मद्यनिषेध: एक समस्या पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।

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प्रस्तावना-‘निषेध’ का अर्थ किसी भी वस्तु के निर्माण, वितरण तथा बिक्री एवं उपभोग पर रोक लगना होता है। ‘मद्यनिषेध’ का अर्थ मादक द्रव्यों के सेवन पर रोक लगाना है। मादक द्रव्यों के सेवन की प्रवृत्ति आधुनिक युग की देन नहीं है, अपितु प्राचीन ग्रन्थों में भी ‘खुश’ एवं ‘सोम’ शब्दों का उल्लेख मिलता है, जो इस तथ्य का प्रमाण है कि हमारे पूर्वज भी मादक द्रव्यों का सेवन खुलेआम किया करते थे। आज के युग में भी इन मादक द्रव्यों का सेवन निम्न, मध्यम तथा उच्च वर्ग के लोग समान रूप से करते हैं।

मद्यपान : एक सामाजिक बुराई

शराब पीना एक बहुत भयंकर सामाजिक बुराई है तभी तो शराब को ‘द्रव्य आग’ के रूप में सम्बोधित किया जाता है। जिस प्रकार आग से सब कुछ जलकर राख हो जाता है, उसी प्रकार शराब द्वारा शारीरिक, मानसिक तथा नैतिक शक्तियों का हास तो होता ही है, साथ ही शराबी की आयु भी घट जाती है। मद्यनिषेध की बुरी लत ने कितने ही व्यक्तियों को तथा न जाने कितने घरों को बरबाद कर दिया है। शराब पीने वाला व्यक्ति अनेक रोगों का शिकार हो जाता है तथा मानसिक रूप से विकलांग भी हो जाता है। इसी मद्यपान के कारण न जाने कितने ही राजाओं-महाराजाओं के तख्तों ताज धूल में मिल गए, कितने ही लोगों ने आत्महत्याएँ कर ली है। कितनी ही हत्याओं, अपहरण, बलात्कार इत्यादि की जड़ भी शराब ही होती है।

मद्यपान के कारण

मादक द्रव्यों का सेवन किसी के भी हित में नहीं है, फिर भी इसका सेवन हर दिन बढ़ता जा रहा है। इसके अनेक कारण हैं जैसे-निरन्तर दुख, अवसाद, पीड़ा, थकान, उलझन आदि को कुछ देर के लिए भुलाने के लिए लोग शराब पीते हैं। कुछ लोग परेशानी तथा लाचारी में पीते हैं तो कुछ खुशी में भी पीते हैं। गरीब अपनी गरीबी से परेशान होकर शराब पीता है तथा और भी गरीब हो जाता है, तो धनी अपने पैसे का दिखावा करने के लिए खुद भी पीते हैं तथा अपने मित्रों को भी पीने के लिए विवश करते हैं। पीने वालों को तो पीने का बहाना चाहिए। यदि अधिक खुशी मिल तो शराब पीकर इसे व्यक्त करते हैं तथा गम मिलने पर उसे भुलाने के लिए मदिरापान करते हैं। लेकिन शायद ऐसे लोग भूल जाते हैं कि शराब सुख-दुख की साथी नहीं होती, वह तो बस पतन के गर्त में गिराती है।

वृक्षारोपण पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।

मद्यपान की समस्या का समाधान

स्वभाविक रूप से इस सामाजिक बुराई को दूर करने की दिशा में सरकार ने कुछ प्रयत्न अवश्य किए हैं। कठोर लाइसेंसिंग कानूनों द्वारा इस पर काबू पाया जा सकता है। इसके लिए संगठित शिविरों का आयोजन कर उसमें संयमी एवं अच्छी आदतों की शिक्षा द्वारा इस सामाजिक बुराई के दोषों से अवगत कराया जा सकता है। दूरदर्शन, समाचार-पत्रों, आकाशवाणी, चलचित्र आदि के माध्यम से भी इस दिशा में सफलता प्राप्त की जा सकती है। इसके साथ-साथ काव्य-गोष्ठियों, नाटकों, सभा सम्मेलनों द्वारा भी मादक द्रव्य सेवन की दुष्प्रवृत्ति को रोका जा सकता है। मद्यनिषेध के लिए शराब बनाने एवं बेचने के व्यवसाय में संलग्न लोगों के लिए किसी वैकल्पिक व्यवसाय की व्यवस्था करनी होगी। मजदूरों के लिए मनोरंजन का प्रबन्ध करना होगा। सरकार को मद्य-व्यवसाय से होने वाले करोड़ों रुपए के राजस्व का भी कोई विकल्प खोजना होगा।

उपसंहार-अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि मद्यपान करने वाले इसके पक्ष में कुछ भी कहे, इसे उच्च वर्ग का प्रतीक मानें या थकावट दूर करने या खुशी प्रकट करने का तरीका, हर हाल में यह हानिकारक ही है। इतने व्यापक व्यसन का निवारण कोरी बातों से नहीं हो सकता, वरन् इसके लिए सरकारी तथा व्यक्तिगत तौर पर प्रयास किए जाने चाहिए, तभी जान-माल के लिए हानिकारक, इस लत से छुटकारा पाया जा सकता है।

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