महिलाओं की कार्यात्मक महत्ता का वर्णन कीजिए।

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महिलाओं की कार्यात्मक महत्ता का मूल्यांकन इस तथ्य से किया जा सकता है कि जब कन्या के विवाह का प्रकरण उठता है तो सर्वप्रथम उसकी कार्यात्मक दक्षता जैसे प्रश्नों का विशेष महत्व होता है। सम्भवतः अच्छी पुत्र वधु का एक गुण यह भी होता है कि वह कितनी श्रमशील है। इसी पक्ष को ध्यान में रखकर परंपरागत रूप से कन्या को जन्म के बाद ही कठोर श्रम की दीक्षा माता-पिता द्वारा दी जाती है। यदि हम समआयु के बालकों एवं बालिकाओं के कार्यात्मक भार का मूल्यांकन करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि बालिकाओं के ऊपर कार्यभार बहुत अधिक होता है।

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कन्या जब बहू बनकर नये घर में प्रवेश करती है, तो उसी समय से उसके ऊपर कार्य का भार अधिक हो जाता है। सबसे पहले उठना और अंत में सोना, उसकी नियति का अंग बन जाता है। कार्यात्मक अनुशासन प्रायः सभी परिवारों में सास द्वारा चलाया जाता है, जो बहुओं को कठोर जीवनयापन करने के लिए विवश कर देता है। सामान्य धारणा है कि “ब्याह कर लाए हैं, काम करने के लिए, आराम करने के लिए नहीं।” कार्यकुशल एवं श्रमशील न होने पर बहुओं को उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है।

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