मैकियावली के नैतिकता सम्बन्धी विचार लिखिए।

मैकियावली के नैतिकता सम्बन्धी विचार- राजनीतिशास्त्र शताब्दियों से धर्म का अंग बना हुआ था। मैकियावती के सभी पूर्वगामी लेखकों ने धर्म और नैतिकता के आधार पर ही अपने राजनीतिक विचारों का निर्माण किया था। मैकियावली ने उनका अनुसरण करके, राजनीति और नैतिकता को स्पष्ट और पूर्णरूप से एक-दूसरे से अलग कर दिया गटेल का मत है- ” मैकियावली का अपने पूर्वगामी लेखकों से मुख्य भेद यह था कि वह धर्म और नैतिकता के सम्बन्ध में उनकी धारणा को नहीं मानता था। उसने राजनीति और नैतिकता को एक-दूसरे से पृथक कर दिया।

राजनीति और नैतिकता की पृथकता का सिद्धान्त प्रतिपादित करते समय मैकियावली पर अरस्तू का कितना प्रभाव पड़ा, इसके बारे में सेबाइन ने लिखा है- “मैकियावली ने राजनीति को नैतिकता से जिस प्रकार अलग रखा है, उसका निकटतम सादृश्य अरस्तू की ‘पॉलिटिक्स’ के कुछ भागों में मिलता है। इन भागों में अरस्तू ने राज्यों की अच्छाई या बुराई की ओर ध्यान दिये बिना ही, उनकी रक्षा के उपायों पर विचार किया। पर इस बात को निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि मैकियावली ने इन अवतरणों को अपना आदर्श माना। इस बात की सम्भावना नहीं है कि उसे किसी का अनुसरण करने का ध्यान रहा हो। इस बात की सम्भावना है कि उसकी धर्म-निरपेक्षता और अरस्तू के प्रकृतिवाद में कुछ सम्बन्ध रहा हो।””

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मैकियावली का नैतिकता का सिद्धान्त द्वैध है। उसका मत है कि कोई कार्य या वस्तु न तो बिल्कुल अच्छी होती है और न बिल्कुल बुरी। वह कार्य की अच्छाई का निर्णय इस आधार पर करता है कि उससे राज्य का कोई हित होता है, या नहीं। यदि कोई कार्य या वस्तु-राज्य के लिए उपयोगी और लाभदायक है, तो यह नैतिक है, अन्यथा नहीं।

मैकियावली, राजा को परम्परागत नैतिकता से ऊपर रखता है। उसका मत है कि राजा प्रत्येक नैतिक बन्धन के नियंत्रण से मुक्त है। उसने राजा को अपनी राजनीतिक शक्ति की रक्षा और वृद्धि करने के लिए अनेक साधनों का सुझाव दिया पर उसने उनकी नैतिकता पर ध्यान नहीं दिया है। इसके विपरीत, उसने इस बात पर ध्यान दिया है कि उन साधनों का प्रयोग करके राजा को अपने उद्देश्य की प्राप्ति में अनैतिकता का कुशलतापूर्वक सहारा लेकर सफलता मित सकती है तो इसमें कोई अनौचित्य नहीं है। उसके लिए यह प्रश्न निर्रथक है कि राजा द्वारा प्रयुक्त किये जाने वाले साधन परम्परागत अर्थ में नैतिक हैं या नहीं। मैकियावली के शब्दों में, “साध्य साथन का औचित्य बताता है। अतः राजा का उद्देश्य विजय करना और राज्य को सुरक्षित रखना चाहिए। उसके साधन सदैव आदरणीय समझे जायेंगे और प्रत्येक व्यक्ति द्वारा उनकी प्रशंसा की जायेगी।

राजा को नैतिक बन्धनों से मुक्त करके भी मैकियावली ने यह विचार प्रकट किया है। कि उसको ऐसे गुणों से सम्पन्न होना चाहिए जो शिष्ट मनुष्य के लक्षण माने जाते हैं। इस दृष्टि से राजा को छल-छ्य, आडम्बर और मिथ्याचार में कुशल होना चाहिए। उसे ऐसा आचरण करना चाहिए जो लोग उसकी दयालुता, धार्मिकता, सच्चरित्रता और विश्वसनीयता का साकार स्वरूप समझें।

सेबाइन का कथन है- “अधिकांश में मैकियावली अनैतिक न होकर, नैतिकता-निरपेक्ष है। वह केवल राजनीति को अन्य धारणाओं से अलग कर देता है और इस प्रकार लिखता है। ‘मानो राजनीति स्वयं एक उद्देश्य हो।’

राजनीति व नैतिकता से पृथक्करण के कारण-

मैकियावली के नैतिकता सम्बन्ध विचारों का विवेचन करने के पश्चात्, हमारे सामने तीन प्रश्न स्वभावतः आते हैं। मैकियावती ने राज्य के हित के लिए सभी प्रकार के नैतिक और अनैतिक साधनों का प्रयोग क्यों बताया है? उससे राजा को नैतिक और अनैतिक कार्यों में अन्तर न करने का परामर्श क्यों दिया दिया है? उसने शासक के लिए सामान्य जनता से भिन्न नैतिक मापदण्ड का प्रस्ताव क्यों किया है? इन सब प्रश्नों का एक ही उत्तर है- मैकियावली द्वारा जान-बूझकर राजनीति का नैतिकता से पृथक्करण किया जाना। उसने यह पृथक्करण निम्नांकित कारणों के आधार पर किया है

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1. मैकियावली का मत है कि राज्य व्यक्तिगत नैतिकता का निर्माता है। अतः इस नैतिकता के नियम राज्य पर लागू नहीं होते और वह इससे परे है।

2. मैकियावली की धारणा है कि राज्य जड़ है। अतः राज्य न तो नैतिक और न अनैतिक, वरन् नैतिकता-विहीन (Non-moral) है।

3. मैकियावली मानव की सुरक्षा और कल्याण के लिए राज्य को सर्वोच्च, सर्वोत्तम और सबसे अधिक आवश्यक संस्था मानता है। अतः वह राज्य को नागरिकों से उच्च धरातल पर रखता है और उस पर नागरिकों के व्यवहार को नियंत्रित करने वाली नैतिकता को लागू नहीं करता है। की दुष्टता,

4. मैकियावली के अनुसार, राज्य में शान्ति और एकता कायम रखने के लिए मनुष्यों स्वार्थ और आक्रमण की प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखा जाना आवश्यक है। राज्य नैतिक साधनों का प्रयोग करके इन प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखने में सफल नहीं हो सकता है। वह अनैतिक साधनों का प्रयोग करके ही ऐसा कर सकता है।

5 .मैकियावली यथार्थवाद का पोषक और आदर्शवाद का विरोधी है। उसने मनुष्यों के स्वभाव का इतना गहन अध्ययन किया है कि वह शासक को आदर्शवाद का अनुसरण करने का परामर्श न देकर, अच्छे और बुरे कार्यों को करने की अनुमति देता है।

मैकियावली के नैतिकता सम्बन्धी विचार तत्कालीन इटैलियन समाज की परिस्थितियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। अतः उसने नैतिकता के प्रति जो दृष्टिकोण अपनाया है, उसको उचित ठहराया जा सकता है। इस दृष्टिकोण को अपनाकर उसने राजनीति के अनेक उलझे हुए प्रश्नों को सुलझा दिया।

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