मातृसत्तात्मक परिवारों की प्रकृति एवं विशेषता निम्नलिखित है ।
(1) मातृसत्तात्मक परिवार स्त्री प्रधान होते हैं। इसमें वंश का नाम किसी स्त्री से सम्बन्धित होता है, पुरुष से नहीं। इस प्रकार ऐसे परिवारों की प्रकृति मातृवंशीय (Matrilincal) होती है। इसकी प्रमुख विशेषता यह है कि बच्चों के गोत्र का नाम अपनी माता के गोत्र के अनुसार ही निर्धारित होता है। विवाह के पश्चात् स्त्रियों का गोत्र नहीं बदलता, लेकिन पुरुष का गोत्र कभी- कभी अपनी पत्नी के गोत्र के अनुसार परिवर्तित हो जाता है।
(2) ऐसे परिवार सामान्यतः मातृस्थानीय (matrilocal ) होते हैं, अर्थात् विवाह के बाद स्त्री पति के घर नहीं जाती, बल्कि पति को अपनी पत्नी के घर आकर वहीं की परम्पराओं के अनुसार कार्य करना होता है।
बहुपति विवाह जनजातियों के दो उदाहरण दीजिए।
(3) मातृसत्तात्मक परिवारों की संरचना में सबसे प्रमुख स्थान कर्ता-स्वी का होता है। इसके बाद पारिवारिक अधिकारों की दृष्टि से क्रमशः सबसे बड़ी विवाहित लड़की, कर्ता के भाई, कर्ता के पति और अविवाहित लड़कियों को स्थान दिया जाता है। ऐसे परिवारों में लड़को का कुछ भी महत्व नहीं होता।
(4) सम्पत्ति के अधिकार माता से उसकी पुत्रियों को प्राप्त होते हैं, पुत्रों को नहीं। असम की खासी जनजाति में सम्पत्ति का उत्तराधिकार परिवार की सबसे छोटी पुरी को प्राप्त होता है। इसके विपरीत असीम की जयन्तिया पहाड़ियों पर रहने वाली गाये जनजाति में सबसे बड़ी पुत्री को छोड़कर सम्पत्ति का उत्तराधिकार किसी भी अन्य पुत्री को दिया जा सकता है।