधीश के हाथों दण्ड स्वीकार करता। इसके विपरीत सामान्यतः वह साधारण अपराधों के लिए मृत्यु तथा अंग-भंग का बर्बर दण्ड दिया करता था। इस प्रकार सुल्तान में चरित्र में विरोधी तत्व विद्यमान थे उसके चरित्र के विषय में प्रसिद्ध लेखक और इतिहासकार जियाउद्दीन बर्नी ने लिखा है कि “सुल्तान सृष्टि का एक चमत्कार था। उसके परस्पर विरोधी गुण साधारण विवेक और ज्ञान के परे थे”

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