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मिहिरभोज का पाल नरेश देवपाल से हुए युद्ध का वर्णन कीजिए।

मिहिरभोज का पाल नरेश देवपाल से युद्ध

राष्ट्रकूटों से युद्ध राष्ट्रकूटों से प्रतिहारों का वैमनस्य पहले से ही चला आ रहा थ मिहिरभोज के काल में युद्ध की शुरूआत प्रतिहारों की तरफ से हुई लेकिन ध्रुव द्वितीय के आक्रम के कारण कन्नौज पर उसका अधिकार स्थायी नहीं हो सका। ध्रुव द्वितीय ने उसे परास्त कर पु कन्नौज पर अधिकार कर लिया। कुछ वर्षों के पश्चात् मिहिरभोज और राष्ट्रकूटों में दोबारा य प्रारम्भ हुआ। अबकी बार राष्ट्रकूटों की सत्ता कृष्ण द्वितीय के हाथों में थी। दोनों में से विजयी क हुआ यह बात विवादास्पद है क्योंकि अपने-अपने अभिलेखों में दोनों ही विजय का दावा करते निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि जिस मालवा क्षेत्र पर आधिपत्य को लेकर युद्ध हो रहा था उस कोई भी पक्ष विजय नहीं हासिल कर सका।

पालों से युद्ध

मिहिरभोज को शाक्तिशाली पाल नरेश देवपाल का सामना करना पड़ देवपाल भी एक महत्वाकांक्षी शासक था। दोनों के बीच हुए युद्ध का विवरण ग्वालियर और बाद अभिलेख से मिलता है लेकिन दोनों ही अभिलेख अलग-अलग विवरण प्रस्तुत करते हैं। ग्वालिय अभिलेख के अनुसार विजय भोज की हुई। जबकि बादल अभिलेख के अनुसार पाल नरेश देवपा ने गुर्जर नाथ के गर्व को नष्ट कर दिया था और हिमालय से लेकर विन्ध्य प्रदेश तक तथा पूर्वी सम से लेकर पश्चिमी समूह तक सम्पूर्ण प्रदेश से कर वसूला था। इन परिस्थितियों में जबकि अभिले 7 के विवरण में विरोधाभास है निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।

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