महिला प्रौढ़ शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी – यह ठीक ही कहा जाता है कि मानवीय संसाधनों के पूर्ण विकास के लिए, घरों के सुधार के लिए तथा शैशवावस्था के प्रभावी वर्षों के दौरान बच्चों के चरित्र को ढालने के लिए पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की शिक्षा का अधिक महत्त्व है। आधुनिक समय में नारी का क्षेत्र घर की चहारदीवारी तक ही सीमित रहकर बच्चों की संभाल करना ही नहीं रह गया अपितु इससे और अधिक विस्तृत हो गया है। अब उसे समाज के अधिकार प्राप्त है, इसलिए वह स्वयं को भी परिवार के पालन करने योग्य बनाती है। इसके लिए यह अपने निजी व्यवसायों को अपना रही है और इस प्रकार समाज के विकास के लिए सभी क्षेत्रों में पुरुष के साथ बराबर सहयोग करके अपने उत्तरदायित्व निभा रही है। विकासशील देशों में तो उसके कार्य का और अधिक महत्व बढ़ गया है, क्योंकि इनमें गरीबी, मुख, उपेक्षा व अस्वस्थता आदि बुराइयों के विरुद्ध लड़ाई लड़ने में पुरुषों के साथ स्त्री के सहयोग की निरन्तर आवश्यकता अनुभव की जा रही है।
आज जो इतनी सारी बीमारियाँ फैल रही हैं, उनकी जड़ में सियों की अज्ञानता ही है, क्योंकि हमारे देश में खाना पकाने का दायित्व स्त्रियों के हाथ में ही है। वे खाना पकाने के नियमों को नहीं जानती हैं। फलतः भोजन के पोषक तत्वों की बर्बादी होती है और भोजन से हमें जितना कुछ मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पाता है। अधिकतर बीमारियों भोजन के सम्बन्ध में लापरवाही एवं गैर जानकारी की वजह से होती हैं। इनकी जड़ में महिलाएं हैं। अतः उनकी शिक्षा अत्यावश्यक है।
शिशुपालन का काम भी उन्हें ही करना पड़ता है। उपयुक्त जानकारी के अभाव में उनका लालन-पालन सही ढंग से नहीं हो पाता, जिससे न तो वे स्वस्थ बालक को जन्म दे पाती है और न ही देश को अच्छा नागरिक नागरिकता का प्रथम पाठ माता की गोद में ही मिलता है।
गृह-अलंकरण में भी महिलाओं की भूमिका अनिवार्य है। कहा भी गया है कि ‘बिना घरनी घर भूत का डेरा।” पुरुष तो अपना अधिक समय फार्म या फर्म में बिताते हैं और वहाँ से थके हारे आते हैं। घर में आश्रय पाने पर वहाँ यदि गन्दगी एवं अव्यवस्था विराजती हो तो उनका जीवन-नरक हो जाएगा। इस प्रकार नरक को स्वर्ग बनाने का काम महिलाएं ही कर सकती हैं। इसलिए महिलाओं का शिक्षित होना जरूरी है।
सामाजिक कुरीतियों को भी दूर करने में महिलाएँ अच्छी भूमिका निभा सकती है। तिलक-दहेज जैसी कुप्रथा, फिजूलखर्ची भोज-भात की बर्बादी के विरुद्ध जनमत तैयार करने में महिलाएँ अधिक कारगर साबित हो सकती हैं।
शिक्षित महिलाएँ पारिवारिक बजट तैयार कर उसी के अनुसार कार्य कर परिवार को सुखी बना सकती हैं। छोटी-छोटी बचत से बड़े-बड़े काम होते देखे गये हैं।
मैकाले के विवरण की मुख्य सिफारिशें क्या थी?
इस प्रकार महिलाओं की शिक्ष हर पहलू से विचारणीय है। पुरुषों से अधिक महिलाओं के लिए प्री शिक्षा की आवश्यकता है; क्योंकि पकाने के काम से लेकर परिचारिका तक सजावट से लेकर बुनावट तक, सफाई से लेकर गृहबाड़ी की निराई-गुड़ाई तक सर्वत्र महिलाओं का क्षेत्र है। इसलिए उनके लिए शिक्षा अत्यावश्यक है।
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