मौखरी राजवंश का संक्षिप्त इतिहास लिखिए।

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मौखरी राजवंश का इतिहास

मौखरी वंश के विषय में विद्वानों में मतभेद है। मौखरी मूलतः गया के निवासी थे और गुप्तों की अधीनता स्वीकार करते थे। परवर्ती गुप्तों के काल में कन्नौज पर अधिकार करके मौखारियों ने कन्नौज के मौखरी राजवंश की स्थापना की थी। कन्नौज के मौखरियों के राजनैतिक इतिहास का प्रारम्भ महाराजा हरिवर्मा से होता है इस वंश के प्रारम्भिक तीन शासक हरिवर्मा, आदित्यवर्मा, ईश्वरवर्मा, गुप्तों के अधीन सामन्त शासक थे इस वंश की स्वतन्त्रता की घोषणा, इस वंश के चौबे शासक ईशान वर्मा के द्वारा की गयी। वह इस वंश का प्रथम शासक था जिसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी।

इसकी विजय का उल्लेख हरहा अभिलेख में हुआ है। ईशानवर्मा के बाद उसका पुत्र सर्ववर्मा मौखरियों का राजा हुआ। उसने भी महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी इसने ही उत्तर गुप्तों को परास्त कर मगध को सर्वप्रथम मौखरी राजवंश के अधिपत्य में लाया इसके बाद सर्ववर्मा का पुत्र अवन्तिवर्मा मौखरियों का अगला राजा हुआ।

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इसके समय में उसके पुत्र ग्रहवर्मा का विवाह थानेश्वर के राजा हर्ष की बहन राजश्री से हुआ। अवन्तिवर्मा के बाद उसका पुत्र ग्रहवर्मा मौखरियों का अगला राजा हुआ जो मालवा के देवगुप्त द्वारा मार डाला गया। इसके पश्चात् हर्ष ने कन्नौज पर आक्रमण करके उसे अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया।

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