मौर्य की उत्पत्ति
मौर्य की उत्पत्ति – इस विषय पर विद्वानों में अनेक मतभेद हैं। कुछ विद्वान उन्हें पारसीक मानते हैं, तो कुछ विद्वान शूद्र बताते हैं। परन्तु आधुनिकतम् विद्वानों ने विभिन्न साहित्यिक एवं पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर मौयों को क्षत्रिय माना है। विभिन्न विद्वानों का मत इस प्रकार है
मौर्य फारसी थे स्यूनर महोदय का कथन है कि चन्द्रगुप्त मौर्य जाति का फारसी था क्योंकि तत्कालीन भारत की सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक प्रथाओं एवं नियमों में काफी समानता फारत की संस्कृति से दिखलाई पड़ती है। भारत एवं ईरान की संस्कृति की समानता इस बात का प्रमाण है। कि चन्द्रगुप्त मौर्य फारसी था।
आलोचना – भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वान जैसे स्मिथ, कीथ एवं टामस आदि स्यूनर महोदय के मत को नहीं स्वीकार करते हैं क्योंकि उपरोक्त सभ्यता के आधार पर ही मौर्य को पारसीक नहीं कहा जा सकता है।
मौर्य शूद थे. एक मात्र कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ को छोड़कर सभी ब्राह्मण साहित्य चन्द्रगुप्त मौर्य को शूद्र बतलाते हैं।
(क) पुराण में शिशुनाग वंश के अन्त एवं नन्द वंश की स्थापना के साथ लिखा हुआ है कि
‘इसके आगे के राजा शुद्ध होंगे अतः इस वाक्य से यह विदित होता है कि नन्दों के स्वामी मौर्य भी शूद्र थे।
आलोचना-पुराण में यह नन्दों के लिए कहा गया है न कि मौर्य वंश के लिए। यदि कथन मान भी लिया जाय कि इसके बाद जो राजा हुए. वे सभी शूद्र थे तो बाद के शुंग वंश, कण्व एवं सातवाहन वंश के नरेश भी ब्राह्मण न होकर शूद्र हुए। अतः पुराण के इस कथन पर विश्वास नहीं किया जा सकता।
(ख) मुद्राराक्षस
छठी और नयीं शताब्दी के मध्य के नाटक मुद्राराक्षस में विशाखदत्त ने चन्द्रगुप्त मौर्य को नन्दराज का अवैध पुत्र माना है। इसमें चन्द्रगुप्त मौर्य के लिए ‘वृषल” शब्द का प्रयोग किया है जिसका अर्थ शूद्र होता है। अतः इस आधार पर चन्द्रगुप्त मौर्य शूद्र जाति का था।
आलोचना – ‘मुद्राराक्षस’ को एक ऐतिहासिक नाटक नहीं माना जाता है, और दूसरी चीज यह कि यह बहुत बाद की रचना है ‘वृषल’ का अर्थ शूद्र नहीं बल्कि वह व्यक्ति, जिसने वर्णाश्रम के नियमों का पालन न किया हो। मनु का कथन है कि ‘क्रियालोप’ से क्षत्रिय वृषलत्व को प्राप्त हुए। चन्द्रगुप्त मौर्य ने ऐवेना (यूनानी राजकुमारी) के साथ विवाह करके वर्णाश्रम का उल्लंघन किया थ इसीलिए उसे ‘वृषल’ कहा गया है।
(ग) मुद्राराक्षस पर टीका
दुण्डिराज नाम विद्वान ने मुद्राराक्षस पर टीका किया है। टीकाकार के अनुसार सर्वार्थसिद्धि नामक क्षत्रिय राजा की दो रानियाँ थीं प्रथम ‘सुनन्दा’ जो क्षत्रिय थीं और दूसरी ‘मुरा’ जो शूद्रा थी। सुनन्दा के 9 पुत्र नवनन्द कहलाए और ‘मुरा’ से एक पुत्र मौर्य कहलाया। इसी मौर्य के पुत्र का नाम चन्द्रगुप्त था। इस आधार पर चन्द्रगुप्त शूद्र था।
