मृत्यु दर से आप क्या समझते हैं?

मृत्यु दर – 19 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में विश्व के उन्नत देशों में मृत्यु दर 35-40 प्रति हजार के बीच थी। यह अब कम होकर 7-8 प्रति हजार हो गयी है। मृत्यु दर में तीव्र कमी अच्छे भोजन, पीनेके स्वच्छ पानी, उन्नत चिकित्सा सुविधाओं, अच्छी सफाई और भयानक महामारियों और अन्य बीमारियों के नियन्त्रण का परिणाम है। 1891-1901 और 1911-21 के दशकों के दौरान जनसंख्या की वृद्धि बहुत कम हो रही। इसके मुख्य कारण व्यापक अकाल एवं 1918 के इनफ्लूएंजा के प्रभावाधीन 10 लाख व्यक्तियों की मृत्यु हो चुकी थी। इस वर्ष के दौरान मृत्यु दर 63 प्रति हजार के आश्चर्यजनक स्तर पर पहुँच गयी, जबकि यह इससे पहले और बाद के वर्ष में 33 और 36 प्रति हजार थी। मृत्यु दर को कम करने वाला एक महत्वपूर्ण और कारण है, वह यह कि शिशु मृत्यु दर में कमी है, जबकि 1916-18 में शिशु मृत्यु दर 218 प्रति हजार थी। यह 1970 में शहरी क्षेत्रों के लिए 90 प्रति हजार और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 130 प्रति हजार हो गयी है। शिशु मृत्यु दर के मुख्य कारण हैं- अपर्याप्त भोजन, निमोनिया, दस्त, संक्रामक और परजीवी रोग, इसके अतिरिक्त मलेरिया अन्य प्रकार के ज्वर हैजा, चेचक, प्लेग, दस्त, पेचिस और श्वास सम्बन्धी बीमारियों भी मृत्यु दर को बढ़ाती हैं।

आशा की जाती है कि मृत्यु दर जो 1970 में 15.9 प्रतिहजार थी, जीवन-स्तर में उन्नति चिकित्सा सुविधाओं के विकास के कारण और भी कम हो जायेगी।

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अतः पिछले 50 वर्षों में मृत्यु दर ज्यादा कम हुई है। मृत्यु दर अब बहुत ही नीचे स्तर पर पहुँच गयी है। चाहे स्वास्थ्य सुविधायें कितनी भी उन्नत क्यों न कर ली जाए, यह 7-8 प्रति हजार के नीचे नहीं गिर सकती। अतः भारत की जनसंख्या का भावी विकास जन्म दर के भावी स्तर पर निर्भर करेगा।

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