महिला शिक्षा की क्या समस्याएँ हैं?

महिला शिक्षा की प्रमुख समस्याएँ निम्न प्रकार हैं

(1) आर्थिक कठिनाइयाँ

स्त्री शिक्षा की प्रगति में मुख्य कठिनाई आर्थिक है। देश की बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ ही शिक्षा की आवश्यकता भी बढ़ रही है, परन्तु भारत आर्थिक दृष्टि से समर्थ नहीं है। अतः स्त्री-शिक्षा संस्थाओं की स्थापना करने में आर्थिक अभाव सदैव बना रहता है जिसके परिणामस्वरूप अधिकांश बालिकायें समुचित शिक्षा ग्रहण करने से वंचित रह जाती हैं। ऐसी स्थिति में स्त्री-शिक्षा की प्रगति मन्द पड़ जाती है।

(2) सह-शिक्षा

स्त्री शिक्षा की प्रगति में द्वितीय महत्वपूर्ण कठिनाई सहशिक्षा का न होना है। यद्यपि अब बालिकाओं को बालकों के साथ पढ़ने में नाममात्र की आपत्ति है फिर भी अवयस्क बालिकाओं के लिए अलग शिक्षा (माध्यमिक एवं स्नातक स्तर पर) की माँग अब भी है। इसका मनोवैज्ञानिक एवं नैतिक आधार भी है, क्योंकि इस आयु वर्गों में बालक एवं बालिकाओं का विकास पृथक-पृथक गति से होता है तथा पूर्ण दायित्व के विकास होने में समय लगता है। इसके साथ ही आधुनिक भारतीय नवयुवकों का व्यवहार भी उच्छृंखल है जिसके कारण व्यावसायिक एवं तकनीकी कालेजों में स्त्री शिक्षा की प्रगति विशेष रूप से मन्द पड़ गई है।

(3) अभिभावकों में अनिच्छा

स्त्री शिक्षा की प्रगति में अभिभावकों की उदासीनता एक विषम कठिनाई का रूप धारण किये हुए है। समाज के अधिकांश लोगों का कहना है कि स्त्री का कार्यक्षेत्र घर व संतान है। उन्हें पढ़ाई से कोई लाभ नहीं है इस प्रकार की मनोभावना शहर की अपेक्षा ग्रामीण अभिभावकों में अधिक है।

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(4) बालिकाओं की शिक्षा की मन्द प्रगति

बालिकाओं की शिक्षा की प्रगति अति मन्द रही है। असम, केरल, कर्नाटक की अपेक्षा बिहार, उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश में यह गति और मन्द रही है।

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