मुहम्मद बिन तुगलक कौन था? – मुहम्मद बिन तुगलक का वास्तविक नाम जूना खाँ था। अपने पिता ग्यासुद्दीन की मृत्यु के बाद सन् 1325 ई. में यह दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने सत्ता प्राप्त करने के पश्चात् अपनी शासन व्यवस्था में अनेक महत्वपूर्ण सुधार किये। इन सुधारों के लिए जो योजनाये बनायी गयी उनका विवरण इस प्रकार है-
( 1 ) सुल्तान द्वारा राजस्व में सुधार
मुहम्मद तुगलक ने राजस्व में सुधार के लिए 1326-27 ई. में शाही फरमान जारी किया। उसने प्रान्तीय सुबेदारों को आय तथा व्यय का लेखा तैयार करने की आज्ञा दी तथा सुबेदारों को लेखा तैयार करने के लिए आवश्यक अभिलेख तथा अन्य सामग्री भेजने का आदेश दिया। सुल्तान नयी व्यवस्था के माध्यम से समस्त राज्य में एक सी राजस्व व्यवस्था कायम करना चाहता था और राज्य के किसी भी हिस्से को भूमि कर से वंचित नहीं रखना चाहता था।
(2) दोआब में कर वृद्धि
मुहम्मद बिन तुगलक ने दोआब की समृद्धि और किसानों की बढ़ती हुई संख्या को देखते हुए दोआब में कर वृद्धि कर दी। यही नहीं उसने भूमि कर के साथ-साथ मकानों, चारागाहों तथा पशुओं पर टैक्स लगा दिये। इसके लिए उसने ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के मकानों में नम्बर डलवायें तथा पशुओं को दागा गया। सुल्तान ने भूमि कर तथा अन्य करों को कठोरता से वसूल करने का प्रयत्न किया किन्तु दुर्भाग्य से उसी समय दोआब में अनावृष्टि के कारण सूखा पड़ गया। वहाँ की जनता ने सुल्तान की इस नीति का विरोध किया किन्तु कर्मचारियों ने कर वसूल करने का कार्य जारी रखा। इस कारण से वहाँ से अनेक किसान पलायन कर गये। जिससे दोआब क्षेत्र उजड़ने लगा। अब मुहम्मद तुगलक ने इस योजना को वापस ले लिया और इस प्रकार उसकी यह योजना लाभ देने की बजाय हानिकारक सिद्ध हुयी तथा सुल्तान जनता में अलोकप्रिय भी हुआ।
(3) कृषि विभाग की स्थापना
मुहम्मद तुगलक ने कृषि योग्य भूमि का विस्तार करने तथा कृषि में सुधार करने के लिए एक कृषि विभाग (दीवाने- कोही) की स्थापना की। इसके मुखियों को अमीर-ए-कोही कहा जाता था। इस काम के लिए पहले साठ वर्ग मील का एक भू क्षेत्र चुना गया। उसे कृषि योग्य बनाया गया तथा बारी-बारी से विभिन्न फसले उसमें बाई गयी। इस योजना में सरकार ने दो वर्ष में लगभग सत्तर लाख टंका व्यय किया। इसके बाद जिन लोगों को भूमि की आवश्यता थी उन्हें भूमि दे दी गयी और उसकी देखभाल के लिए बड़ी संख्या में पदाधिकारी नियुक्त किये गये किन्तु भूमि का गलत चयन, भ्रष्ट अफसर और कृषकों की उदासीनता से यह योजना भी असफल सिद्ध हुई।
(4) राजधानी परिवर्तन की योजना
मुहम्मद तुगलक के समय साम्राज्य बहुत बढ़ा हो गया था। उत्तर में सिन्ध नदी से लेकर पूर्व में बंगाल और पश्चिम में गुजरात के समुद्र तट तक उसका विस्तार था। दक्षिण के प्रमुख राजाओं ने दिल्ली की अधीनता स्वीकार कर ली थी। ऐसी दशा में मुहम्मद तुगलक को लगा कि राजधानी दिल्ली के बजाय किसी ऐसे स्थान पर होनी चाहिए, जो इस विशाल साम्राज्य के केन्द्र भाग में स्थित हो। इस दृष्टि से उसे देवगिरि स्थान पसन्द आया। सुल्तान में देवगिरि का नाम दौलताबाद रखा और सन् 1337 ई. में उसने दिल्ली के निवासियों को दौलताबाद आने का आदेश दिया। तत्कालीन इतिहासकारों में बरनी, इसामी और ने लिखा है कि राजधानी के सब निवासियों को दौलताबाद जाने का आदेश दिया गया था और उनको जाने के लिए विवश भी किया गया था। इस आदेश का इतनी कठोरता से पालन कराया गया था जिससे जनता को अपार कष्ट हुआ अन्त में उसे अपनी इस योजना को वापस लेना पड़ा। इसका परिणाम यह हुआ कि न तो दौलताबाद ही आबाद हो सका और न हो दिल्ली ही अपने पुरानी स्थिति में आ सकी ओर जन-धन की अपार हानि भी हुई।
