प्रस्तावना – जीवनयापन के लिए प्रत्येक व्यक्ति को रोटी, कपड़ा तथा मकान जैसी मूल आवश्यकताओं को जुटाने के लिए खेती, व्यापार, नौकरी आदि किसी न किसी आजीविका में लगना ही पड़ता है। पैसा कमाकर वह अपनी मूल आवश्यकताएँ पूरी करता है और यदि पैसा शेष बचता है तो अन्य सुख-सुविधाओं के बारे में सोचता है। हर मनुष्य चाहता है कि उसे ‘आज’ जो सुविधा जिस मूल्य दर उपलब्ध हो रही है, ‘कल’ भी उससे अधिक मूल्य न देना पड़े, किन्तु यदि इन ‘मूल तथा अन्य सुविधाओं की पूर्ति माँग की तुलना में कम हो जाए तो दुलर्भता के कारण इनका मूल्य बढ़ने लगता है।
महँगाई का दुष्प्रभाव
महँगाई के दुष्प्रभाव अनेक रूपों में हमारे सामने आते हैं। महँगाई के कारण मनुष्य को अपनी सारी मूल आवश्यकताएँ ही पूरी करने में अनेक परेशानियाँ झेलनी पड़ती हैं, ऐसे में सुख-सुविधाओं की पूर्ति तो सम्भव ही नहीं है। वेतनभोगी कर्मचारी महँगाई के प्रभाव को कम करने के लिए महँगाई भत्ते में वृद्धि की माँग करते हैं। यदा-कदा इन मँहगाई भत्तों में वृद्धि हो भी जाती है, किन्तु अत्यन्त आकर्षक लगने वाले येतन भत्ते पाने वाले मध्यम एवं निम्न वर्ग के वेतन भोगियों को तब भी कष्टों में जीवनयापन करना पड़ता है। असंगठित श्रामिक वर्ग की स्थिति तो और भी दयनीय होती है। उनका हाल तो यह होता है कि रोज कुंआ खोदकर प्यास बुझाओ। अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के पूरा न होने के कारण हर व्यक्ति में निराशा तथा हताशा पैदा होती है तथा विवश होकर वह अनैतिक तथा अवैध गतिविधियों की ओर उन्मुख होता हैं; जिससे घूसखोरी, जमाखोरी, कालाबजारी फैलती है। इन प्रवृत्तियों से समाज में असन्तोष बढ़ता है, बेरोजगारी बढ़ती है तथा विकास योजनाएँ भी रुक जाती हैं।
बढ़ती महँगाई के प्रमुख कारण
महँगाई वृद्धि के अनेक कारणों में आर्थिक कारण मुख्य है। आर्थिक कारणों के साथ-साथ राजनीतिक, सामाजिक तथा प्रशासनिक कारण भी महँगाई बढ़ाने में सहायक होते हैं जो इस प्रकार हैं-
1.सार्वजनिक क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र दोनों ही महँगाई बढ़ाने में लगे हुए हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर सार्वजनिक क्षेत्र में सभी उपक्रम घाटे में चल रहे हैं, जिसके कारण उत्पादन प्रभावित होता है, तथा मूल्यवृद्धि होती है। उधर निजी क्षेत्र निरन्तर घाटे की बात कहकर लाभ कमाने में लगे है, जिससे महँगाई बढ़ती है।
2. जनसंख्या वृद्धि भी महँगाई बढ़ने का मुख्य कारण है। जितनी तेजी से जनसंख्या बढ़ती है, वस्तुओं का उत्पादन तथा सेवाओं के अवसर उतनी तेजी से नहीं बढ़ते। परिणामस्वरूप माँग की अपेक्षा पूर्ति कम होने से मूल्य वृद्धि होती है।
3. प्रजातन्त्र में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण वोट प्राप्त करना होता है और यह रुपया नेता लोग पूँजीपतियों से ऐंठते हैं। किसी भी दल की सरकार बने, उसे पूँजीपतियों के व्यापारिक हितों का ध्यान रखना पड़ता है और पूँजीपति तब राजनीतिक दलों को दिए चन्दे के बदले मूल्य बढ़ाते हैं तब सरकार अनदेखी करती है। इस प्रकार मूलतः राजनीतिक चन्दों के कारण मूल्यवृद्धि होती है।
4. कृषि उपज के लागत व्यय में वृद्धि होने से भी महँगाई बढ़ती है। विगत वर्षों में कृषि के काम आने वाली वस्तुओं जैसे बीज, खाद, उर्वरक, कृषि यन्त्र आदि में मूल्यवृद्धि हुई है, जिससे कृषि उपज की लागत बढ़ी है। भारत तो एक कृषि प्रधान देश है जहाँ की अधिकांश वस्तुओं का मूल्य कृषि पदार्थों के मूल्य से जुड़ा हुआ है, अतः कृषि जन्य पदार्थों के मूल्य बढ़ने से अन्य वस्तुओं के भी दाम बढ़ते हैं।
