मौर्य वंश के पतन के लिए अशोक उत्तरदायी
महान मौर्य साम्राज्य, अशोक महान की मृत्यु के बाद ही पतन की ओर अग्रसर हो गया। मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए यद्यपि बहुतेरे कारण जिम्मेदार है लेकिन कुछ इतिहासकारो ने इसके लिए अशोक को भी जिम्मेदार ठहराया है। पं. हर प्रसाद शास्त्री के अनुसार, “ब्राह्मण प्रतिक्रियण ने केन्द्रीय शक्ति की जड़े कमजोर कर दी और साम्राज्य का विघटन हो गया।” शास्त्री के अनुसार, अशोक जी धार्मिक नीति से जहाँ बौद्ध लाभान्वित हुए, वहीं इस नीति के परिणामस्वरूप ब्राह्मणों के विशेषधि कारों और उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को क्षति पहुँची। एक शूद्र राजा द्वारा बत की प्रथा को बन्दकर ब्राह्मणों के स्वार्थ पर कुठाराघात किया गया। इसी प्रकार, अशोक ने ब्राह्मणों (भूदेवताओ) को नकली देवता के रूप में जनता के सामने रखा। इससे ब्राह्मणों की प्रतिष्ठा का टेस पहुंची। शास्त्री का यह भी कहना है कि धर्ममहामात्रों की नियुक्ति, अशोक द्वारा दण्ड समता और व्यवहार समता की स्थापना का प्रयास भी ब्राह्मण विरोधी कार्य ही था। अतः ब्राह्मणों ने पुष्यमित्र शुंग को समर्थन देकर क्रान्ति करवा दी, जिसके परिणामस्वरूप मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया।
परन्तु शास्त्री के उपरोक्त विचारों से असहमति जानते हुए स्पष्ट किया जा सकता है कि अशोक की नीतियाँ ब्राह्मण विरोधी नहीं थी तथा ब्राह्मण प्रतिक्रिया के कारण मौर्य साम्राज्य का पतन नहीं हुआ, अशोक ने हिंसा (पशुबलि ) पर पूर्ण प्रतिबन्ध नहीं लगाया। यह उसके अभिलेख (प्रथम) शिलालेख) से स्पष्ट हो जाता है। पशुबलि पर निषेध पूरे साम्राज्य में लागू नहीं किया गया। यह राजभवन या पाटलिपुत्र तक ही सीमित था वह भी पूर्ण नहीं था। अशोक स्वयं कहना है कि “पहले जहाँ राजकीय पाठशाला में सैकड़ों-हजारों पशु भोजन के लिए मारे जाते थे, वहां अब केवल तीन प्राणी-दो मोर और एक मृग मारे जाते हैं।” यह कहना कि अशोक ने भूदेवताओं को नकली देवता बना दिया, भी उचित नहीं है। वस्तुतः अशोक ने ब्राह्मणों को भी समान धरातल पर ला दिया।
धम्ममहामात्रों की नियुक्ति भी ब्राह्मण विरोधी कार्य नहीं था। उनकी नियुक्ति धम्म के प्रचार एवं जनकल्याण के उद्देश्य से की गई थी। ये समान रूप से ब्राह्मणों, श्रमणों, आजीविकों, स्त्रियों आदि के हित की देखभाल करते थे। न्यायिक अधिकारियों (राजुको) को जो विशेषाधिकार दिए गए, वे भी ब्राह्मण विरोधी नहीं थे। इसके विपरीत, अशोक के अभिलेखों से यह प्रमाणित हो जाता है कि अशोक ब्राह्मणों को भी उचित सम्मान देता था, उनकी सुख-सुविधा के लिए कार्य करता था तथा उसने उन्हें भी दान दिया। इस बात का भी कोई प्रमाण नहीं मिलता कि अशोक के उत्तराधिकारियों के ब्राह्मणों के साथ कटु सम्बन्ध थे। ब्राह्मण प्रतिक्रिया को पूर्णतः नकारने के बाद हेमचन्द राय चौधरी ने मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए अशोक की शान्ति एवं अहिंसावादी नीति को उत्तरदायी माना है। उनके अनुसार, “जबसे अशोक ने दूरस्थ प्रान्तों से अपनी शक्तिशाली सेनाओं को वापस बुलाना आरम्भ किया तबसे साम्राज्य का विघटन आरम्भ हो गया। उसकी शान-शौकत महान यूलिसेस के उस धनुष के समान थी, जिसे कोई अन्य कमजोर हाथ नहीं छू सकता था” अशोक की धम्मविजय की नीति ने अन्ततः साम्राज्य की सैनिक शक्ति को कमजोर कर दिया, प्रशासन पर से नियन्त्रण ढीला कर दिया, सेना से राजा का सम्पर्क कम कर दिया जिससे देश पर विदेशी आक्रमण हुए, अधिकारियों के अत्याचार बढ़े, सैनिकों में असन्तोष फैल गया, सैनिक क्रान्ति हुई एवं साम्राज्य का पतन हो गया।
तराइन के प्रथम युद्ध का वर्णन कीजिए।
अनेक इतिहासकार इस मत से सहमत नहीं है कि धम्मविजय की नीति साम्राज्य के विघटन के लिए उत्तरदायी थी। अशोक ने युद्ध इसलिए बन्द करवा दिया, कि इसकी अब और जरूरत नहीं थी। सेना भंग की गई। प्रो. योगेंद्र मिश्र भी मानते हैं कि अशोक की धम्मविजय की नीति मूर्खतापूर्ण न होकर बुद्धिमानी थी। वस्तुतः यह साम्राज्य के हितों को ध्यान में रखकर अपनायी गई थी। अर्थात् उसकी धम्मनीति साम्राज्य के विघटन के लिए उत्तरदायी नहीं थी। इस प्रकार मौर्य वंश के पतन के लिए अशोक को उत्तरदायी ठहराया जाना उचित नहीं प्रतीत होता है।
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