(5) सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन
सन् 1329-30 ई. में सुल्तान ने सांकेतिक मुद्रा अर्थात सोने व चाँदी की मुद्रा के स्थान पर तांबे की मुद्रा चलाने का आदेश दिया। यह योजना उसने राजकोष में सोने और चाँदी की कमी के कारण की थी किन्तु यह योजना असफल रही. किन्तु इसका कारण यह था कि मुहम्मद तुगलक ने इस योजना पर भली-भांति विचार करके उन कमियों को हटाने का प्रबन्ध नहीं किया, जिनके कारण यह योजना असफल हो सकती थी।
ताँबे के इन सिक्कों के प्रचलन को नागरिकों ने स्वीकार नहीं किया। उन्हें स्पष्टतः दिखाई |पड़ता था कि चाँदी का टंका ताँबे के टंके से अधिक मूल्यवान है। जब सरकारी आदेश से दोनों को बराबर कर दिया गया, तब हर व्यक्ति चांदी का टंका अपने पास रखने और ताँबे का टंका दूसरे को देने का प्रयत्न करने लगा। सरकारी राजस्व ताँबे के टंकों में ही चुकाया जाने लगा। चोदी के सब सिक्के लोगों ने अपने पास रख लिए।
सबसे बुरी बात यह हुई कि लोग ताँबे के टंके अपने घरो में स्वयं बनाने लगे। सुल्तान ने नये तांबे के सिक्कों की ढलाई में यह सावधानी नहीं बरती कि उनमें कुछ ऐसी विशेषता रख दी जाये जिससे उन्हें बनाना जन साधारण के लिए आसान न रहे। परिणाम यह हुआ कि बाजार में नकली सिक्कों की भरभार हो गयी। घर-घर में टकसाले खुल गयी। सिक्के का मूल्य गिर गया। अन्त में विवश होकर सुल्तान के फिर चाँदी के ही टके जारी करने पड़े। परन्तु उसने इतनी उदारता बरती कि सब असली और नकली ताँबे के टंके लेकर उनके बदले चाँदी के टंके दे दिये। इससे राजकोष को और अधिक हानि उठानी पड़ी और यह खाली हो गया।
फिलिप द्वितीय कौन था? फिलिप द्वितीय की नीतियों एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
(6) सुल्तान की धार्मिक नीति
मुहम्मद बिन तुगलक ने धर्म को राजनीति से अलग रखने का प्रयास किया। जिसके कारण उसका उलेमा वर्गे से संघर्ष हुआ। वास्तव में सुल्तान ‘शरा’ को चुनौती नहीं देना चाहता था। वह सभी महत्वपूर्ण विषयों में उलेमा से परामर्श लेता था। किन्तु उसकी सलाह को स्वीकार तभी करता था जब बात बुद्धि संगत तथा अवसर विशेष के लिए अनुकूल होती थी। वास्तव में वह राजनीति से उलेमाओं का प्रभाव समाप्त करना चाहता था। इससे न केवल उलेमा उसके कट्टर दुश्मन हो गये बल्कि आम जनता में भी वह अलोकप्रिय हो गया शीघ्र ही सुल्तान को अपनी गलती समझ में आयी और उसने अब्बासी खलीफा का सर्मथन प्राप्त करने का प्रयास किया। 1342 ई. में उसे खलीफा की ओर से
मानपत्र भी प्राप्त हुआ लेकिन इससे भी वह उलेमाओं को प्रसन्न नहीं कर सका। हिन्दुओं और अन्य धर्मो के प्रति उसकी नीति उदरपूर्वक थी। अनेक प्रशासनिक पदों पर हिन्दुओं को भी नियुक्ति की गयी। उसने अनेक हिन्दू विद्वानों एवं कवियों को संरक्षण दिया। उसने जैन विद्वान जिन प्रभा सूरी का स्वागत किया और उन्हें एक हजार गायें प्रदान की।
इस प्रकार मुहम्मद बिन तुगलक के सुधार यद्यपि बहुत महत्वपूर्ण थे तथापि वह उनमें सफलता न प्राप्त कर सका इसके लिए केवल उसकी सूझबूझ की ही कमी नहीं थी उसका भाग्य भी इसके साथ नहीं था। यदि उसकी अधिकांश योजनाऐं सफल हो जाती तो निः संदेह भारत सबसे सफल शासकों गिना जाता लेकिन दुर्भाग्य से उसकी सभी महत्वपूर्ण योजनाऐं असफल सिद्ध हुई और उसकी गिनती एक असफल और पागल शासक के रूप में की जाती है।