मुदालियर आयोग का आलोचनात्मक मूल्यांकन यह कहना असंगत प्रतीत नहीं होता है कि भारतीय शिक्षा के इतिहास में ‘मुदालियर कमीशन’ का स्थान बेजोड़ है। उसने माध्यमिक शिक्षा के पुनर्निर्माण के सम्बन्ध में अनेक सुन्दर एवं सुदूरगामी सुझाव दिये हैं, यथा-स्वतन्त्र भारत की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए शिक्षा के नवीन उद्देश्यों का निर्धारण, छात्रों को अपनी व्यक्तिगत अभिरुचियों एवं अभिवृत्तियों को सन्तुष्ट करने के लिए पाठ्यक्रम का विभिन्त्रीकरण, छात्रों को अपनी वैयक्तिक क्षमताओं एवं योग्यताओं के अनुकूल विभिन्न विषयों का अध्ययन सुलभ बनाने के लिए बहुउद्देशीय विद्यालयों की योजना, छात्रों को अपने भावी व्यवसायों का चयन करने में सहायता देने के लिए निर्देशन एवं परामर्श की उपलब्धि, कृषि प्रधान देश की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए कृषि शिक्षा की अनिवार्यता का समर्थन, देश के उद्योगों एवं व्यवसायों के लिए प्रशिक्षित व्यक्तियों को तैयार करने के लिए तकनीकी स्कूलों एवं प्राविधिक संस्थाओं की व्यवस्था और परीक्षा-प्रणाली, अध्यापक प्रशिक्षण एवं शिक्षकों की स्थिति में सुधार किये जाने पर बल
माध्यमिक शिक्षा आयोग’ ने माध्यमिक शिक्षा को छात्रों एवं देश के लिए उपयोगी बनाने के लिए उपर्युक्त सुझाव के अतिरिक्त और भी अनेक व्यावहारिक एवं रचनात्मक सुझाव दिये हैं। उसके कुछ सुझाव वस्तुतः अधूरे, अमान्य एवं अविस्तृत हैं, जैसे- छात्रों द्वारा तीन भाषाओं का अध्ययन और स्त्री-शिक्षा के प्रसार के लिए सिफारिशों में कमी। पर यदि हम उसके सुझावों पर समग्र रूप से विचार करें तो हम संशयरहित होकर कह सकते हैं कि उसके सुझावों को क्रियान्वित करने से माध्यमिक शिक्षा का कलेवर बदल जाता, उसका स्वरूप नवीन एवं आकर्षक हो जाता। इस नवीन माध्यमिक शिक्षा को ग्रहण करके भारत के भावी नागरिक बनने वाले छात्र अपनी मातृभूमि की आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों में उन्नति करके उसकी बहुमुखी प्रगति में योग देते।
विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग की सिफारिशों की प्रमुख विशेषतायें क्या थी?
किन्तु हमारी सरकार ने न जाने क्या सोच-समझकर ‘माध्यमिक शिक्षा आयोग‘ के कुछ चुने हुए सुझावों को ही क्रियान्वित किया। यदि उसने कमीशन के अधिकांश सुझावों को भी क्रियान्वित कर दिया होता तो माध्यमिक शिक्षा से सम्पूर्ण देश का हित हुआ होता। हम अपने इस कवन के समर्थन में ‘आयोग’ के सुझावों को क्रियान्वित किये जाने से पूर्व भगवान दयाल द्वारा व्यक्त किया जाने वाला विचार अंकित कर रहे हैं-“यदि आयोग के अधिकांश सुझावों को क्रियान्वित कर दिया जायगा तो माध्यमिक शिक्षा देश में निश्चित रूप से एक स्वस्थ आधार पर प्रतिष्ठित हो जायगी जिसके फलस्वरूप सम्पूर्ण देश के हित में सुनियोजित प्रगति सम्भव हो जायगी।”
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