आलोचना – मुद्राराक्षस के टीकाकार दुण्डिराज की यह कपोल कल्पित कथा है।
(घ) कथासरित्सागर और बृहत्कथामंजरी
ये दोनों 11वीं शताब्दी की रचनाएँ हैं। सोमदेव ने कथासरित्सागर तथा क्षेमेन्द्र ने बृहत्कमंजरी में चन्द्रगुप्त को नन्दवंशीय माना गया।
आलोचना- यह ग्रन्य बहुत बाद का है, जिससे इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। स्थान-स्थान पर कपोल कल्पित कथाओं का भी समावेश किया गया है।
मौर्य क्षत्रिय थे – अधिकांशतः विद्वान चन्द्रगुप्त मौर्य को जाति का क्षत्रिय ही स्वीकार करते हैंक्योंकि इस मत के समर्थन में निम्नांकित अनेक साक्ष्य हैं
(क) बौद्ध साहित्य
महावंश में लिखा है कि ब्राह्मण चाणक्य ने नवें धनानन्द का नाश करके चन्द्रगुप्त को जम्बूद्वीप का सम्राट बनाया। महावंश की टीका में मौर्य नगर के राजवंश के राजकुमार चन्द्रगुप्त को क्षत्रिय जाति का माना गया। महापरिनिध्यानसूत्र में भी वर्णित है जब गौतम बुद्ध की मृत्यु हो गई तो पिप्पलवन के मौर्यों ने कुशीनगर के मल्लों के पास अपना एक दूत भेजा और यह सन्देश भिजवाया कि ‘आप लोग भी क्षत्रिय हैं और हम क्षत्रिय हैं तथा गौतम बुद्ध भी क्षत्रिय है। अतः भगवान बुद्ध के शरीर की राख को प्राप्त करने का अधिकार हमें भी है।” दिव्यावदान में मौर्यो को क्षत्रिय कहा गया है।
(ख) जैन साहित्य
जैन साहित्य में नन्दों को शुद्ध और मौर्य को क्षत्रिय बताया गया है। परिशिष्टपर्वन के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य मयूर पोषकों के सरदार का नाती तथा जाति का क्षत्रिय था रामचन्द्र मुमुक्ष रचित । पुण्याश्रय कथाकोश के अनुसार चन्द्रगुप्त क्षत्रिय जाति का था।
(ग) कौटिल्य का अर्थशास्त्र
अर्थशास्त्र से परोक्ष रूप से चन्द्रगुप्त मौर्य की जाति पर प्रकाश पड़ता है। अर्थशास्त्र में एक स्थान पर यह आया है कि जनता कुलीन वंश में उत्पन्न दुर्बल नरेश का तो आदर करती है परन्तु कुलहीन बलवान नरेश का नहीं। चन्द्रगुप्त यदि कुलहीन या निम्न जातीय होता है। तो उसका मन्त्री उसके विरुद्ध यह नहीं कह सकता था। अतः चन्द्रगुप्त मौर्य जाति का क्षत्रिय था।
मौखरी राजवंश का संक्षिप्त इतिहास लिखिए।
(घ) विदेशी साक्ष्य विदेशी विद्वान कर्टिस, डिओडोरस, प्लूटार्क और जस्टिन
आदि ने अपनी रचनाओं में स्पष्ट लिखा है कि नन्दराज शूद्र था और जनता घृणा एवं ईर्ष्या रखते थी स्नो एरियन एवं जस्टिन ने चन्द्रगुप्त मौर्य को सैण्ड्रोकोटस और एपिअन तथा प्लूटार्क ने ऐण्ड्रोकीटस के नाम से पुकारा है। अनेक विदेशी विद्वानों के मत से भी प्रकट होता है कि चन्द्रगुप्त जाति का क्षत्रिय और नन्दराज शूद्र थे।