मौलिक अधिकार का अर्थ
मौलिक अधिकार का अर्थ – मौलिक अधिकार वे अधिकार होते हैं जो व्यक्ति के जीवन के लिए मौलिक तथा अपरिहार्य होने के कारण संविधान के द्वारा नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं और व्यक्ति के इन अधिकारों में राज्य के द्वारा भी हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। व्यक्ति के इन अधिकारों को कई कारणों से मौलिक कहा जा सकता है। प्रथम व्यक्ति के भौतिक नैतिक तथा आध्यात्मिक विकास के लिए ये अधिकार नितान्त आवश्यक हैं। इनके अभाव में उनके व्यक्तित्व का विकास नहीं हो सकता। इसलिए लोकतन्त्रात्मक राज्य के प्रत्येक नागरिक को बिना किसी भेदभाव के मौलिक अधिकार प्रदान किये। जाते हैं। इन अधिकारों को मौलिक कहने का दूसरा कारण यह है कि इन्हें देश की मौलिक विधि अर्थात् संविधान में स्थान दिया जाता है और साधारणतया संवैधानिक संशोधन की प्रक्रिया के अतिरिक्त इनमें और किसी प्रकार से परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
समाजीकरण के प्रमुख साधनों अथवा अभिकरणों की विवेचना कीजिये।
मौलिक अधिकार का उद्देश्य
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के समाविष्ट किये जाने का उद्देश्य उन मूल्यों का संरक्षण करना है जो एक स्वतन्त्र समाज के लिए अपरिहार्य है। जहाँ तक जनता ने राज्य सरकारों न को अपने ऊपर शासन करने की शक्ति प्रदान की वहीं उसने कतिपय अधिकारों को उसकी शक्ति से परे रखा ताकि उनका उल्लंघन किसी भी दशा में न किया जा सके। विधानमण्डल में बहुमत प्राप्त होने पर भी सरकार उन मूल अधिकारों का अतिक्रमण नहीं कर सकती है। संविधान में मूल अधिकारों से सम्बन्धित उपबन्धों को समाविष्ट करने का मुख्य उद्देश्य यही है।
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