5. जमाखोरी मूल्य वृद्धि का मूल कारण है। केवल व्यापारी ही नहीं, अपितु जमींदार ए+ मध्यम किसान भी कृषि उपज को गोदामों में भरकर रखने लगे हैं, जिससे मूल्यवृद्धि होती है। त्योहारों के आस-पास ये लोग समान की कीमत मन मुताबिक बढ़ाकर बेचते हैं।
6. मुद्रास्फीति होने पर भी मूल्यवृद्धि होती है। जब प्रचलन में मुद्रा का अधिक प्रसार होता है तब जो वस्तु पहले एक रुपए में आती थी वही महँगे दामों में खरीदनी पड़ती है।
7. यातायात के समुचित साधनों के अभाव में भी मूल्य बढ़ते हैं। यातायात के साधन अपर्याप्त होने पर माल का एक स्थान से दूसरे स्थान तक परिवहन नहीं हो पाता तथा इस प्रकार पूर्ति कम होने पर मूल्य वृद्धि होती है।
8. हड़ताल तथा ‘बन्द’ के कारण जब उत्पादन रुक जाता है तब पूर्ति प्रभावित होती हैं। सूखा, बाद, भूकम्प, अग्निकांड जैसी दैवीय आपदाओं से तथा दंगों जैसी मानवकृत विपदाओं से भी वस्तुओं तथा सेवाओं की पूर्ति में बाधा पड़ती है, जिससे मूल्यवृद्धि होती है।
महँगाई रोकने के उपाय
इस महँगाई रूपी दानव को बढ़ने से रोकने के – लिए कठोर उपायों का प्रयोग होना चाहिए। इन उपायों में सरकार को सर्वप्रथम बढ़ती कीमतों पर नियन्त्रण लगाना होगा। प्रत्येक वस्तु के दाम निश्चित करने होंगे। उत्पादन कर लगाकर ही वस्तुएँ बाजार में जानी चाहिए। संग्रह करने वालो को दण्डित किया जाना चाहिए तथा उनका सामाजिक बहिष्कार भी होना चाहिए। जनता में राष्ट्रहित की भावना को बढ़ाना होगा, जिससे लोगों में निर्धनों के प्रति दया भावना पैदा होगी तथा वे कीमत बढ़ाने के बारे में नहीं सोचेंगे। इतने पर भी जो लोग चोरबाजारी, कालाबाजारी के माल को आयात करते हैं, उन्हें कठोर सजा मिलनी चाहिए। यद्यपि सरकार आवश्यक वस्तुओं की कीमतें नियन्त्रण में रखती हैं तथा समय-समय पर उनके मूल्य में बढ़ोतरी स्वयं करती हैं, तब भी कीमतों में कमी नहीं होती है।
बाल-श्रम की समस्या पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
यूँ तो विकासशील अर्थव्यवस्था में कीमते बढ़ती हैं तथापि जब वस्तुओं का उत्पादन बढ़ेगा तभी कीमतें कम होंगी। सरकार विदेशों से आयात किए जाने वाली जिस सामग्री पर नियन्त्रण लगा देगी, उसी की कीमत कम हो जाएगी। पदार्थों की वितरण व्यवस्था पर सरकारी नियन्त्रण होना चाहिए तथा इस व्यवस्था का कठोरता से किया जाना चाहिए। जनता को भी जागरूक होने की आवश्यकता है। वे उस वस्तु को न खरीदे, जिनकी मूल्य वृद्धि हो रही है। जब खरीद हम होगी तो जमाखोर व्यापारी अपने आप ही चीजों की कीमतें कम कर देंगे। आवश्यकताओं को कम कर देने से वस्तुओं की कीमतें स्वतः ही कम हो जाती हैं। निजी बचतों को प्रोत्साहन देना भी मूल्यवृद्धि रोकने में सहायक होगा। जैसे यदि हम अपनी आय को वर्तमान में ही पूर्णतः न व्यय कर भविष्य के लिए बचत कर उसे राष्ट्रीयकृत बैंकों में जमा करेंगे तो एक ओर तो वर्तमान में माँग घटने से मूल्य कम होंगे तथा दूसरी ओर बैंकों में जमा धनराशि देश के विकास कार्यों में लगेगी, जिससे अधिक उत्पादन होने पर मूल्य घटने में सहायता मिलेगी ।
उपसंहार-यदि उपर्युक्त सुझावों को ईमानदारी से व्यापारिक रूप दिया जाए तो मूल्यवृद्धि की समस्या से मुक्ति मिल सकती है। यदि मूल्य घटकर भूतकाल स्तर पर न भी पहुँचे तो भी कम से कम वर्तमान स्तर पर तो टिके ही रह सकेंगे। मूल्यों का वर्तमान स्तर पर ही निश्चित रहना महँगाई से त्रस्त समाज के लिए वरदान साबित होगा।