मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य की व्याख्या कीजिए।

मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य – भारतीय समाजशास्त्र को अमूल्य योगदान प्रदान करने वाले दुर्जटि प्रसाद मुखर्जी को लोग प्यार से डी.पी. के नाम से पुकारते थे। मुखर्जी नियोजन (Planing) में विश्वास करते थे। ये वर्ग और विशेषाधिकारों के विरुद्ध थे। ये समस्त ज्ञान की एकता और अनुभव के एकीकरण में विश्वास करते थे। भारतीय समाज को समझाने हेतु समाजशास्त्रियों द्वारा सामाजिक संस्कृति और परम्पराओं का अध्ययन करना अनिवार्य है मुखर्जी के अनुसार भारतीय संस्कृति तथा परम्परा का अध्ययन केवल भूतकाल पर ही केन्द्रित नहीं होना चाहिए। बल्कि इसमें परिवर्तन के प्रति संवेदना भी होनी चाहिए। प्रत्येक समाज की अपनी एक संस्कृति होती है जब हम भारतीय समाज की ओर देखते हैं तो हमें सर्वत्र विभिन्नता ही दिखाई देती है परन्तु इसी विविधता में एकता को भारतीय संस्कृति की आत्मा कहा जा सकता है।

डी.पी. मुखर्जी की चिन्तन शैली पर भारतीय संस्कृति का स्पष्ट प्रभाव था। परन्तु एक समय ये मार्क्स के विचारों से प्रभावित रहे और मार्क्स के अनेक सिद्धान्तों को भारतीय परम्पराओं से जोड़कर उनका विश्लेषण किया। मुखर्जी का विचार था कि भारत की अनेक वैचारिक परम्पराएँ मार्क्सवाद की विरोधी नहीं अपित किसी न किसी रूप में मार्क्स के विचारों से जुड़ी हुई हैं।

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स्वयं रविन्द्रनाथ टैगोर ने स्वीकार किया है कि भारतीयों के दृष्टिकोण को बदलने में पाश्चात्य संस्कृति की मुख्य भूमिका है। भारतीयों का दृष्टिकोण जाति पर आधारित था। अब वह व्यक्तिक स्वतंत्रता के रूप में बदलता जा रहा है। पश्चिमी संस्कृति में व्यक्ति में आत्म सम्मान की भावना पैदा की पश्चिम के प्रभाव स्वरूप भारतीय संस्कृति में होने वाला परिवर्तन कभी भी निर्वाध नही रहा। बल्कि यहाँ के बुद्धिजीवियों एवं राजनीतिज्ञों ने समय-समय पर पश्चिमी संस्कृति के मशीनीकरण का व्यापक विरोध किया और कहा कि इसके परिणामस्वरूप ग्रामीण अर्थव्यवस्था विघटित हो सकती है।

मुखर्जी ने मार्क्स का उद्धरण देते हुए लिखा है कि- “मानव जाति उन्हीं दशाओं को एक समस्या के रूप में देखती है जिसका समाधान खोजपाना उसके लिए सम्भव हो पाता है।”

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